बाबा बैद्यनाथ: देवघर जेल में बनता है जिनका दिव्य ‘नाग पुष्प मुकुट

Baba Baidyanath: Whose divine 'Naag Pushp Mukut' is made in Deoghar Jail
 
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कुमार कृष्णन – विनायक फीचर्स)
झारखंड के देवघर स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक प्रमुख बाबा वैद्यनाथ मंदिर में सावन महीने की शुरुआत होते ही देशभर से हजारों कांवड़िए जलाभिषेक के लिए उमड़ पड़ते हैं। जहां एक ओर भक्तगण आस्था और भक्ति के भाव से बाबा भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं, वहीं इस मंदिर से जुड़ी एक विशेष परंपरा भी है, जो देवघर जेल से जुड़ी है — नाग पुष्प मुकुट निर्माण की अनोखी परंपरा।

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ब्रिटिश काल से चली आ रही यह परंपरा

बताया जाता है कि यह परंपरा ब्रिटिश काल से चली आ रही है। उस समय एक अंग्रेज जेलर के बेटे की हालत गंभीर हो गई थी। जब सभी इलाज विफल हो गए तो किसी ने उसे बाबा बैद्यनाथ मंदिर में नाग मुकुट चढ़ाने की सलाह दी। जेलर ने वैसा ही किया और उसके बेटे को चमत्कारिक रूप से जीवन मिल गया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई — बाबा को प्रतिदिन नाग पुष्प मुकुट अर्पित करने की।

जेल में 'बाबा कक्ष', जहां बनता है मुकुट

देवघर जेल में 'बाबा कक्ष' नाम से एक विशेष स्थान है। यहीं पर कैदी पूरी श्रद्धा और पवित्रता के साथ इस मुकुट का निर्माण करते हैं। कक्ष के भीतर एक शिवालय भी है, जहां पहले पूजा होती है और फिर नाग मुकुट बनता है। मुकुट बनाने के लिए बेलपत्र और ताजे फूल जेल प्रशासन द्वारा बाहर से मंगवाए जाते हैं।
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कैदी रखते हैं उपवास, करते हैं सेवा

कैदियों के समूह इस कार्य में लगे रहते हैं। वे उपवास रखकर बाबा कक्ष में 6 घंटे तक मेहनत करके नाग पुष्प मुकुट तैयार करते हैं। यह मुकुट तैयार होने के बाद पहले जेल परिसर में स्थित शिव मंदिर में पूजा जाता है। फिर जेल कर्मी इसे कंधे पर उठाकर जयकारों के साथ बाबा बैद्यनाथ मंदिर तक लेकर जाते हैं — “बोल बम! बम भोले!”

सिर्फ शिवरात्रि पर नहीं बनता नाग मुकुट

पूरे वर्ष नाग मुकुट बाबा के श्रृंगार में उपयोग होता है, सिवाय महाशिवरात्रि के दिन। मान्यता है कि उस दिन बाबा शिव का विवाह हुआ था, इसलिए वे उस दिन एक विशेष मुकुट धारण करते हैं। उस दिन नाग मुकुट बासुकीनाथ धाम भेज दिया जाता है।

जेल अधीक्षक बताते हैं परंपरा का रहस्य

देवघर जेल अधीक्षक हीरा कुमार बताते हैं कि सावन की पूर्णिमा पर कैदियों द्वारा दो मुकुट बनाए जाते हैं — एक वैद्यनाथ मंदिर और दूसरा बासुकीनाथ मंदिर के लिए। मुकुट निर्माण में भाग लेने वाले प्रत्येक कैदी को 91 रुपये का मेहनताना भी मिलता है।

कैदियों के लिए सेवा, आत्मशुद्धि का माध्यम

कैदी भी इस सेवा को सौभाग्य मानते हैं। हत्या के आरोप में बंद महेश मंडल (बदला हुआ नाम) बताते हैं कि वह अपने 10 साथियों के साथ रोजाना मुकुट बनाते हैं। उनका मानना है कि यह सेवा उन्हें आत्मिक शांति देती है और उन्हें लगता है जैसे वे अपने कर्मों का प्रायश्चित कर रहे हों।

देवघर — वास्तव में देवताओं का धाम

देवघर का अर्थ ही है — देवताओं का घर। वैद्यनाथ धाम को ‘कामना लिंग’ भी कहा जाता है क्योंकि मान्यता है कि यहां भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। यहां शिवभक्तों की आस्था और परंपरा का जो संगम है, वह न केवल भारत बल्कि दुनियाभर के श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।
यह अनोखी परंपरा दर्शाती है कि भक्ति, आस्था और सेवा की शक्ति कैसी भी परिस्थिति में जीवन को एक नई दिशा दे सकती है। देवघर जेल की यह परंपरा उस विश्वास और आस्था की मिसाल है, जिसमें एक कैदी भी ‘बाबा का सेवक’ बन जाता है।

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