अपोलोमेडिक्स लखनऊ में 16 वर्षीय किशोर की सफल टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी

लखनऊ। अपोलो हॉस्पिटल्स, लखनऊ ने हड्डी व जोड़ प्रत्यारोपण चिकित्सा के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। यहां महज 16 वर्षीय किशोर की सफल टोटल हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी कर अस्पताल ने क्षेत्र का पहला ऐसा संस्थान बनने का गौरव प्राप्त किया है, जिसने इतनी कम उम्र में यह जटिल ऑपरेशन किया हो।
जानकारी के अनुसार, इस किशोर को 9 वर्ष की आयु में कूल्हे की हड्डी (फीमर) में फ्रैक्चर हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के चलते समय पर उपचार नहीं हो पाया, जिसके कारण फीमर हेड धीरे-धीरे क्षतिग्रस्त होता गया और पूरी तरह समाप्त हो गया। इससे किशोर को तेज दर्द, प्रभावित पैर की लंबाई में अंतर और चलने-फिरने में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गईं।
कर्नल (डॉ.) नरेंद्र कुमार, डायरेक्टर – ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट, अपोलो हॉस्पिटल्स लखनऊ ने बताया कि जब मरीज अस्पताल पहुंचा, तब वह दर्द के चलते मुश्किल से चल पा रहा था और उसकी चाल भी असंतुलित हो चुकी थी। ऐसी स्थिति में आमतौर पर सर्जरी वयस्क अवस्था में की जाती है जब हड्डियां पूरी तरह विकसित हो चुकी होती हैं। लेकिन किशोर की गंभीर शारीरिक स्थिति को देखते हुए तत्काल सर्जिकल हस्तक्षेप जरूरी हो गया।
सर्जरी से पहले मरीज और उसके परिजनों को संभावित जोखिम और लाभों के बारे में विस्तार से बताया गया। लगभग डेढ़ घंटे चली इस जटिल सर्जरी में टाइटेनियम सॉकेट और स्टेम के साथ लेटेस्ट डेल्टा सिरैमिक बॉल इम्प्लांट का उपयोग किया गया, जो उच्च टिकाऊपन और बेहतर गतिशीलता सुनिश्चित करता है। सर्जरी के बाद मात्र पांच दिनों में मरीज को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई और कुछ ही हफ्तों में वह बिना किसी सहारे के चलने लगा।
डॉ. मयंक सोमानी, एमडी और सीईओ, अपोलो हॉस्पिटल्स लखनऊ ने बताया, "हमारे पास उच्च स्तरीय तकनीक, अत्याधुनिक उपकरण और विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम है, जो देशभर से रेफर होकर आने वाले जटिल मामलों का समाधान करती है। यह सर्जरी हमारे संस्थान की विशेषज्ञता और समर्पण का प्रमाण है।"
डॉ. कुमार ने यह भी स्पष्ट किया कि इस स्थिति को चिकित्सा भाषा में “फीमर नेक फ्रैक्चर की उपेक्षा के कारण फीमर हेड का एब्सॉर्प्शन” कहा जाता है। उन्होंने बताया कि इतनी कम उम्र में हिप रिप्लेसमेंट करना एक अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य होता है क्योंकि इस उम्र में हड्डियों का विकास पूरा नहीं होता और जोड़ के आसपास की मांसपेशियां भी सिकुड़ चुकी होती हैं।
लेकिन इस प्रक्रिया से मरीज को ना सिर्फ दर्द से राहत मिली है, बल्कि वह अब अपने दोनों पैरों पर समान रूप से वजन डाल पा रहा है, जिससे शारीरिक विकास और रीढ़ की स्थिति में भी सुधार होगा। डॉ. कुमार ने ‘वॉल्फ्स लॉ’ का हवाला देते हुए कहा, "फॉर्म फॉलोज फंक्शन", यानी जैसे-जैसे जोड़ सामान्य रूप से कार्य करेगा, वैसे-वैसे शरीर की संरचना में भी सकारात्मक बदलाव आएगा।
यह केस न केवल मेडिकल साइंस की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐसे मरीजों और परिजनों के लिए भी आशा की किरण है जो जटिल ऑर्थोपेडिक समस्याओं से जूझ रहे हैं।