इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के बाद अब ब्लॉकचेन वोटिंग सिस्टम की सुगबुगाहट

After the electronic voting machine, now there is a buzz about blockchain voting system
 
After the electronic voting machine, now there is a buzz about blockchain voting system

डॉ. राघवेन्द्र शर्मा-विनायक फीचर्स)   वैश्विक स्तर पर स्थापित सत्य है कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। एक ऐसा देश जहां लगभग डेढ़ अरब लोग निवास करते हैं। जनसंख्या के लिहाज से यह इतना बड़ा आंकड़ा है कि भारत का एक-एक शहर अपने भीतर एक से अधिक राष्ट्र समाहित कर लेने की हद तक फैला हुआ है। फिर भी हमारे देश के नागरिक बेहद आधुनिक चुनाव पद्धति के माध्यम से ग्रामीण, शहरी, जनपदीय, जिला, प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर भली भांति हर प्रकार की सरकारों का गठन लोकतांत्रिक प्रणाली से कर रहे हैं। आज जब स्वयं को विकासशील और विकसित कहने वाले अनेक राष्ट्र मतपत्र आधारित चुनाव प्रणाली में ही उलझे हुए हैं,

After the electronic voting machine, now there is a buzz about blockchain voting system

तब हमारा भारत देश अत्याधुनिक चुनाव प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन तक का सफर तय कर चुका है। एक जमाना ऐसा था जब हमारे यहां भी मतपत्र प्रणाली पर आधारित चुनाव प्रक्रिया व्यवहार में लाई जाती थी। लेकिन इस देश ने और देश के चुनाव आयोग ने मतपत्र प्रणाली पर आधारित चुनाव प्रक्रिया अपनाते हुए अनेक प्रतिकूल, बेहद खतरनाक परिणाम भी देखे।

कई दशकों तक येन केन प्रकारेण सत्ता पर काबिज बने रहने अथवा सत्ता पर काबिज होने के लिए मतदान प्रणाली की सात्विकता का हरण किया जाता रहा। जिसकी लाठी उसकी भैंस की तर्ज पर अनेक अवसरवादी, सत्ता लोलुप और नैतिकता से लगभग नाता तोड़ चुके घाघ राजनेता बूथ कैप्चरिंग करते रहे। नकली मत पेटियों से असली मत पेटियां बदली जाती रहीं। चुनावी टीम को एक प्रकार से अपहृत करते हुए मनपसंद उम्मीदवार के चुनाव चिन्ह पर यंत्रवत ठप्पे लगाए जाते रहे। इस पाप पूर्ण कृत्य का विरोध करने पर जागरूक मतदाताओं, चुनाव कराने वाले कर्मचारियों, अधिकारियों, पत्रकारों को मौत के घाट उतारा जाता रहा। फल स्वरुप एक समय ऐसा भी आया जब गांव की पंचायत से लेकर देश की लोकसभा तक, विभिन्न सदनों में, बाहुबल के बल पर जीत कर आए, आपराधिक पृष्ठभूमि के जनप्रतिनिधियों की संख्या चिंताजनक रूप से बढ़ गई। जब देश के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न चुनाव रक्त रंजित होने लगे, तब देश के प्रबुद्ध वर्ग को चिंता हुई‌। यह विमर्श किए जाने लगे कि ऐसा क्या किया जाए, जिससे चुनाव में रक्तपात ना हो। निर्वाचित होकर भी वही लोग सदन में पहुंचे मतदाता जिन्हें स्वेच्छा से चुनना चाहते हों। तब देश के सामने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का विकल्प सामने आया। तमाम अध्ययनों के बाद, कोई खामी शेष न रह जाए यह सुनिश्चित करने के बाद, अपराधी किस्म के नेता बूथ कैप्चरिंग ना कर पाएं यह संतुष्टि करने के बाद, अंततः देश ने ईवीएम यानि कि इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आधारित चुनाव प्रणाली को अपना लिया।

