मध्यप्रदेश में सत्ता–संगठन का नया मॉडल

मोहन–खंडेलवाल की जोड़ी और कार्यकर्ता केंद्रित राजनीति की नई दिशा
 
मोहन–खंडेलवाल की जोड़ी और कार्यकर्ता केंद्रित राजनीति की नई दिशा
(पवन वर्मा – विभूति फीचर्स)
मध्यप्रदेश की राजनीति एक महत्वपूर्ण बदलाव से गुजर रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल की मजबूत जोड़ी ने ऐसा शासन–संगठन मॉडल तैयार किया है, जिसने पार्टी की पारंपरिक कार्यशैली को नई दिशा दी है। यह मॉडल इस मूल विचार पर आधारित है कि भाजपा की सबसे बड़ी शक्ति उसका कार्यकर्ता है — और जब कार्यकर्ता मजबूत होता है, तो संगठन और सत्ता दोनों मजबूत होते हैं।

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कार्यकर्ताओं के लिए सीधे संवाद का मंच – एक अनोखी पहल

इन दिनों प्रदेश भाजपा कार्यालय में एक बेहद प्रभावशाली व्यवस्था लागू है— हर दिन दो मंत्री पार्टी कार्यालय में बैठकर कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुनते हैं।
पहली नज़र में यह व्यवस्था सरल लग सकती है, लेकिन यह भारतीय राजनीति में एक मौन क्रांति की तरह है। सामान्यतः मंत्री मंत्रालयों में व्यस्त रहते हैं और कार्यकर्ता सीधे मिलने का अवसर बहुत कम पाते हैं। लेकिन इस नए मॉडल ने वर्षों से बनी इस दूरी को खत्म कर दिया है।
अब कार्यकर्ता बिना किसी जटिल प्रक्रिया, अनुमति या प्रतीक्षा के,निर्धारित समय पर सीधे मंत्री से मिल सकता है, अपनी समस्या रख सकता है और समाधान की स्पष्ट दिशा प्राप्त कर सकता है।

सत्ता–संगठन की दूरी कम करने का सफल प्रयास

लंबे समय तक सत्ता में रहने वाले दलों में अक्सर सरकार और संगठन के बीच दूरी बढ़ने लगती है। लेकिन मध्यप्रदेश में यह स्थिति उलट साबित हो रही है।
  • मंत्री कार्यकर्ताओं की बात को गंभीरता से सुन रहे हैं।
  • विभागीय समस्याओं का समाधान उसी समय शुरू हो जाता है।
  • दूसरे विभाग से जुड़े मामलों में संबंधित मंत्री को तत्काल सूचना दी जाती है।
  • कार्यकर्ताओं का भरोसा मजबूत हो रहा है कि उनकी बात सरकार तक सीधे और प्रभावी रूप से पहुंच रही है।
  • यह भरोसा ही संगठन की वास्तविक पूंजी है।
मोहन–खंडेलवाल के तालमेल ने खोली नई दिशा
इस मॉडल की सफलता का आधार दोनों नेताओं के बीच स्वाभाविक तालमेल है।
डॉ. मोहन यादव अपने स्पष्ट निर्णय, अनुशासित प्रशासन और सीधे संवाद के लिए जाने जाते हैं।
हेमंत खंडेलवाल अपनी सहजता, संगठन की गहरी समझ और संवादक्षम नेतृत्व के लिए पहचाने जाते हैं।
दोनों का एक ही लक्ष्य है— कार्यकर्ता को केंद्र में रखना और उसे सम्मान व समाधान दोनों देना।
सक्रियता वापस लौटी, संगठन हुआ मजबूत
इस नई प्रणाली का असर यह हुआ है कि:
निष्क्रिय पड़े कार्यकर्ता भी अब सक्रिय होकर भोपाल पहुंच रहे हैं।
पुराने असंतोष और दूरी का भाव कम हुआ है।
संगठन में उत्साह और ऊर्जा की नई लहर दिखाई दे रही है।
यह मॉडल भाजपा को न सिर्फ सत्ता में, बल्कि संगठनात्मक क्षमता में भी मजबूत कर रहा है।

विपक्ष पर भी दबाव

जब सत्ता और संगठन दोनों एक साथ सक्रिय हों, तो विपक्ष के लिए चुनौती बढ़ना स्वाभाविक है। भाजपा की यह निरंतर संवाद-आधारित कार्यप्रणाली कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों पर दबाव बना रही है, क्योंकि यह मॉडल केवल अभियान नहीं, बल्कि निरंतर चलने वाला शासन–संगठन ढांचा है।
प्रशासनिक तंत्र में भी सकारात्मक बदलाव
मंत्री जब प्रतिदिन सैकड़ों कार्यकर्ताओं से संवाद करते हैं तो:
विभागीय अधिकारियों पर कार्य गति तेज रखने का दबाव बढ़ता है।
फाइल निपटान में तेजी आती है।
तंत्र अधिक संवेदनशील और जवाबदेह होता है।
जमीनी स्तर की समस्याएं सीधे सरकार तक पहुंचती हैं।
यह मॉडल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि यह प्रशासन, संगठन और सत्ता — तीनों के बीच संतुलन स्थापित करता है।

राज्य की नई राजनीतिक संस्कृति

मध्यप्रदेश आज एक ऐसी राजनीतिक प्रयोगशाला बना है जहां कार्यकर्ता-आधारित शासन और संवाद-प्रधान संगठनात्मक संस्कृति आकार ले रही है।
यह केवल प्रशासनिक सुधार नहीं, बल्कि नई राजनीतिक सोच का उदय है— एक ऐसी सोच जिसमें सत्ता कार्यकर्ता तक जाती है और कार्यकर्ता सत्ता को मजबूत बनाता है।
मोहन–खंडेलवाल मॉडल ने यह साबित कर दिया है कि यदि नेतृत्व इच्छाशक्ति दिखाए, संवाद को प्राथमिकता दे और कार्यकर्ता को सम्मान दे, तो प्रशासन भी प्रभावी बनता है और संगठन भी मजबूत। मध्यप्रदेश में उभरता यह नया मॉडल आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति के लिए एक उदाहरण बन सकता है

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