गर्व और गौरव का क्षण: दीपावली का विश्व विरासत सूची में शामिल होना

A moment of pride and glory: Diwali's inclusion in the World Heritage List
 
A moment of pride and glory: Diwali's inclusion in the World Heritage List
(प्रमोद दीक्षित मलय – विभूति फीचर्स)
यूनेस्को की अंतर-सरकारी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर समिति की 20वीं बैठक, जो हाल ही में नई दिल्ली स्थित लाल किले में आयोजित हुई, भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण लेकर आई। इस बैठक में दीपावली को युनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरों की वैश्विक सूची में शामिल किया गया। यह निर्णय न केवल हर भारतीय के लिए गर्व और आनंद का अवसर है, बल्कि विश्व पटल पर सनातन संस्कृति की प्रतिष्ठा, उज्ज्वलता और ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की मानवीय भावना का शक्तिशाली संदेश भी है।

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दीपावली भारत की 16वीं ऐसी अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर बनी है, जो वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त कर चुकी है। यह मान्यता, सीधे-सीधे लोककल्याण के आराधक भगवान श्रीराम की सार्वभौम और सांस्कृतिक भूमिका की स्वीकृति भी है। लंका विजय के बाद जब श्रीराम अयोध्या लौटे थे, तब नगरवासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था—यह परंपरा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकाश के माध्यम से असत्य पर सत्य की विजय, सामाजिक चेतना, सामूहिक उत्साह और मानवीय आदर्शों के प्रसार का प्रतीक है।

राम केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा और सहकार के भाव का स्रोत हैं। उनके जीवन में करुणा, संवेदना, सह-अस्तित्व, समन्वय और समानुभूति के आदर्श झलकते हैं। इसी कारण दीपावली न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि मानव मूल्य और सामाजिक आचरण की प्रेरक धरोहर भी है। दीपावली का वैश्विक सम्मान, इस त्यौहार के व्यापक सांस्कृतिक वैभव को पूरी दुनिया के सामने नए रूप में प्रस्तुत करेगा और विदेशी पर्यटकों को भी भारतीय परंपराओं से परिचित कराएगा।

अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर क्या है?

अमूर्त धरोहर वे परंपराएं, कलाएं, सामाजिक प्रथाएं, शिल्प, अनुष्ठान, लोक ज्ञान और मौखिक परंपराएं हैं, जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होती चली आती हैं और मानव सभ्यता को सांस्कृतिक पहचान प्रदान करती हैं। इनका अनुभव किया जाता है, देखा या छुआ नहीं जा सकता।
दीपावली से पहले भारत की 15 अमूर्त सांस्कृतिक धरोहरें पहले ही इस सूची में शामिल हैं गरबा, दुर्गा पूजा, कुंभ मेला, योग, वैदिक मंत्रोच्चार, कुटियाट्टम, छाऊ नृत्य, कालबेलिया, रामलीला, लद्दाख का बौद्ध जप, मणिपुर संकीर्तन, राममन, पंजाब की धातु शिल्प परंपरा आदि।

विश्व विरासत में भारत की मजबूत स्थिति

यूनेस्को की सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक धरोहर सूची में भारत दुनिया में छठे स्थान पर है। आज तक भारत की 45 धरोहरें इस प्रतिष्ठित सूची का हिस्सा बन चुकी हैं। इनमें अजन्ता-एलोरा, ताजमहल, फतेहपुर सीकरी, हम्पी, कोणार्क, खजुराहो, गोवा के चर्च, जयपुर शहर, शांतिनिकेतन, नालंदा महाविहार, महाबोधि मंदिर सहित कई महत्वपूर्ण स्थल शामिल हैं।

विश्व धरोहर सूची का उद्देश्य

विश्व धरोहर स्थल वे स्थान हैं, जिन्हें ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक या प्राकृतिक महत्व के आधार पर यूनेस्को द्वारा संरक्षित किया जाता है। 1972 में स्थापित इस कार्यक्रम के अंतर्गत पारंपरिक वास्तुकला, स्मारक, गुफाएं, नगर, वन, पर्वत, झीलें, निर्जन क्षेत्र और अब त्योहार, कला, विचार और सांस्कृतिक परंपराएं को भी संरक्षण प्रदान किया जाता है।
दिसंबर 2025 तक दुनिया के 170 देशों की 1250 से अधिक धरोहरें इस सूची का हिस्सा बन चुकी हैं। भारत ने इस संधि को 14 नवंबर 1977 को स्वीकार किया था। किसी धरोहर को सूची में शामिल होने के लिए यूनेस्को द्वारा निर्धारित 10 में से कम से कम एक मानदंड पूरा करना आवश्यक होता है।

अगली पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक विरासत

यूनेस्को का यह प्रयास मानवता के लिए अनमोल है, क्योंकि इससे सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों का संरक्षण संभव हो पाता है। यह न सिर्फ हमारी विरासत को सुरक्षित रखता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अवसर प्रदान करता है।
दीपावली का विश्व धरोहर में शामिल होना, भारतीय संस्कृति के लिए एक गौरवपूर्ण अध्याय है—ऐसा क्षण, जो देश की आत्मा, परंपरा और मानवीय मूल्यों के उज्ज्वल भविष्य की अनुभूति कराता है।

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