इस प्रकार वर्ष 1982 में केरल राज्य के उत्तरी पारावुर विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में पहली बार ईवीएम आधारित चुनाव प्रणाली का इस्तेमाल किया गया। यह चुनाव उम्मीद से कहीं आगे जाकर शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हुआ। मतदान के परिणाम भी पारंपरिक मत पत्रों पर आधारित चुनाव प्रणाली की अपेक्षा बहुत जल्दी प्राप्त हो गए। अपवाद स्वरूप प्राप्त बेहद सीमित आपत्तियों के अलावा कोई उल्लेखनीय खामी सामने नहीं आई, जिसके चलते इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आधारित चुनाव प्रणाली को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया। बाद में जब विधानसभाओं और लोकसभा चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का प्रयोग शुरू हुआ तो इसकी पारदर्शिता और सात्विकता पर अनेक उंगलियां उठीं। फल स्वरुप देश के चुनाव आयोग ने राज्यसभा, लोकसभा, विभिन्न प्रांतो की विधानसभाओं के अलावा कलेक्टरेटों में, और जहां तक संभव हो सकता था वहां तक इन मशीनों का प्रदर्शन किया। सभी स्तर के आम और खास लोगों को इसकी प्रक्रिया बताई व दिखाई गई। साथ में शिकायतें सुझाव एवं आपत्तियां मंगाई गईं। हर एक शिकायत, आपत्ति और सुझाव पर बारीकी से विचार विमर्श हुआ। जो सुझाव उचित लगे उन्हें व्यवहार में लाया गया। जिन शिकायतों अथवा आपत्तियों में तार्किकता दिखाई दी,

उन्हें पूरी ईमानदारी से निराकृत किया गया। जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की सात्विकता, उनकी पारदर्शिता को लेकर व्यापक स्तर पर संतुष्टि काबिज हो गई, तब कहीं जाकर इस चुनाव प्रणाली को वृहद स्तर पर व्यवहार में लाया गया। यह बात और है कि चुनाव में मुंह की खाने वाले राजनेता और राजनीतिक दल, जीतने वाले सत्ताधारी दल पर और चुनाव आयोग पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में धांधलियां करने के आरोप मढ़ते रहे। लेकिन वह लोग कभी भी कोई तार्किक तथ्य सामने ना रख सके, जिससे उनके आरोपों को सही न माना गया। वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन आधारित चुनाव प्रणाली भली भांति चुनावी दायित्वों का निर्वहन कर रही है। सब कुछ ठीक-ठाक होने के बावजूद केवल चुनाव आयोग ही नहीं, अपितु देश इस बात को लेकर चिंतित है कि हमारे यहां मतदान का प्रतिशत अपेक्षाकृत अभी कम ही बना हुआ है। इस समस्या को लेकर जो तथ्य सामने आ रहे हैं, उनके मुताबिक देश के नागरिक बार-बार के चुनावों से तंग आ चुके हैं।

बात सही भी है, कोई साल और महीना ऐसा नहीं बीतता जब देश के किसी प्रांत, जिले, नगर, जनपद अथवा गांव में चुनाव संपन्न ना होता हो। परिणाम स्वरूप आम आदमी तो बार-बार के चुनावों से तंग तो आया ही, चुनावी आचार संहिता के बने रहने से विकास कार्य भी प्रभावित  बने रहते हैं । आम आदमी के साथ-साथ विकास की गति को इस मुसीबत से छुटकारा दिलाने के लिए ही देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी एक राष्ट्र एक चुनाव की पुरजोर वकालत कर रहे हैं। यदि यह चुनाव प्रणाली देश में लागू होती है तो फिर आम आदमी को विभिन्न पदों के निर्वाचन हेतु बार-बार मतदान केंद्रों पर नहीं भटकना पड़ेगा। इससे मतदाताओं के अंतर्मन में गहरे तक पैठ चुकी ऊब से छुटकारा मिलेगा तथा मतदान प्रतिशत को बढ़ाया जा सकेगा। इसी के साथ विकास कार्य भी निरंतरता के साथ संपादित किये जा सकेंगे।


