सच्चे गुरू के मार्गदर्शन से पानी की  बूँद बन जाती है सागर

Saccha guru
 

ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

 कटनी, मध्य प्रदेश। कर्मयोगी प्रकृति पुत्र त्यागी जी ज्ञान तीर्थ ने कहा कि 
गुरु की महिमा का कोई बखान कर पाये संभव नहीं जिस तरह से संपूर्ण प्रकृति के बारे में जानना और बता पाना असंभव है यही सच्चे गुरु के लिये भी है ।
सच्चे गुरू के द्वारा बीज विशाल वृक्ष तो सूर्य की एक किरण सूर्य ही बन जाती है। भगवान का अंश हर जङ चेतन मे उपस्थित है। नदी ,पत्थर,वृक्ष,जलचर,थलचर ,नभचर,चारों ओर जो कुछ भी है वह परम सत्ता की कृति है हम सब सिर्फ उपभोग कर रहे हैं। *हमने कुछ भी बनाया नहीं है बिगाङा जरूर है*
परम पिता परमात्मा के नियम से चलने वाली इस प्रकृति के हम शत्रु बन बैठे हैं अपने थोङे से स्वार्थ के लिए हमने खुद को ही भगवान बनने का दिखावा कर दिया जहा प्रकृति की पूजा होनी चाहिए वहा हम अपनी पूजा करवाने लगे हम भूल गए कि हम तिनका भी नहीं इस संसार मे हमारी कोई कीमत नहीं बिना उस परम पिता की ऊर्जा के और उसी कृपा को परोसने याद दिलाने हम सद्गुरु मिलते हैं वह भी कई जन्मो की सरलता साधना और तपस्या से संसार का दूसरा नाम भूल भुलैया ही है जहा हमे लगता है कि हम सबसे अच्छे हैं सबसे बङे है लेकिन यथार्थ का ज्ञान होते ही हम थोथे हो जाते है वह भी स्वयं मे ही ।
गुरू की कृपा भी यही है और पहचान भी कि गुरु के प्रति भी आसक्ति न हो सच्चे गुरू का यही दायित्व है कि वह अपने शिष्य को विषयों से मुक्त कर संसार की वास्तविकता को उसे हृदय मे अंकित करे और अपने जीवन को भी कृत कृत्य करे सार्थक करे अपनी ही साथना पूजा मे ले जाने वाले गुरु नहीं हो सकते गुरु सम्मान के पात्र है लेकिन वे सुख दुख के निर्माता नहीं है प्रेरक है किन्तु प्रेरणा के जनक नहीं है स्वयंभू नहीं है जो गुरु अपने जितने शिष्यों को ऊंचा उठाता वह उतना ही ऊंचा स्वयं उठता जाता है किन्तु फिर भी उसे याद रहना चाहिए कि वह भी अगर परमात्मा का अंश हैं तो शिष्य का भी अंश है ।
 *हममें सदा रहे शिष्य बने रहने की लालसा*
जिस किसी मे भी सच्चा  शिष्य बनने  की प्रबल इच्छा शक्ति होगी वही परमात्मा को भी समझ सकते हैं और इस सृष्टि को भी ।
 *गुरू सृष्टि के निर्माता नहीं है लेकिन सच्चे गुरू निर्माता से भी अधिक ऊंचा स्थान रखते हैं* 
अपने और दूसरो के अंधकार को भी हटा देने वाले सदा पवित्र मार्गदर्शन करने वाले अहंकार,द्वेष,लोभ कुछ भी नहीं हो जब मानो जिसके अंदर ईश्वर ही आकर बैठ गया हो सबके प्रति करूणा का समर्पण भाव जगाता हुआ ।
 *सूर्य और दीपक जैसा वृक्ष और नदियों सा उद्देश्य हो जिस गुरु का* ऐसे गुरू ही सदगति प्रदान करने के लिए सक्षम हो सकते है ।
बनावटी,दिखावटी,सजावटी, लोभी गुरू नहीं हो सकता ।
गुरू तो अपने पास जो कुछ भी है वह सब शिष्य को दे देता है। 
शिष्य का पास जो कुछ भी है वह उसके और संसार के लिए है ।
 *गुरू के लिए पास जो कुछ भी है वह उसके स्वयं के लिए नहीं* बल्कि सब कुछ संसार के लिए है सिवाय धैर्य,संयम,और सद  आचरण के।
 गुरू मार्ग है गुरू प्रकाश है गुरू जीवन की डोर है लेकिन इन सबसे भी ऊपर गुरू एक तत्व है जो निज से ऊपर उठकर संसार के कल्याण हेतु स्वतः आहत हो जाये अपने पवित्र विचारों से समूचे संसार मे प्रेम की रस वर्षा करे और बिना स्वार्थ संछेप मे ही अपने को रखे अपनी अति  आवस्यकता की चीजों को भी निज स्वार्थ की बजाय सबके हित मे लगाये। 
 *गुरू भगवान नहीं होकर भी  भगवान के भी भगवान होते हैं* 
गुरू पूर्णिमा पर सभी गुरुजनों को नमन है हृदय से। 
हममें शिष्य बने रहने की प्रवृति जागती रहे गलत प्रवृतिया भागती रहें। 
 *गुरु शब्द स्वयं ब्रह्म है इसका सम्मान सदा अच्छे आचरण करके यश वैभव कीर्ति का दिखावा नही समर्पण-समर्पण और समर्पण यही है गुरू तत्व* 
गुरू बनाये उसे जिसमें सूर्य से गुण मिले पाने रहने की लालसा रखने या लेने की प्रवृति वालो से सावधान अपने अंदर के परम तत्व से पहचान कराने वाले गुरू का अशीष ले चमक से प्रभावित होकर जीवन को अंधकार मे न डालें। 
सच्चे गुरू को भीङ की चिंता तो होती है लेकिन वह उस भीङ का हिस्सा नहीं होता न उसे अपने शिष्य बनाने या बढ़ाने का कोई प्रयोजन होता है उनका तो एक ही लक्ष्य है सब खूब खुशिया बांटे खूब खुशिया पायें बिना छल कपट प्रपंच के बस चलते रहे।

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