जिस कमी को सुधारना सम्भव नहीं, उसको लेकर परेशान नहीं होना चाहिए

Performing art and super skill
 


ब्यूरो चीफ आर एल पाण्डेय

लखनऊ। परफॉर्मिंग आर्ट्स एण्ड सुपर स्किल स्कूल (PS3) के द्वारा 30 दिवसीय बाल नाट्य कार्यशाला के अन्तर्गत
थ्रस्ट ऑडिटोरियम, भारतेन्दु नाट्य अकादमी लखनऊ में "अभिव्यक्ति का उपवन" नामक प्रस्तुति आयोजित की गयी। जिसमें निसर्ग संस्था का भी सहयोग रहा। इस प्रस्तुति में मुख्य अतिथि के रूप में डाॅ. सर्वेन्द्र विक्रम सिंह सेवानिवृत्त बेसिक शिक्षा निदेशक उत्तर प्रदेश तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में  अशोक बनर्जी सेवानिवृत्त संयुक्त निदेशक सूचना निदेशालय, उत्तर प्रदेश उपस्थित थे। जिन्होंने प्रस्तुति के बाद प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र वितरित किये। 


      लगभग 30 बाल प्रतिभागियों कि यह  कार्यशाला लीक से हटकर रही आमतौर पर बच्चों की प्रस्तुति परक नाट्य कार्यशाला में एक नाट्य-प्रस्तुति देखने को मिलती है। PS3 और निसर्ग द्वारा आयोजित इस कार्यशाला की  प्रस्तुति को "अभिव्यक्ति का उपवन" नाम दिया गया है। जिसमें अभिनय कला के अनेक आयामों का प्रदर्शन कर उसे एक उपवन की तरह प्रस्तुत किया गया।सबसे पहले भाव और रस पर आधारित एक विशेष प्रस्तुति देखने को मिली। छोटे बच्चों के वर्ग में 7 बच्चों ने अलग-अलग संवादों को अलग-अलग मनोभाव में प्रस्तुत किया। सईदा हुसैन का संवाद था -क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे? आरव अवस्थी का संवाद था- मैं अपनी फैमिली से प्यार करता हूं। इदिका सिंह चौहान का संवाद था -हमें पानी वेस्ट नहीं करना चाहिए। ईशान मिश्रा का संवाद था- हमें पेड़ लगाने चाहिए। विदिता अग्रवाल का संवाद था -मेरी किताब कहां है ? मायरा रजी सिद्दीकी का संवाद था-क्या तुम उससे डरते हो? रायन तुलसी का संवाद था- तुम्हारे पास घर नहीं है क्या? तन्वी जायसवाल का संवाद था-आज मैं खाने में क्या खाऊं?
            
               इसके बाद 3 बड़े बच्चों अप्रतिम गुप्ता, देवी संदीप देशपांडे और शिवा सिंह द्वारा भावाभिव्यक्ति का प्रदर्शन किया गया। इन तीनों बच्चों ने एक ही वाक्य "कैसा कैसा खाना बना रखा है" को श्रृंगार, हास्य, करुण, वीर, रौद्र, भयानक, आश्चर्य और वीभत्स रस में अभिव्यक्त किया।

       "अभिव्यक्ति का उपवन" प्रस्तुति के अन्तर्गत तीसरे क्रम में लघु नाटिका "हम जैसे हैं अच्छे हैं" का प्रदर्शन किया गया। "बॉडी शेमिंग" विषयवस्तु पर आधारित इस लघु नाटिका में अनुश्री जैन, अप्रतिम गुप्ता, आरना सिन्हा, आर्नव सिन्हा और सैइदा हुसेन ने क्रमशः कोको, नकुल, जाह्नवी, पार्थ और आयरा की भूमिका निभाई। 
         कोको अपने मोटापे को लेकर बहुत चिंतित रहती है।उसकी मां भी उसे टोकती रहती हैं। एक दिन कोको को अपनी मित्र जाह्नवी के बर्थडे पार्टी में जाते हुए उसका सबसे घनिष्ट दोस्त नकुल भी उसे मोटी कह देता है जिससे वह बहुत ही आहत हो जाती है। तब उसकी दोस्त जाह्नवी अपने सांवले रंग का उदाहरण देकर समझाती है कि मैं तुम्हारी तरह चिंतित नहीं रहती हूँ। किसी व्यक्ति में कोई कमी होती है तो कोई ना कोई अच्छाई भी होती है। मैं अपनी अच्छाई पर ही ध्यान देती हूँ। जिस कमी को सुधारना सम्भव नहीं, उसको लेकर परेशान नहीं होना चाहिए। नकुल और पार्थ कोको को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और एपीजे अब्दुल कलाम साहब का उदाहरण देकर समझाते हैं कि शरीर की सुन्दरता कोई मायने नहीं रखती। व्यक्ति के कर्म और विचार महान होने चाहिए।
 
