कुशीनगर में अनोखी पहल: 17 नवजात बेटियों का नाम 'सिंदूर', कहा – यह सिर्फ एक शब्द नहीं, एक भावना है

कुशीनगर (उत्तर प्रदेश): बेटियों को समाज में बराबरी का दर्जा देने की दिशा में एक अनोखी और प्रेरणादायक पहल देखने को मिली है। कुशीनगर जिले के एक गांव में 17 नवजात बेटियों का नाम 'सिंदूर' रखा गया है। यह कोई सामान्य नामकरण नहीं है, बल्कि एक सामाजिक संदेश है, जो परंपराओं को चुनौती देता है और महिलाओं के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
नाम के पीछे की सोच
'सिंदूर' भारतीय समाज में एक स्त्री की पहचान, उसके सम्मान और वैवाहिक जीवन का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यहां इसे बेटियों के नाम के रूप में अपनाकर यह संदेश दिया गया है कि बेटियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि यह प्रतीक। इन परिवारों ने यह निर्णय लेकर दिखा दिया है कि बेटियों को अब बोझ नहीं, बल्कि गर्व समझा जा रहा है।
समाज में बदलाव का संकेत
इन 17 परिवारों का यह कदम उस मानसिकता के विरुद्ध है जिसमें बेटियों को कमतर समझा जाता है। वर्षों से समाज में बेटियों को लेकर असमानता और भेदभाव की कहानियाँ आम रही हैं। लेकिन अब यह सोच बदल रही है और कुशीनगर के इन परिवारों ने इस बदलाव को नाम देकर एक नया रास्ता दिखाया है।
ग्रामीण महिलाओं की भूमिका
इस पहल के पीछे गांव की महिलाओं की भी अहम भूमिका रही है। उन्होंने मिलकर यह निर्णय लिया और एकजुट होकर बेटियों के नाम ‘सिंदूर’ रखने का समर्थन किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि अब ग्रामीण महिलाएं भी सामाजिक बदलाव की अगुवाई करने को तैयार हैं।
प्रेरणा बन रहा कुशीनगर
कुशीनगर की यह पहल अब पूरे उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के लिए भी एक प्रेरणा बन रही है। सोशल मीडिया पर भी यह खबर तेजी से वायरल हो रही है और लोग इसकी सराहना कर रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों ने इस कदम को 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान से जोड़ते हुए इसे महिला सशक्तिकरण की दिशा में मजबूत कदम बताया है।
संदेश – ‘बेटी सम्मान की पहचान है’
इन परिवारों का मानना है कि 'सिंदूर' अब सिर्फ एक सुहाग का प्रतीक नहीं, बल्कि नारी सम्मान का प्रतीक बन चुका है। जब एक बेटी को यह नाम मिलता है, तो यह समाज को एक संदेश देता है – बेटी बोझ नहीं, सम्मान की पहचान है।
कुशीनगर के इन परिवारों ने न केवल एक नाम रखा, बल्कि समाज की सोच बदलने की दिशा में एक मजबूत संदेश दिया है। यह पहल दर्शाती है कि अगर सोच बदल जाए, तो समाज अपने आप बदल सकता है। ऐसे प्रयासों को प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि हर बेटी को वह सम्मान मिल सके, जिसकी वह हकदार है।