राष्ट्र सेवा और सुशासन के युगपुरुष अटलजी

Atalji: A towering figure of national service and good governance.
 
राष्ट्र सेवा और सुशासन के युगपुरुष अटलजी

(हितानंद शर्मा — विनायक फीचर्स)

भारत ने करवट ले ली है। देश अब अतीत की कमियों को पीछे छोड़ स्वाभिमान और स्वावलंबन के साथ ‘विकसित भारत’ के संकल्प को पूर्ण करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी वर्ष 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लक्ष्य के साथ पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। अटल जी के सपनों का लोक-कल्याणकारी, शक्तिसंपन्न, अडिग, समर्थ और विश्व का मार्गदर्शन करने वाला राष्ट्र आज साकार होता हुआ दिखाई दे रहा है।

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भारतीय लोकतंत्र के लिए 25 दिसंबर केवल एक जननायक की जन्मतिथि नहीं है। यह उस विचार, संस्कार और राजनीतिक परंपरा का स्मरण दिवस है, जिसने सत्ता को सेवा, राजनीति को मर्यादा और राष्ट्रनीति को नैतिक बल प्रदान किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से लेकर जनसंघ और फिर भारतीय जनता पार्टी तक की उनकी राजनीतिक यात्रा सर्वसमावेशी व्यक्तित्व की प्रतीक रही। यही कारण है कि विश्व ने उन्हें अजातशत्रु के रूप में स्वीकार किया। अटल जी का जन्मदिवस आज अटल स्मृति वर्ष के रूप में मनाया जाना इस बात का प्रमाण है कि भारत केवल व्यक्तियों को नहीं, बल्कि उनके विचारों और मूल्यों को भी सहेजता है।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के उन विरल नेताओं में थे, जिनका व्यक्तित्व सत्ता से बड़ा और समय से आगे दिखाई देता था। वे विचारधारा में अडिग रहते हुए भी संवाद में उदार थे। अटल जी के लिए राजनीति सत्ता की साधना नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक विमर्श की मर्यादित यात्रा थी। संसद में चाहे विषय कितना ही संवेदनशील क्यों न हो, उनके वक्तव्यों में कटुता नहीं, बल्कि तर्क, तथ्य और भावनात्मक संतुलन होता था। संसदीय परंपरा में उनका आचरण एक आदर्श के रूप में स्थापित हुआ, जिसने भारतीय लोकतंत्र को यह सिखाया कि असहमति भी शालीनता और गरिमा के साथ व्यक्त की जा सकती है।

25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में जन्मे अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक, फिर जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से राष्ट्रसेवा करते हुए भारतीय लोकतंत्र के आकाश में एक प्रकाशवान नक्षत्र के रूप में स्थापित हुए। उन्हें भाजपा के प्रथम राष्ट्रीय अध्यक्ष होने का गौरव भी प्राप्त है। मुंबई अधिवेशन में दिया गया उनका ऐतिहासिक भाषण—
अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा”—आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूर्णतः सत्य होता दिखाई दे रहा है।

अटल बिहारी वाजपेयी संघ की वैचारिक परंपरा से आए थे, किंतु उन्होंने राजनीति को समावेशी राष्ट्रीयता का स्वरूप दिया। वे जानते थे कि राष्ट्रनिर्माण के लिए संवाद, विश्वास और सहभागिता अनिवार्य है। उनके लिए राष्ट्र का अर्थ केवल सीमाएँ नहीं, बल्कि जनता, संस्कृति और मानवीय संवेदना भी था। यही कारण है कि वे एक ओर दृढ़ निर्णय लेने वाले नेता थे, तो दूसरी ओर करुणा से परिपूर्ण कवि भी।

प्रधानमंत्री के रूप में अटल जी का कार्यकाल आधुनिक भारत के विकास की नींव का कालखंड माना जाता है। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना ने देश को भौगोलिक रूप से जोड़ा, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना ने गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा, किसान फसल बीमा योजना ने अन्नदाता को संबल दिया और दूरसंचार क्रांति ने भारत को डिजिटल भविष्य की ओर अग्रसर किया। जब 1996 में अटल जी देश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार के प्रधानमंत्री बने, तब जनता ने सही अर्थों में अनुभव किया कि “जनता के द्वारा, जनता के लिए और जनता की सरकार” क्या होती है।

अटल जी गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री थे। उनसे पूर्व गठबंधन की राजनीति आशंका, अविश्वास और अस्थिरता का पर्याय मानी जाती थी। अटल जी ने न केवल गठबंधन की राजनीति को स्थायित्व दिया, बल्कि यह सिद्ध किया कि सहयोग से चलने वाली सरकारें भी निर्णायक, सक्षम और प्रभावी हो सकती हैं। यह भारतीय राजनीति का एक ऐतिहासिक मोड़ था।

एक समर्थ, सक्षम और शक्तिशाली भारत उनके सपनों का केंद्र था। राष्ट्रहित में कठोर निर्णय और मानवीय पहल—दोनों का संतुलन वे भलीभांति जानते थे। पोखरण परमाणु परीक्षण-2 के माध्यम से उन्होंने भारत की सामरिक शक्ति को वैश्विक मंच पर सशक्त रूप से स्थापित किया। वहीं लाहौर बस यात्रा के माध्यम से यह संदेश दिया कि भारत की शक्ति का उद्देश्य युद्ध नहीं, बल्कि शांति है। कारगिल युद्ध के दौरान उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और निर्णायक नेतृत्व को राष्ट्र युगों तक स्मरण करता रहेगा।

अटल बिहारी वाजपेयी को केवल राजनीतिक निर्णयों से नहीं समझा जा सकता। वे एक संवेदनशील कवि थे, जिनकी कविताओं में राष्ट्र बोलता था। उनकी रचनाओं में आशा, विश्वास, दृढ़ता और राष्ट्र पुनर्निर्माण का संकल्प झलकता है। आज भी उनकी कविताएँ भारतीय चेतना को जागृत करती हैं और यह स्मरण कराती हैं कि राष्ट्र केवल वर्तमान नहीं, बल्कि इतिहास की स्मृति और भविष्य के संकल्पों का समन्वित स्वरूप है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज जिस दृढ़ संकल्प के साथ देश को निर्णायक और पारदर्शी नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं, वह अटल जी के “21वीं सदी को भारत की सदी बनाने” के स्वप्न को साकार कर रहा है। भ्रष्टाचार-मुक्त शासन, तकनीक आधारित पारदर्शी व्यवस्था, मजबूत आधारभूत संरचना और लोककल्याणकारी योजनाएँ अटल जी की विरासत को आगे बढ़ाने के सशक्त प्रयास हैं।

अटल स्मृति वर्ष और 25 दिसंबर हमें यह आत्ममंथन करने का अवसर देते हैं कि हम अटल जी के बताए मार्ग पर कितनी निष्ठा से चल रहे हैं। उनका जीवन सिखाता है कि लोकतांत्रिक परंपराओं, राष्ट्रीयता, व्यक्तिगत शुचिता, सकारात्मकता और धैर्य के साथ राष्ट्र व समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वहन कैसे किया जाए। अटल बिहारी वाजपेयी किसी एक दल या कालखंड तक सीमित नहीं हैं—वे समूचे भारतीय लोकतंत्र की अमूल्य धरोहर हैं। उनका स्मरण अतीत की ओर देखने का नहीं, बल्कि भविष्य के लिए मार्गदर्शन लेने का अवसर है।

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