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aurangzeb history in hindi : औरतों का कितना दीवाना था औरंगज़ेब?

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aurangzeb history in hindi  : औरतों का कितना दीवाना था औरंगज़ेब?
aurangzeb history in hindi : तारीख़ की बानगी बयां करते एक से एक इतिहासकार हुए हैं, उनमें से एक थे यदुनाथ सरकार. यदुनाथ सरकार ने एक किताब लिखी थी- 'हिस्ट्री ऑफ औरंगज़ेब'। इस किताब के ज़रिए हमें ये जानने को मिलता है कि भारत में मुस्लिम शासकों के जितने भी राजतिलक हुए हैं, उनमें औरंगज़ेब का राजतिलक सबसे भव्य था. ये बात सच है कि शाहजहां, मुगल बादशाहों में ख़ास था.

औरंगज़ेब' ने कोहिनूर हीरा हासिल किया

लेकिन जब वो गद्दी पर बैठा, उसने मयूर सिंहासन नहीं बनवाया. ना ही उसने कोहिनूर हीरा हासिल किया. उसके सफेद संगमरमर के महल, जिनमें रंगीन कीमती पत्थर जड़े थे, वो भी गद्दी पर रहते नहीं बल्कि बाद में बने... इन्हें आज भी दिल्ली और आगरा में देखा जा सकता है. हालांकि, ये सब कुछ औरंगज़ेब के गद्दी पर बैठते वक्त मौजूद थे... औरंगज़ेब ने जश्न में जो किया, वो उस वक़्त के मुस्लिम शासकों में आम नहीं था... तो चलिए आज ये समझते हैं कि अपने भाइयों से जंग के बाद औरंगज़ेब जब गद्दी पर बैठा, तो माहौल कैसा था? किस्से-कहानियों में हमें औरंगज़ेब के बेरहम होने के सबूत तो बहुत मिलते हैं, लेकिन औरंगज़ेब के अय्याश होने के सबूत एक भी नहीं मिलते. तो क्या ये सच है कि औरंगज़ेब क्रूर भले ही था, लेकिन अय्याश बिल्कुल भी नहीं, चलिए आज इसे भी जानने की कोशिश करते हैं

औरंगजेब पहला ऐसा बादशाह पिता को कैद कर मुगलिया तख्त पर अपना कब्ज़ा जमाया था.

मुगल इतिहास में औरंगजेब पहला ऐसा बादशाह था जिसने बादशाह पिता को कैद कर मुगलिया तख्त पर अपना कब्ज़ा जमाया था. तख्त पर काबिज़ होने के बाद औरंगजेब ने ऐसे कई फरमान सुनाए जिससे उसकी छवि कट्टरपंथी के तौर पर स्थापित हुई... कई इतिहासकार उसके फैसले को राजनीतिक नीतियों का आधार भी बताते रहे हैं. हालांकि कुछ इतिहासकार औरंगजेब को उसकी धार्मिक नीति की वजह से जिंदा पीर भी कहते हैं. औरंगजेब के ऐसे ही एक फैसले की वजह से दिल्ली में संगीत का जनाजा निकला था... क्या था वो वाकया आइए जानते हैं.

1658 में शाहजहां को बंदी बनाकर औरंगजेब ने दिल्ली में अपना पहला राज्याभिषेक कराया... 'मुगल भारत का इतिहास' किताब के मुताबिक एक साल बाद उसका दूसरा राज्याभिषेक हुआ जिसमें औरंगजेब को अबुल मुजफ्फर मुईउद्दीन मोहम्मद औरंगजेब पादशाह-ए-गाजी की उपाधि दी गई... ये आयोजन इतना भव्य था कि इसमें ईरान, बुखारा, अबीसीनिया और अरब से भी मेहमान शिरकत करने आए थे, जो नहीं आ पाए थे उनके दूत उपहार और बधाई संदेश लेकर यहां पहुंचे थे.

