लैटिन अमेरिकी प्रवासियों की त्रासदी के पीछे अमेरिकी दु:स्वप्न है


लैटिन अमेरिकी प्रवासियों के सवाल के समाधान के लिए अमेरिका सरकार ने कई उपाय अपनाये, जैसे सीमा पर दीवार खड़ी करना और इत्यादि। पर सब अप्रभावी रहे। इसका मूल कारण है कि लैटिन अमेरिकी प्रवासियों का सवाल वास्तव में अमेरिका द्वारा मुनरो सिद्धांत अपना कर लैटिन अमेरिकी देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने का परिणाम है। मैक्सिको के राष्ट्रपति एंद्रेस मैन्युल लोपेज ओब्रेदोर ने कहा था कि प्रवासी गरीबी और रोजगार के अभाव में घर छोड़कर अमेरिका जाते हैं। अगर अमेरिका चाहता है कि अधिक प्रवासी उसके यहां न प्रवेश करें, तो उसे मध्य अमेरिकी देशों के आर्थिक विकास में मदद देनी चाहिए। पर इस संदर्भ में अमेरिका सिर्फ मीठी बातें करता है लेकिन ठोस कदम नहीं उठाता है।
विश्लेषकों के विचार में प्रवासियों की त्रासदी अमेरिका की गड़बड़ प्रवासी नीति से प्रत्यक्ष रूप से भी जुड़ती है। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के पूर्व वरिष्ठ सलाहकार कृष विग्नाराजा ने कहा था कि अमेरिका की गलत प्रवासी नीति अधिकांश त्रासदियों के लिए जिम्मेदार है। अमेरिका ने मानवीय सुरक्षा व्यवस्था और प्रभावी प्रवासी ढांचा स्थापित नहीं किया, जिससे जान का नुकसान होता है।
इसके अलावा प्रवासी सवाल आजकल अमेरिका की दो प्रमुख पार्टियों के संघर्ष का राजनीतिक उपकरण बन चुका है। वे अकसर इस मुद्दे को लेकर एक दूसरे पर आरोप लगाते हैं। इसलिए इस पर समानता बनाना काफी मुश्किल है।
इधर के कुछ सालों में मीडिया ने प्रवासियों के साथ संबंधित अमेरिकी विभागों के बुरे व्यवहार का पदार्फाश किया। व्यापक लैटिन अमेरिकी प्रवासियों के लिए अमेरिकी सपना अंत में अमेरिकी दु:स्वप्न बन जाता है।
(साभार---चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
--आईएएनएस
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