अयोध्या यात्रा - जीवन की सम्पूर्णता
मेरा हृदय हमेशा से यह जिज्ञासा लिए हुए था कि मैं अपने आराध्य, पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य दर्शन कर सकूं। मैं वीआईपी दर्शन जैसी व्यवस्थाओं में विश्वास नहीं करता। मेरा आदर्श और मान्यता यह है कि ईश्वर के दर्शन एक साधारण भक्त की तरह ही करना चाहिए—निःस्वार्थ और विनम्र। फिर भी, समय और परिस्थितियों की बाध्यता के कारण, मैंने वीआईपी पास ले लिया। यह निर्णय मेरे आदर्शों से भले ही थोड़ी दूरी पर था, लेकिन मेरे भीतर भगवान के प्रति समर्पण की भावना इससे तनिक भी कम नहीं हुई।
जब मैं राम जन्मभूमि परिसर में पहुंचा, तो उस स्थान की भव्यता ने मेरे मन को अभिभूत कर दिया। मंदिर अभी निर्माणाधीन था, फिर भी उसमें अधूरेपन का कोई अहसास नहीं था।
जब मैं भगवान श्री राम की बाल सुलभ मूर्ति के सामने खड़ा हुआ, तो मेरा मन द्रवित हो गया। वह क्षण इतना दिव्य था कि समय जैसे थम-सा गया। मेरे भीतर उमड़ रही भावनाओं को शब्दों में बाँध पाना असंभव सा था । उनके दर्शन के साथ ही मेरे भीतर वर्षों से पल रही हर चाहत, हर आकांक्षा जैसे स्वतः समाप्त हो गई।
उनकी आंखों में करुणा, चेहरे पर तेज, और बाल सुलभ मुस्कान में अपार शांति ने मेरे भीतर की हर बेचैनी को समाप्त कर दिया। उस क्षण में मैं यह समझ गया कि भगवान से कुछ मांगने की आवश्यकता ही नहीं है। उनका साक्षात दर्शन ही जीवन का सबसे बड़ा वरदान है।
इस दर्शन ने मुझे एक गहरी आध्यात्मिक शिक्षा दी। भगवान के पास जाना, उनके दर्शन करना, केवल पूजा-अर्चना का हिस्सा नहीं है। यह अपने अहंकार, अपनी इच्छाओं और अपने सांसारिक बंधनों को उनके चरणों में समर्पित करने का अवसर है।
भगवान राम ने अपने जीवन में जो आदर्श स्थापित किए—मर्यादा, धर्म, और करुणा—वही इस यात्रा का सबसे बड़ा संदेश है।
दर्शन के बाद जब मैं मंदिर परिसर से बाहर निकला, तो मेरे भीतर एक नई ऊर्जा और उत्साह था। ऐसा महसूस हुआ कि भगवान ने मेरे जीवन को एक नई दिशा दी है। अब मेरी दृष्टि केवल सांसारिक चीज़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि मैं हर परिस्थिति में भगवान की उपस्थिति और उनकी कृपा को महसूस कर सकता हूं। यह यात्रा मेरे जीवन का एक अद्वितीय अनुभव था । मैक्स अस्पताल इस यात्रा के माध्यम बनने के लिए आपका हृदय से पुनः साधुवाद।
