नारी शक्ति का प्रतीक: करवा चौथ—आस्था, प्रेम और समर्पण का पर्व

A symbol of women power: Karva Chauth—a festival of faith, love, and devotion
 
नारी शक्ति का प्रतीक: करवा चौथ—आस्था, प्रेम और समर्पण का पर्व
(विजय कुमार शर्मा-विनायक फीचर्स)  भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपराओं में करवा चौथ एक ऐसा पर्व है, जो विवाहित महिलाओं की अटूट आस्था, गहन प्रेम और समर्पण का जीवंत प्रतीक माना जाता है। यह पर्व प्रतिवर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन, विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं। यह उत्सव धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक, तीनों ही स्तरों पर गहरा महत्व रखता है।

परंपरा, पूजन और प्रेम का अद्भुत दृश्य

करवा चौथ के व्रत की शुरुआत भोर में 'सरगी' ग्रहण करने से होती है, जो सास द्वारा अपनी बहू को स्नेह और आशीर्वाद के रूप में दी जाती है। इसके बाद महिलाएँ दिन भर अन्न और जल का त्याग कर उपवास रखती हैं।

संध्या के समय, महिलाएँ सोलह श्रृंगार से सुसज्जित होकर पारंपरिक वेशभूषा में एकत्र होती हैं। इस समय करवा (मिट्टी का छोटा घड़ा) और चौथ माता की प्रतिमा की विधिवत आराधना की जाती है, और एक साथ कथा सुनकर पारिवारिक सौहार्द का माहौल बनाया जाता है।

व्रत का सबसे प्रतीकात्मक और भावनात्मक क्षण रात में आता है, जब चंद्रमा उदित होता है। महिलाएँ छलनी से पहले चंद्रमा के दर्शन करती हैं और उन्हें अर्घ्य अर्पित करती हैं। इसके बाद, उसी छलनी से अपने पति का चेहरा देखती हैं। यह दृश्य वैवाहिक जीवन में विश्वास, निष्ठा और परस्पर समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। अंत में, पति के हाथों जल ग्रहण करके व्रत का समापन किया जाता है।

आधुनिकता की कसौटी पर करवा चौथ: स्वरूप और व्यवसायीकरण

करवा चौथ केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह परिवार में प्रेम, निष्ठा और एकता को सुदृढ़ करने का माध्यम भी है। यह पर्व सिखाता है कि वैवाहिक बंधन में विश्वास, त्याग और समर्पण ही सबसे बड़ी शक्ति हैं। आधुनिक जीवनशैली में बदलाव आने के बावजूद, यह पर्व उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता रहा है।

दिखावे और भौतिकता का बढ़ता प्रभाव

हालांकि, समय के साथ इस पवित्र पर्व के स्वरूप में कुछ बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जहाँ यह पर्व कभी सादगी, प्रेम और आस्था का पर्याय था, वहीं आज इसके आयोजन में दिखावे और भौतिकता का प्रभाव हावी होता दिख रहा है:

  1. पूजन सामग्री में बदलाव: पहले मिट्टी के करवे से सादगीपूर्ण पूजा की जाती थी, लेकिन अब उनकी जगह महंगे डिज़ाइनर पूजन थाल और सजावटी वस्तुएँ ले चुकी हैं। चांदी की छलनी और थाली अब एक तरह के स्टेटस सिंबल बन गए हैं।

  2. भावना से ध्यान हटना: पारंपरिक कथा, त्याग और भावना का स्थान अब सोशल मीडिया पोस्ट, ग्लैमरस फोटोशूट और फैशन प्रतियोगिताओं ने ले लिया है।

'फेस्टिव ब्रांड' के रूप में उभरता करवा चौथ

बाज़ार ने करवा चौथ को एक 'फेस्टिव ब्रांड' में बदल दिया है। कपड़े, गहने, सौंदर्य प्रसाधन (मेकअप) और गिफ्ट आइटम की बिक्री इस दिन चरम पर होती है। होटल और ब्यूटी पार्लर भी विशेष रूप से "करवा चौथ पैकेज" लॉन्च करते हैं। यह सब मिलकर इस पर्व को एक व्यावसायिक उत्सव का रूप दे रहे हैं, जिससे इसकी मूल भावना कहीं पीछे छूटती जा रही है।

गरिमा बनाए रखना आवश्यक

यह आस्था का पर्व केवल सौंदर्य या दिखावे का माध्यम नहीं है। यह त्याग, विश्वास और गहरे पारिवारिक संबंधों को पुनर्जीवित करने का अवसर है। यह आवश्यक है कि हम आधुनिकता को अपनाते हुए भी इस पर्व की मूल भावना—प्रेम, समर्पण और आस्था—को सुरक्षित रखें। तभी करवा चौथ अपनी वास्तविक गरिमा और महत्व को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचा पाएगा।

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