पुरातत्व और पत्रकारिता को समर्पित एक जीवंत यात्रा: श्री दिनेश चंद्र वर्मा
(लेखक: पवन वर्मा, विनायक फीचर्स)
भारत में इतिहास, पुरातत्व और धार्मिक विषयों पर गहन पकड़ रखने वाले लेखक और पत्रकार श्री दिनेश चंद्र वर्मा का जीवन संघर्ष, सत्य और लेखनी के प्रति निष्ठा का जीवंत उदाहरण रहा है। उन्होंने न सिर्फ देशभर में बल्कि विदेशों में भी भारतीय पत्रकारिता और सांस्कृतिक विरासत का नाम रोशन किया।
उनके आलेख धर्मयुग, कादंबिनी, नवनीत, साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी प्रमुख पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुए। चीन, जापान, नेपाल और श्रीलंका के प्रकाशनों में उनके लेखों का अनुवाद हुआ, जिनमें भारत के गौरवशाली अतीत, पुरातत्व और धार्मिक स्थलों की झलक मिलती है।
एक छोटे शहर से राष्ट्रीय पहचान तक का सफर
29 जुलाई 1944 को मध्यप्रदेश के शमशाबाद में जन्मे श्री वर्मा ने अपनी स्कूली शिक्षा अरबरिया गाँव और विदिशा में प्राप्त की। पत्रकारिता का बीजारोपण उन्होंने मात्र 16 वर्ष की उम्र में 'चिंगारी' अखबार से किया।
संवेदनशील पत्रकारिता की मिसाल
1965 में विदिशा की बाढ़ पर उनकी खोजपरक रिपोर्ट ने पहली बार प्रशासनिक लापरवाही को उजागर किया, जिससे वे चर्चा में आ गए। भोपाल के नवभारत से लेकर इंदौर जागरण, दैनिक भास्कर और इंदौर समाचार तक उन्होंने अपनी कलम का परचम लहराया।
तीस वर्ष की उम्र में प्रकाशित हुई पुस्तक
30 वर्ष की आयु में श्री वर्मा ने ‘एक और अवतार: इंदिरा गांधी’ नामक पुस्तक लिखी, जिसकी भूमिका तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद सेठी ने लिखी थी।
राजनीति और समाज की सच्चाइयों को उजागर करने वाली लेखनी
उन्होंने धर्मयुग, कादंबिनी, भू-भारती, अवकाश जैसी पत्रिकाओं में राजनीति, सामाजिक विषयों और सरकारी नीतियों पर बेबाक लेख लिखे। कई बार उनके आलेख सरकारों को कठघरे में खड़ा कर देते थे।
पुरातत्व और इतिहास के ज्ञाता
सांची, सतधारा, उदयगिरी, विजय मंदिर, भोजपुर, ग्यारसपुर, नीलकंठेश्वर मंदिर जैसे स्थलों पर आधारित उनके शोधपरक आलेखों ने न केवल पाठकों को जागरूक किया, बल्कि राज्यसभा तक में चर्चा का विषय बने।
विदिशा की परंपराओं को देश-दुनिया से जोड़ा
उन्होंने विदिशा जिले के रावणदुपारिया गांव में रावण की पूजा की परंपरा, गणेश प्रतिमा और सांची की अस्थि तस्करी पर भी प्रमुख लेख लिखे। उनकी लेखनी के माध्यम से विदिशा को वैश्विक पहचान मिली।
धार्मिक विषयों पर सशक्त पकड़
कुंभ पर्व, मंगलनाथ मंदिर, नाग पूजा, सोमनाथ तुल्य भोजपुर शिव मंदिर पर उनके लेख आज भी धार्मिक शोधकर्ताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं।
'विनायक फीचर्स' की स्थापना
1994 में उन्होंने ‘विनायक फीचर्स’ नाम से फीचर सेवा की शुरुआत की, जो नए और उभरते लेखकों के लिए मंच बनी। यह सेवा प्रदेश के कई समाचार पत्रों में लोकप्रिय रही।
नदियों और पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता
श्री वर्मा ने बेतवा नदी सहित अन्य नदियों की सफाई, संरक्षण और जनजागरूकता के लिए अभियान चलाया। उन्होंने इस पर लेखों की शृंखला लिखकर समाज और शासन को चेताया।
बेबाक, निर्भीक और मूल्यों से समझौता न करने वाला व्यक्तित्व
उनकी लेखनी ने कई बार राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में असहजता उत्पन्न की, पर वे सदा सच्चाई के पक्षधर रहे। उनके संपर्क में बड़े नेता और साहित्यकार रहे, लेकिन उन्होंने कभी पत्रकारिता को व्यापार नहीं बनने दिया।
सच्चे अर्थों में ‘अजातशत्रु’
श्री वर्मा ने सिद्ध किया कि पत्रकारिता केवल पेशा नहीं, जनसेवा और इतिहास को जीवंत रखने का माध्यम भी है। सच्चाई, निडरता और संस्कृति के प्रति आस्था उनकी लेखनी के मूल भाव रहे।
उनका जीवन प्रेरणा है उन सभी के लिए जो पत्रकारिता में मूल्य, उद्देश्य और संवेदना के साथ कुछ सार्थक करना चाहते हैं। विनायक फीचर्स के माध्यम से उन्होंने लेखन को जन-जन तक पहुँचाया और अपने अंतिम समय तक सक्रिय रहे।
