बीमारियों की जड़: रात का भोजन और अस्वस्थ जीवनशैली
प्रकृति से जुड़ी हर जीव की जीवनशैली हमें स्वस्थ रहने का संदेश देती है। आपने कभी गौर किया है? न कोई पक्षी डायबिटीज़ से पीड़ित होता है, न ही किसी बंदर को हार्ट अटैक आता है। न वे आयोडीन युक्त नमक खाते हैं, न ही दांतों की सफाई के लिए ब्रश करते हैं – फिर भी उन्हें थायरॉइड, दांतों की सड़न जैसी समस्याएँ नहीं होतीं। मनुष्य और बंदर की शारीरिक संरचना में अधिक अंतर नहीं है – अंतर सिर्फ इतना है कि बंदर की पूंछ होती है, इंसान की नहीं। फिर ऐसा क्यों है कि बंदर बीमार नहीं होते जबकि इंसान आए दिन किसी न किसी बीमारी से जूझता है?
एक शोध की रोचक बात
एक वरिष्ठ मेडिकल प्रोफेसर ने 15 वर्षों तक यह जानने का प्रयास किया कि बंदरों को बीमार कैसे किया जा सकता है। उन्होंने विभिन्न वायरस और बैक्टीरिया बंदरों के शरीर में इंजेक्ट किए, लेकिन बंदरों पर इसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। उनका निष्कर्ष था कि बंदर का RH फैक्टर (रक्त का विशेष गुण) अत्यंत संतुलित और आदर्श होता है – यही कारण है कि उनका शरीर अनेक बीमारियों को खुद ही निष्क्रिय कर देता है। यही RH फैक्टर मनुष्य के परीक्षण में भी मानक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसका ज़िक्र आमतौर पर नहीं किया जाता।
प्राकृतिक दिनचर्या और स्वास्थ्य
बंदर और अधिकांश जानवरों की दिनचर्या सटीक होती है – वे सुबह सूर्य निकलने के तुरंत बाद भरपेट भोजन करते हैं और सूर्यास्त के बाद कुछ नहीं खाते। यही कारण है कि उनका पाचन तंत्र मज़बूत रहता है और शरीर रोगों से बचा रहता है। इसके विपरीत, मनुष्य ने ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर जैसे कृत्रिम खाने के पैटर्न को अपनाया है, जो उसकी प्राकृतिक जैविक घड़ी से मेल नहीं खाता। यही असंतुलन धीरे-धीरे बीमारियों की जड़ बनता जा रहा है।
चिकित्सकीय अनुभव और आयुर्वेद का समर्थन
प्रसिद्ध चिकित्सक प्रो. रविंद्रनाथ शानवाग बताते हैं कि उन्होंने अपने मरीजों को सुबह भरपेट भोजन करने की सलाह दी। परिणामस्वरूप, कई लोगों की शुगर, कोलेस्ट्रॉल, घुटनों का दर्द, गैस, पेट की जलन जैसी समस्याएँ कम हो गईं। उनकी नींद बेहतर हुई और जीवनशैली में सकारात्मक बदलाव आया। यह बात कोई नई नहीं है। आयुर्वेदाचार्य बागभट्ट ने लगभग 3500 वर्ष पूर्व यह स्पष्ट किया था कि सुबह का भोजन सर्वोत्तम होता है।
आदर्श दिनचर्या के लिए सुझाव
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सुबह सूर्योदय के 2.5 घंटे के भीतर (अधिकतम 10 बजे तक) भरपेट भोजन करें।
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नाश्ते की आदत छोड़ें – यह भारत की पारंपरिक संस्कृति का हिस्सा नहीं है, बल्कि औपनिवेशिक प्रभाव है।
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रात्रि का भोजन सूर्यास्त से पहले कर लें।
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भोजन के बीच कम से कम 4 से 8 घंटे का अंतराल रखें।
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दिन ढलने के बाद कुछ भी न खाएं।
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सुबह स्नान के बाद भोजन करने से जठराग्नि अधिक प्रभावी होती है और पाचन बेहतर होता है।