औरंगजेब ने संगीत पर पाबंदी लगा दी

औरंगजेब ने अपने शासनकाल में कई सशस्त्र विद्रोह देखे, लेकिन उसे सबसे अलहदा विरोध अपने उस फैसले का देखना पड़ा जिसमें उसने संगीत पर पाबंदी लगा दी थी... मुगलकाल वो ऐसा दौर था जब कलाकारों के भूखे मरने के दिन आ गए थे... संगीन की धुन निकालते वाले वाद्ययंत्र कमरे के कोनों का आभूषण बनकर धूल फांक रहे थे... संगीत का सुर सुनाई देना सज़ा का पर्याय था... इतावली पर्यटक मनूची ने इस वाकये का जिक्र अपने संस्मरण में किया है... 

इतावली पर्यटक मनूची ने अपने संस्मरण में लिखा है कि जब औरंगजेब की ओर से संगीत पर पाबंदी लगा दी गई तो कलाकारों ने नए अंदाज में विरोध जताया... वो लिखते हैं कि उस वक्त तकरीबन एक हजार से ज्यादा कलाकार दिल्ली की जामा मस्जिद पहुंचे... यहां से एक जुलूस निकाला गया... जब जुलूस आगे बढ़ता तो कलाकारों ने बेसुर होकर रोते-रोते गाना शुरू कर दिया है... जैसे किसी का जनाजा निकाला जा रहा हो... मनूची ने तो यहां तक दावा किया है कि उस समय नमाज पढ़कर वापस लौट रहे बादशाद औरंगजेब ने जब किसी से जानकारी कराई कि ये बेसुरी आवाज में क्यों गा रहे हैं तो कलाकारों ने जवाब दिया कि बादशाह ने संगीत का कत्ल कर दिया है... हम इसे दफनाने जा रहे..

भारतीय शास्त्रीय संगीत पर सबसे ज्यादा किताबें औरंगजेब के शासनकाल में ही लिखी गई

औरंगजेब ने बेशक संगीत पर पाबंदी लगा दी हो, लेकिन इतिहासकारों का दावा है कि वो संगीत को पसंद करता था... मुगल भारत का इतिहास पुस्तक के मुताबिक वो वीणा बजाने में कुशल था... दावा तो ये भी किया जाता है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत पर सबसे ज्यादा किताबें औरंगजेब के शासनकाल में ही लिखी गई हैं...

खैर, अब आते हैं औरंगज़ेब के हरम पर... हरम समझते हैं आप? शायद आप इसके बारे में नहीं जानते होंगे, क्योंकि ये मुगलिया दौर में चलन में था, अब तो ये लफ़्ज़ों तक ही सीमित रह गया है... आसान शब्दों में कहें तो हरम वो जगह थी जहां मुगल बादशाह से जुड़ी औरतें रहा करती थीं... खासतौर से उनकी बेगम या बेगमें... यानी जिस महल में मुगल बादशाह की तमाम बेगमें रहा करती थीं, उसे हरम कहा जाता था... हालांकि, इस महल में सुल्तान के अलावा किसी भी और पुरुष को आने की इजाज़त नहीं थी...

अपनी खास बेगमों के साथ समय बिताने जाया करते थे

हरम में बादशाह ज्यादातर अपनी खास बेगमों के साथ समय बिताने जाया करते थे... इसके साथ साथ हरम में बेगमों की एक अलग तरह की राजनीति चलती थी... कहा जाता है कि इस हरम में उस बेगम की सबसे ज्यादा चलती थी जो मुगल बादशाह के सबसे करीब हुआ करती थी... वहीं हरम को लेकर एक बात और कही जाती है कि इसकी सुरक्षा के लिए किन्नरों की नियुक्ति की जाती थी... कहते हैं ऐसा इसलिए किया जाता था, ताकि हरम में मौजूद महिलाओं की पाकीज़गी यानी उनकी पवित्रता पर कोई सवाल ना उठे...

अपनी किताब अकबरनामा में अबु फ़ज़ल ने लिखा कि महिलाओं के लिए हरम बनाने की प्रक्रिया ऐसे तो बादशाह बाबर ने की थी, लेकिन इसकी शुरूआत सही मायनों में अकबर ने की थी... इसके बाद जब जहांगीर का शासन आया तो हरम बनाने की प्रक्रिया और उसकी देख रेख तेज कर दी गई... लेकिन औरंगजेब के आते आते मुगल हरम की परंपरा खत्म कर दी गई.

