डा. भरत राज सिंह ने बताया गुरु पूर्णिमा की कथा व पूजन का महत्व
ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय
लखनऊ। डा. भरत राज सिंह,
पर्यावरणविद व महा निदेशक,
स्कूल ऑफ़ मैनेजमेंट साइंसेज,लखनऊ ने बताया कि
महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अंश के रूप में धरती पर आए थे। उनके पिता का नाम ऋषि पराशर और माता सत्यवती थी। उन्हें बाल्यकाल से ही अध्यात्म में काफी रुचि थी । जिसको पूरा करने के लिए उन्होंने अपने माता-पिता से प्रभु दर्शन की इच्छा प्रकट की और वन में जाकर तपस्या करनी शुरू कर दी। लेकिन उनकी माता ने इस इच्छा को मना कर दिया। महर्षि वेदव्यास ने अपनी माता से इसके लिए हठ किया और अपनी बात को स्वीकार करा लिया। लेकिन उन्होंने आज्ञा देते हुए कहा की जब घर का ध्यान आए तो वापस हमारे पास लौट आना । इसके बाद वेदव्यास तपस्या हेतु वन चले गए और वहां जाकर उन्होंने कठोर तपस्या की। इस तपस्या के पुण्य के तौर पर उन्हें संस्कृत भाषा में प्रवीणता हासिल हुई। जिसके बाद उन्होंने चारों वेदों का विस्तार किया महाभारत, अठारह महापुराणों और ब्रह्मास्त्र की रचना की, उन्हें वरदान प्राप्त हुआ। ऐसा कहा जाता है कि, किसी न किसी रूप में हमारे बीच महर्षि वेदव्यास आज भी उपस्थित है। इसलिए हिंदू धर्म में वेदव्यास भगवान के रूप में पूजे जाते हैं। आज भी वेदों का ज्ञान लेने से पहले महर्षि वेदव्यास का नाम सबसे पहले लिया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही वेदों के रचयिता महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था । सबसे पहले वेदों की शिक्षा महर्षि वेदव्यास ने ही दी थी, इसलिए हिन्दू धर्म में उन्हें प्रथम गुरु का दर्जा दिया गया है. यही वजह है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है। ये दिन गुरुओं के पूजन को समर्पित है।
हम सभी के जीवन में गुरु का स्थान सबसे अहम माना जाता है। उनकी दी हुई शिक्षा से ही हम आगे बेहतर कार्य और अपनी प्रतिभाओं को लोगों के सामने प्रदर्शित कर पाते हैं। हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है कि, बिना गुरु के आप भगवान को भी पा नहीं सकते। सनातन धर्म में तो गुरु की महिमा का बखान अलग-अलग तरीकों से किया गया है । इस दिन हर कोई अपने गुरु की पूजा करता है। लेकिन इस पर्व को महर्षि वेदव्यास के जन्म के खास मौके पर मनाया जाता है, जिसकी कथा के महत्व को जानना जरूरी है।
गुरु पूर्णिमा के खास मौके पर सभी सनातनी भाइयों जिसमे विश्व के सभी जाति व पन्थ सम्मलित हैं, से आग्रह है कि वह 3 जुलाई 2023 को महर्षि वेदव्यास की पूजा करें और उनकी कुछ अहम बातों का अनुसरण करें, जिसके प्रभाव आप आने वाले भविष्य को बेहतर बना सके।