सूखे के साथ हरे पेडों की लकड़ी भी बिक रही है मण्डी में

Along with dry wood, wood from green trees is also being sold in the market
 
Along with dry wood, wood from green trees is also being sold in the market
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय). होलिका दहन के लिये लकड़ी के लिये ऐशबाग की लकड़ी मण्डी पिछले दो दिनो से पूरी तरह से सजी हुयी है। और लोग एकत्र चन्दे के हिसाब से लकड़ी की खरीदारी कर रहे है। मंहगाई के कारण हालिका का आकार भी घटता जा रहा है। पहले आठों के मेले तक जलने वाली होलिका मात्र दो दिनों में ही जल कर समाप्त हो जाती है।

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ऐशबाग की मण्डी के लकड़ी व्यापारी राम सिंह के अनुसार वह पिछले अठारह साल से केवल होलिका दहन के लिये ही लकड़ी जिसे आम भाषा में मुजंर कहा जाता है को बेचने यहॉ आते है। इस बार आम का मुंजर पांच सौ से साढ़े पांच सौ रूपये कुन्तल है जबकि पकरी और गूलर की लकड़ी भी इस बार महंगाई की वजह से तीन सौ रूपये से चार सौ रूपये कुन्तल के हिसाब से बिक रही है। वही व्यापारी राजेश ने बताया कि वैसे तो आम की ही लकड़ी से होलिका को जलाना चाहिये क्योकि यह पर्यावरण के लिये सही होती है परन्तु सस्ते के चक्कर में लोग पकरी व गूलर के साथ अन्य लकड़ियों से होलिका को जला देते है।

-हरे पेड़ो को भी चढ़ा देते है होलिका की भेंट-
       वैसे देखा जाय तो जिसे मुजंर कहते है वह पेड़ के नीचे जड़ का ठॅूठ होता है जो कई दिनों तक जलता रहता है। हरे पेड़ो की अवैध कटान के बाद यही ठूॅठ होली में जलाने के लिये बेच दिया जाता है। वैसे भी होली के मौके पर काफी तादाद में हरे पेड़ यहॉ बिक जाते है। करीब एक दर्जन के आस-पास व्यापारी यहॉ केवल होली की लकड़ी बेचने के लिये आते है। दबी जुबान में व्यापारियों ने बताया कि स्थानीय पुलिस को भी हिस्सा देना पड़ता है बिना उसके यहॉ अपना माल उतार ही नहीं सकते है।
होली जुलूस में नहीं दिखेगें गजराज-
हांली के दिन कोनेश्वर मंदिर चौक तथा चौपटिया से निकलने वाले होलिका जुलूस की शोभा बढ़ाने वाले गजराज इस बार भी उपस्थित नहीं हो पायेंगे। बढ़ती महगांई और पशु संबंधी नियम इसकी वजह बताई जा रही है।

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