      इसके बाद छोटे बच्चों का नाटक दुनिया का भविष्य प्रस्तुत किया गया पर्यावरण रक्षा का संदेश देने वाले इस नाटक में सईदा हुसैन, आरव अवस्थी, इदिका सिंह चौहान, विदिता अग्रवाल, मायरा रजी सिद्दीकी, रायन तुलसी, तन्वी जायसवाल, अयांश गर्ग, नायरा सोमवंशी, अव्यान अग्रवाल, आहान अग्रवाल, वंश अग्रवाल और आनव यादव ने स्कूल के बच्चों की भूमिका निभाई और अनुश्री जैन ने अध्यापिका की भूमिका निभाई। 
             अध्यापिका स्कूल के बच्चों को एक बहुत सुन्दर और बड़े पार्क में घुमाने लाती हैं। जहां के हरे भरे पेड़, फूलों के पौधे, चिड़िया, तितलियां और शुद्ध वातावरण को देखकर बच्चे बहुत खुश होते हैं। बच्चे खूब खेलते कूदते हैं।थक कर सो जाते हैं। नींद में  भयानक सपना देखते हैं। स्वयं को किसी रेगिस्तान में पाते हैं। जहां सामने के पहाड़ों की बर्फ पिघलकर बाढ़ की तरह आती है रेगिस्तान में सूख जाती है। पहाड़ भी लाल पीले पत्थर हो जाते हैं। बच्चे सपने में ही चीखने लगते हैं- ग्लोबल वार्निंग, सुनामी, रेगिस्तान, जंगल में आग। दूर बैठी अध्यापिका बच्चों का चीखना सुनकर दौड़ते हुए आती है और उन्हें जगाती है। तब बच्चे अपने द्वारा देखे गये सपने को बताते हैं। अध्यापिका कहती है कि बच्चों तुमने सपने में दुनिया का भविष्य देख लिया। बच्चे सवाल करते हैं क्या भविष्य में दुनिया ऐसी हो जाएगी ? तब अध्यापिका बताती है कि मनुष्य यदि जंगलों को इसी तरह नष्ट करता रहा, पर्यावरण को बर्बाद करता रहा तो भविष्य में दुनिया खत्म हो जाएगी। सब बच्चे एक साथ मिलकर संकल्प लेते हैं कि वह पर्यावरण को नष्ट नहीं होने देंगे। 
               इसके बाद देवी संदीप देशपांडे द्वारा अपने जीवन के अनुभव के आधार पर एकल प्रस्तुति दी गयी। 
 बिना अभिनय किए भी अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित करने की कला को विकसित करने के उद्देश्य से यह प्रस्तुति दी गई। इसमें संदेश दिया गया कि बच्चों को अपनी किसी भी समस्या को लेकर स्वयं को कष्ट नहीं देना चाहिए बल्कि उसे अपने माता-पिता से अवश्य साझा करना चाहिए।
          प्रस्तुति के अंत में नुक्कड़ नाटक- "कैसा यह मजाक है" प्रस्तुत किया गया। संप्रेषण के सबसे सशक्त माध्यम नुक्कड़ नाटक के प्रति बच्चों की जागरूकता और नुक्कड़ नाटक के अनुसार अभिनय कौशल को विकसित करते हुए सामाजिक समस्याओं को गम्भीरता से सोचने-विचारने की प्रेरणा देने के उद्देश्य से बच्चों द्वारा इस नाटक को प्रस्तुत कराया गया।  विकास के नाम पर प्रकृति के अंधाधुंध विनाश को रोकने का संदेश देने वाले इस नाटक में हिया पाठक, फातिमा हुसैन, सईदा हुसैन, सानवी सिंह, मान्या अवस्थी, अद्विका शुक्ला, नन्दिका सिंह, ओशिका मलिक, ईशान मिश्रा  हंसजा शर्मा, आरव अवस्थी, आर्नव सिन्हा और आरना सिन्हा ने प्रभावशाली अभिनय किया।

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