पंजाब में आम आदमी पार्टी के चार वर्ष : वादों और हकीकत का विश्लेषण

Four Years of Aam Aadmi Party in Punjab: An Analysis of Promises and Reality
 
पंजाब में आम आदमी पार्टी के चार वर्ष : वादों और हकीकत का विश्लेषण

(सुभाष आनंद — विनायक फीचर्स)

पंजाब में आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार के चार वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस दौरान सरकार की ओर से विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों के कई दावे पेश किए गए हैं, जिनकी सच्चाई को समझने के लिए घोषणापत्र और जमीन पर हुए कामों का गंभीर मूल्यांकन आवश्यक है।

चुनावी वादों का अधूरा सफर

AAP ने 2022 विधानसभा चुनाव के दौरान कई बड़े वादे किए थे। जनता ने पारंपरिक पार्टियों—अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस—से निराश होकर इस नई राजनीतिक ताकत को ऐतिहासिक जनसमर्थन दिया और 92 सीटें जिताकर सत्ता में पहुंचाया। लोगों को उम्मीद थी कि परिवर्तन नई ऊर्जा और सुविधा लेकर आएगा। लेकिन चार वर्षों के बाद जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की स्थिति स्पष्ट रूप से कमजोर दिखाई देती है।

राज्य की आर्थिक स्थिति और बढ़ता कर्ज

राज्य की वित्तीय स्थिति चिंताजनक हो चुकी है। उपलब्ध सूचनाओं के अनुसार, मौजूदा सरकार के कार्यकाल में कर्ज में तेजी से वृद्धि हुई है, जिससे पंजाब का प्रति व्यक्ति ऋण भी बढ़ा है। यह दावा किया जा रहा है कि जितना कर्ज पिछली सरकारों ने संयुक्त रूप से 15 वर्षों में नहीं लिया, उससे अधिक कर्ज वर्तमान सरकार ने केवल चार वर्षों में ले लिया है। राज्य की आय का बड़ा हिस्सा ब्याज चुकाने में ही समाप्त हो रहा है, जिससे विकास कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

नशे के खिलाफ अभियान—जमीन पर स्थितियां जस की तस

पंजाब में नशे की समस्या किसी भी सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती रही है। आम आदमी पार्टी ने सत्ता में आने पर बड़े स्तर पर कार्रवाई का भरोसा दिया था, लेकिन धरातल पर हालात में उल्लेखनीय सुधार देखने को नहीं मिल रहा। विपक्षी दलों का आरोप है कि नशे का कारोबार गांवों से लेकर शहरों तक जारी है और पुलिस तंत्र की मिलीभगत पर भी सवाल उठ रहे हैं। यहां तक कि कुछ जनप्रतिनिधियों का नाम भी इस अवैध कारोबार से जोड़कर देखा जा रहा है।

माइनिंग, रोजगार और उद्योग—वादों से अलग हकीकत

मुख्यमंत्री द्वारा ‘किसी भी माफिया को पनपने न देने’ की घोषणाओं के बावजूद अवैध माइनिंग को लेकर लगातार विवाद सामने आते रहे हैं। युवाओं को सरकारी नौकरियां देने के दावों पर भी सवाल उठ रहे हैं। बताया जाता है कि जारी भर्ती में बड़ी संख्या में बाहर के राज्यों के अभ्यर्थी शामिल हैं।

सस्ती बिजली और सुचारु उद्योग नीति के वादे भी उम्मीदों के अनुरूप परिणाम नहीं दे पाए हैं। किसानों की समस्याएँ—खाद की कमी, कर्ज माफी और मुआवज़े—अब भी समाधान की प्रतीक्षा में हैं। कर्मचारी संगठनों में भी नाराज़गी बनी हुई है और डीए सहित कई मुद्दे लंबित हैं।

सड़कें, पेंशन, स्वास्थ्य और शिक्षा—अधूरे दावे

राज्य के कई क्षेत्रों में सड़कों की हालत खराब बताई जा रही है। वृद्धावस्था पेंशन बढ़ाने, महिलाओं को ₹1000 प्रतिमाह देने और 12 नए मेडिकल कॉलेज स्थापित करने जैसे वादे अब भी कागजों में ही अधिक दिखाई देते हैं।

जनभावनाएं और आगामी चुनाव

चार वर्षों के बाद कई लोग स्वयं को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। भ्रष्टाचार के ‘जीरो टॉलरेंस’ के दावे भी व्यवहार में उतने प्रभावी नहीं दिखते। अब जब चुनाव नजदीक हैं, सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने घोषणापत्र के शेष वादों को पूरा कर जनता का विश्वास पुनः अर्जित करने की है। आने वाला समय तय करेगा कि आम आदमी पार्टी पंजाब में उम्मीदों को नई दिशा देती है या अधूरे कार्य उस पर भारी पड़ते हैं।

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