आत्मनिर्भरता का प्रतीक: दुग्धशाला की शक्ति और महत्त्व

A symbol of self -sufficiency: the power and importance of the milkman
 
आत्मनिर्भरता का प्रतीक: दुग्धशाला की शक्ति और महत्त्व

लेखक: डॉ. शंकर सुवन सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, फूड एंड डेयरी इंजीनियरिंग विभाग
सैम हिग्गिनबॉटम यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर, टेक्नोलॉजी एंड साइंसेज, नैनी, प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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दूध: एक दिव्य पोषण तत्व

दूध केवल एक आहार नहीं, बल्कि सम्पूर्ण पोषण का स्रोत है। यह न केवल भूख मिटाता है, बल्कि शरीर की अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति भी करता है। दूध में कैल्शियम, मैग्नीशियम, जिंक, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, पोटैशियम, फोलेट्स, विटामिन A, D, B-12, राइबोफ्लेविन और उच्च गुणवत्ता वाला प्रोटीन भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

गाय के स्किम्ड दूध में कोलेस्ट्रॉल 2-5 मिलीग्राम प्रति 100 मि.ली. होता है, जबकि फुल क्रीम दूध में यह मात्रा 10-15 मिलीग्राम तक हो सकती है। एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 300 मिलीग्राम कोलेस्ट्रॉल की सीमा सुरक्षित मानी जाती है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दूध का सेवन हृदय के लिए भी सुरक्षित है।

दूध में पाए जाने वाले दो प्रमुख प्रोटीन होते हैं — केसिन और व्हेय। केसिन दूध में 80% और व्हेय 20% तक पाया जाता है। दूध की सफेदी का कारण भी यही प्रोटीन और उसमें मौजूद वसा (फैट) के कण होते हैं, जो प्रकाश को फैला देते हैं।

गाय का दूध हल्का पीला और भैंस का दूध अधिक सफेद होता है, इसका कारण भी इनमें मौजूद केरोटीन और फैट की मात्रा है। केरोटीन जहां दूध को पीला बनाता है, वहीं फैट और केसिन उसकी सफेदी को बढ़ाते हैं।

डेयरी: दूध की दिव्यता को संभालने वाला केंद्र

डेयरी, जिसे तकनीकी भाषा में "दुग्धशाला" कहा जाता है, दूध के संग्रह, प्रसंस्करण और वितरण का प्रमुख केंद्र है। यह केवल दूध नहीं, बल्कि उससे जुड़े विभिन्न उत्पादों जैसे दही, पनीर, छाछ, स्किम मिल्क, व्हेय, आइसक्रीम और घी के अवशेष आदि को भी तैयार करती है।

डेयरी एक माली की तरह होती है, जो बगिया रूपी दूध की देखभाल करती है। वह उसकी गुणवत्ता को संरक्षित रखती है और उपभोक्ताओं तक ताजा और शुद्ध रूप में पहुँचाने का काम करती है। इस प्रक्रिया को तकनीकी रूप से शेल्फ लाइफ मैनेजमेंट कहा जाता है।

भारत में डेयरी उद्योग और आत्मनिर्भरता

भारत, विश्व में सबसे अधिक दूध उत्पादन करने वाला देश है। यहाँ की प्रमुख डेयरियों में अमूल, पारस, ज्ञान, सुधा और नमस्ते इंडिया जैसे ब्रांड शामिल हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में अनेक स्थानीय डेयरियाँ भी प्रमाणित रूप से काम कर रही हैं और दुग्ध उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित कर रही हैं।

वर्ष 2025 में जब विश्व दुग्ध दिवस की 25वीं वर्षगाँठ मनाई जाएगी, तब इसका विषय है — "आइए डेयरी की शक्ति का जश्न मनाएं"। यह तभी सार्थक होगा जब हर घर तक शुद्ध और पौष्टिक दुग्ध उत्पाद पहुँचें।

भारत सरकार भी डेयरी क्षेत्र को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई योजनाएँ चला रही है, जैसे:

  • डेयरी उद्यमिता विकास योजना (DEDS)

  • नंदिनी कृषक समृद्धि योजना

  • कामधेनु डेयरी योजना

  • नंद बाबा डेयरी मिशन

ये योजनाएँ युवाओं और किसानों को रोजगार व आत्मनिर्भरता की राह पर ले जाने में सहायक हैं।

श्वेत क्रांति और डॉ. वर्गीस कुरियन का योगदान

भारतीय डेयरी क्रांति के जनक डॉ. वर्गीस कुरियन ने ‘श्वेत क्रांति’ के माध्यम से देश को दुग्ध उत्पादन के मामले में आत्मनिर्भर बनाया। उनकी दूरदृष्टि और नेतृत्व ने भारत को दुग्ध के क्षेत्र में अग्रणी बना दिया।

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