अत्र कुशलम तत्रास्तु

प्रायः पत्र का प्रारंभ प्रिय, प्रिये,आदरणीय, पूजनीय से हो कर अत्र कुशलम तत्रास्तु के पश्चात विदित हो कि से होता था इसके पश्चात जो परिवार से संबंधित समाचार या संदेश लिखा जाता था। पत्र को इतने सलीके और सम्मान से प्यार से भाव से भरकर लिखा जाता था कि पढ़ने वाला कई बार भावुक हो कर रोने लगता था। यही हाल पत्र को लिखने वाले का भी होता था।
ऐसे पत्रों को कई कई बार पढ़ने का चलन था,और उसे सहेज कर भी रखा जाता था।पत्र लेखन की यह कला सभी नर नारियों में पाई जाती थी।यह कला ही फलती फूलती हुई कई लोगों को लेखक या कवि बनाती थी। कल्पना के सागर में गोते लगाने पर बाध्य करती थी। किसी को अगर पत्र लिखा है,तो अंत में यह भी लिखा जाता था कि थोड़ा लिखा है,बहुत समझना। यदि कुछ छूट गया हो तो आप खुद समझदार हैं ।पत्र का उत्तर लौटती डाक से देना ,पत्र की प्रतीक्षा में आपका या आपकी लिख कर नाम लिख कर पत्र समाप्त कर दिया जाता था।
उन पत्रों को पढ़ने लिखने का आनंद आज के नवीन स्मार्ट फोन पर वॉट्स ऐप संदेश, मैसेंजर या मैसेजेस में कहां आता है? न तो वे भाव आते हैं न उनमें वैसी आत्मीयता ही होती है। हाय हेलो करके अपना संदेश भेजा जाता है। यह अवश्य होता है कि जीवित संवाद हो जाता है लेकिन अब लिखने की कला को जैसे जंग लग गया है। कॉपी पेस्ट का युग हमें पीछे तो धकेल ही रहा है परस्पर रिश्तों में जो नमी होती थी उनको भी रूखा बनाता जा रहा है। अब एक बात अवश्य अच्छी हुई है कि वीडियो कॉल ने प्रत्यक्ष दर्शन का अवसर दिया है हम घर बैठे ही दुनिया के किसी भी कोने में बैठे स्वजनों से प्रत्यक्ष बातचीत कर सकते हैं।आधुनिक तकनीक ने पोस्ट ऑफिसों को भी निरर्थक कर दिया है।