खुद का अल्लाह का सबसे बड़ा उपासक मानता था

वो इसलिए क्योंकि औरंगज़ेब इस्लाम धर्म के प्रति काफी कट्टर था... वो खुद का अल्लाह का सबसे बड़ा उपासक मानता था लेकिन वो अय्याश भी थी... आज हम आपको औरंगजेब की एक ऐसी ही अय्याशी की घटना के बारे में बता रहे हैं, जब उसने हीराबाई के कहने पर शराब का जाम अपने होंठों पर लगा लिया था... 

दरअसल, औरंगजेब ने जब पहली बार हीराबाई को देखा था, तब ही वो उसका दीवाना हो गया था... वो राजकाज का काम छोड़कर अक्सर उसके पास पहुंच जाता था... औरंगजेब हीराबाई के प्यार में इतना पागल हो गया था कि वो अक्सर राजकाज का काम छोड़कर उसके पास चले जाता था... इस वजह से शासन का काम भी प्रभावित होने लगा था... वो आए दिन भरी इजलास छोड़कर हीराबाई के पास चला जाता था... दक्कन में मुर्शिद कुली खान ये जान चुका था... इसी वजह से उसने मालगुजारी का पूरा सिस्टम बना लिया था,

लेकिन उसे सब जगहों पर इसे समान रूप से लागू करने में लगातार दिक्कतें आ रही थीं... कई जागीरदारों और हाकिमों ने उसे परेशान कर रखा था... सबसे बदमाश तो हाकिम थे, जो सीधे बादशाह शाहजहां का नाम लेते और ये मानने को तैयार नहीं थे कि औरंगज़ेब बादशाह शाहजहां क हुक्म से यहां का सूबेदार बना है... औरंगजेब ने भी फरवरी 1653 में शाहजहां को एक पत्र लिखकर हाकिमों और जागीरदारों की बदमाशी की शिकायत की थी और मुर्शिद कुली खां के काम की तारीफ की थी... लेकिन हीराबाई के प्यार में कभी भी बहक जाता था.

काबिलियत से खुश होकर औरंगज़ेब ने उसे अपना सचिव बना लिया

औरंगजेब जब मुल्तान में था तो शैख अबू उससे मिला था... उसकी काबिलियत से खुश होकर औरंगज़ेब ने उसे अपना सचिव बना लिया था... अप्रैल के महीने में एक बैठक चल रही थी... अचानक औरंगज़ेब बैठक छोड़कर हीराबाई के कमरे की तरफ जाने लगा... मीर खलील बुरहानपुर का सूबेदार था, वो तो इस बात का शुरू से ही राज़दार था... लेकिन सल्तनत की खराब हालत देखकर उस दिन उसे औरंगजेब की इस हरकत पर गुस्सा आ गया... इसके बाद अपनी आदत के मुताबिक वो जोर-जोर से बड़बड़ाने लगा... जो राज अब तक खास लोगों के बीच में था, वो अब कई जागीरदारों और हाकिमों के कानों तक पहुंच गया...

हीराबाई को ये सूचना पहले ही मिल चुकी थी कि औरंगजेब इजलास से उसके यहां के लिए निकल गया है... उसने ऊर्दाबेगनी से तुंरत खाने-पीने का इंतज़ाम करने को कहा और बांदियां बुलाकर कमरा सही कराया... जब औंरगजेब कमरे में आया था तो वो परेशान था... हीराबाई ये जान गई थी... उसने तुरंत शराब का एक जाम तैयार किया और औरंगजेब के सामने हाजिर किया.

इतिहास में इस घटना के बारे में दो अलग-अलग कहानियां हैं... पहली कहानी कहती है कि जैनाबादी के साथ औरंगज़ेब शराब पीना सीख गया था और अक्सर नशे में रहता था... वहीं दूसरी कहानी कहती है कि उस दिन पहले तो औरंगजेब ने जाम पीने से मना किया... लेकिन जब हीरााबई ने उस पर जोर डाला तो उसने शराब पीने के लिए जाम होठों से लगा लिया... ये देखते ही हीराबाई ने जाम उसके हाथ से छीनकर फेंक दिया और कहा कि वो तो सिर्फ इम्तेहान ले रही थी कि औरंगज़ेब उसके इश्क में कहां तक जा सकता है

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