इसका मतलब यह हुआ कि भारत की वर्तमान चुनाव प्रणाली बखूबी अपने दायित्वों का निर्वहन कर रही है। उसकी पारदर्शिता और सात्विकता वैश्विक स्तर पर प्रामाणिकता प्राप्त कर चुकी है। ऐसे में यदि एक और नई चुनाव प्रणाली की बात की जाए तो फिर सवाल यह खड़ा होता है कि जब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है तो फिर एक और नया प्रयोग क्यों? इसका जवाब कुछ यूं हो सकता है कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है, यह सोचकर हाथ पर हाथ रखकर बैठते हुए भविष्य की चुनौतियों का सामना नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए - अभी भी चुनाव कराने के लिए लाखों पोलिंग बूथ, करोड़ों चुनाव अधिकारी - कर्मचारी, सुरक्षा बलों की व्यापक स्तर  पर तैनाती, भारी पैमाने पर आर्थिक खर्चे तथा आम आदमी की मतदान केंद्रों तक आवाजाही, वह समस्याएं हैं जिनका हल हमें आज ही ढूंढना होगा। क्योंकि जैसे-जैसे मतदान प्रतिशत बढ़ेगा, व्यवस्थाएं, नियुक्तियां और खर्च भी उसी अनुपात में बढ़ते चले जाने हैं।

इन सभी के निराकरण स्वरूप दिमाग में एक संभावित चुनाव प्रणाली का ध्यान आता है, जिसका नाम है ब्लॉकचेन आधारित वोटिंग सिस्टम। यदि इस प्रणाली पर व्यापक वार्ता, बहस, विमर्श आदि हों तो परिणाम स्वरूप प्राप्त होने वाले सारगर्भित नतीजों से भारतीय लोकतंत्र के लिए नई संभावनाओं को तराशा जा सकता है। लेकिन इसके लिए, पहले हमें यह समझना होगा कि आखिर ब्लॉकचेन आधारित वोटिंग सिस्टम काम कैसे करेगा। 


इसका सबसे पहले चरण होगा मतदाता का पंजीयन। यह आधार कार्ड या किसी डिजिटल आईडी का उपयोग करके चुनाव आयोग द्वारा ऑनलाइन अथवा ऑफलाइन माध्यम से सत्यापित किया जा सकता है।दूसरे क्रम पर आती है मतदान प्रक्रिया। इसे संपन्न कराने के लिए चुनाव आयोग प्रत्येक मतदाता को एक डिजिटल टोकन अथवा कोड प्रेषित करेगा, जिसके माध्यम से मतदाता जहां है वहीं से मान्यता प्राप्त गैजेट को माध्यम बनाकर अपने मनपसंद उम्मीदवार के पक्ष में मतदान कर सकेगा। बदले में उसे डिजिटल स्वरूप में ही तत्काल मतदान की रसीद चुनाव आयोग द्वारा भेजी जा सकेगी। मतदाता द्वारा चुनाव आयोग को भेजा गया उपरोक्त मतदान ब्लॉक चैन सिस्टम में दर्ज होगा जिसे बदला नहीं जा सकेगा।


तीसरे क्रम पर मतगणना की बारी आती है। होगा यह कि जैसे ही मतदान संपन्न होगा और मतगणना के लिए सिस्टम का सर्वर ऑन किया जाएगा, वैसे ही डिजिटल स्वरूप में मतगणना के परिणाम मतदान में इस्तेमाल किए गए गैजेट पर दिखाई देने लगेंगे। मतगणना में कौन आगे और कौन पीछे चल रहा है, यह रुझान भी ठीक उसी प्रकार प्रदर्शित हो सकेंगे जिस प्रकार स्टॉक मार्केट में शेयरों के भाव उतार-चढ़ाव के रूप में देखा जाना प्रचलन में बना हुआ है। अंत में यह परिणाम भी देखा जा सकेगा कि चुनाव में कौन हारा और जीत किसके हिस्से में आई। ब्लॉक चैन वोटिंग सिस्टम के एक्सप्लोरर का उपयोग करके हार जीत का अंतर क्या रहा, यह भी बगैर लंबी प्रतीक्षा के तत्काल देखा जा सकेगा। खास बात यह कि इस चुनाव प्रणाली में भी डिजिटल रूप से दर्ज हुए आंकड़ों में किसी भी प्रकार का हेर फेर नहीं किया जा सकेगा,क्योंकि सारा डेटा इंक्रिप्टेड और सुरक्षित ही रहने वाला है। (विनायक फीचर्स)

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