कला दीर्घा अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका, लखनऊ एवं द सेंट्रम, लखनऊ का सहआयोजन
जिससे मन-मस्तिष्क को सुकून मिलने के साथ ही व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ जाती है। वहीं परिणाम भी अप्रत्याशित ढंग से रुचिकर और उच्चगुणवत्तापूर्ण हो जाते हैं। यहीं कलाओं का शिक्षा से अनुस्यूत होना प्रमाणित होता है। देखें तो किसी भी भूभाग में स्थानीय स्तर पर लोककलाएँ अपने अनेक नए रूप-रंगों के साथ विकसित होती हुई, आंचलिक संवेदनाओं से सिक्त हो समकालीन कला-प्रवृत्तियों और प्रयोगों के माध्यम से विभिन्न स्वरूपों में कलाप्रेमियों को अपने रस-रंग से भिगोती, उपस्थित रही हैं। अर्थात समकालीन कला प्रयोग लोक की गोंद से ही जनमते हैं पर कलाओं का रचा जाना और प्रदर्शन के माध्यम से कलाप्रेमियों के बीच उपस्थित होना भी एक ऐसी प्रक्रिया है,
जो समाज और कलाप्रेमियों के संरक्षण के बिना सम्भव नहीं है। इसके बगैर कलाएँ दीर्घजीवी नहीं रह सकतीं और संरक्षण के साथ-साथ प्रोत्साहन और प्रदर्शन का अवसर कलाकारों को सक्षम और सृजनशील भी बनाता है। प्रदर्शन के माध्यम से ही कलाएँ अपने चाहने वालों से जुड़ पाती हैं और कलाकार की कार्यशाला से निकलकर कद्रदान के संग्रह और संरक्षण में पहुँच पाती हैं। कलाग्राही और समाज के सक्षम लोग अपनी-अपनी तरह से कलाओं को सदैव संवर्धन देते रहे हैं। लोकाश्रयी कलाओं का स्वतंत्र और मौलिक रूप में विकास होता है। उसका उद्देश्य भी लोक-संवेदना और आम जन-जीवन की अभिव्यक्ति होता है। इन कलाओं का साहचर्य जितना मनुष्यता के लिए आवश्यक है उतना ही संस्कृति की स्थापना के लिए इनका दस्तावेजीकरण भी। इस क्षेत्र में छिटपुट काम हुआ भी है पर अपर्याप्त।
कलादीर्घा भारतीय कलाओं के विविध स्वरूपों का दस्तावेजीकरण और उसके प्रसार के उद्देश्य से सन 2000 में स्थापित, दृश्य कलाओं की अन्तर्देशीय कला पत्रिका है, जो अपनी उत्कृष्ट कला-सामग्री और सुरुचिपूर्ण-कलेवर के कारण सम्पूर्ण कलाजगत में महत्त्वपूर्ण पत्रिका के रूप में दर्ज की गई है। अब यह पत्रिका अपने रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। कला दीर्घा ने अपने स्थापनावर्ष से लेकर अबतक लखनऊ, पटना, भोपाल, जयपुर, बंगलोर, नई दिल्ली, लंदन, बर्मिंघम, दुबई, मस्कट आदि महानगरों में अनेक कला-गतिविधियों का उल्लेखनीय आयोजन किया है।
आज भी कला दीर्घा की कला-गतिविधियाँ उसी उत्साह से अपनी सक्रिय भागीदारी का निर्वहन कर रही हैं। समय-समय पर यह वरिष्ठ कलाकारों के कलाअवदान का सम्मान करते हुए युवा कलाकारों को अपनी अभिव्यक्ति और नित नए प्रयोगों को कलाप्रेमियों के समक्ष प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान कर रही है। हाल में ही आयोजित कला प्रदर्शनी ‘हौसला’ और ‘वत्सल’ के उपरान्त आज फिर ‘समर्पण’ प्रदर्शनी के साथ उपस्थित है। शिक्षक दिवस इसके लिए विशेष और उपयुक्त अवसर है।
इस अवसर पर रचनात्मकता के साथ एक विशेष प्रस्तुतीकरण के उद्देश्य से कला दीर्घा अंतरराष्ट्रीय दृश्य कला पत्रिका ने समर्पण प्रदर्शनी का आयोजन किया है, जिसमें 20 स्थापित एवं युवा कलाकार सम्मिलित हैं। आचार्य अवधेश मिश्र, आचार्य सरोज रानी , अनिल शर्मा, मांती शर्मा, डॉ फौजदार कुमार, डॉ रीना गौतम, श्रद्धा तिवारी, रणधीर सिंह, डॉ सचिव गौतम, एस के सौरभ, दीक्षा बाजपेई, सौरवी सिंह, निधि चौबे, अवनीश कुमार भारती, सुमित कुमार, सुमित कश्यप, अनुराग गौतम, अर्पिता द्विवेदी, डॉ अनीता वर्मा और जय प्रकाश गुप्ता समर्पण प्रदर्शनी के सहभागी कलाकार हैं। इस प्रदर्शनी में तैल रंग, एक्रिलिक रंग एवं कोलाज माध्यमों का प्रयोग है जिसमें सामाजिक, राजनीतिक एवं दैनिक जीवन से संबंधित विभिन्न विषयों को अपनी अपनी शैलियों में कलाकारों ने चित्रण किया है।
कला दीर्घा के संपादक अवधेश मिश्र ने कहा कि कलाएं हमें जीवन देती हैं। हम कलाओं के साहचर्य से मनुष्यता की ओर बढ़ते हैं। हमारा जीवन रंजित और समरस हो जाता है। इसलिए समाज का भी दायित्व है कि कलाओं के संवर्धन और संरक्षण के लिए हर संभव प्रयास करें। कला दीर्घा की प्रकाशक डॉ लीना मिश्र ने कहा कि कला दीर्घा अपने रजत जयंती वर्ष में प्रवेश कर रही है। श्रीमती अंजू सिन्हा के प्रकाशन और अवधेश मिश्र के संपादन में स्थापित मानदंडों के अनुरूप इसकी आगे की भी यात्रा जारी रहेगी। यह हम सबके समर्पण और श्रम की सार्थकता है कि कला जगत में इसके अवदान को सराहा जाता है।
द सेंट्रम के स्वामी सर्वेश गोयल ने कहा कि कला संस्कृति के संरक्षण के लिए द सेंट्रम कटिबद्ध है। समर्पण प्रदर्शनी के युवा कलाकारों ने अपने गुरु डॉ अवधेश मिश्र से केक कटवाकर शिक्षक दिवस का उत्सव मनाया और डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के आदर्शों पर चलने का संकल्प लिया। प्रदर्शनी के समन्वयकद्वय डॉ अनीता वर्मा एवं सुमित कुमार ने बताया कि यह प्रदर्शनी 10 सितंबर तक प्रतिदिन 11:00 बजे पूर्वाह्न से 7:00 बजे शाम तक चलेगी।