बलूचिस्तान : क्या यह नया राष्ट्र बन पाएगा?

Balochistan: Will it become a new nation?
 
नया मुल्क बलूचिस्तान : कितना कठिन कितना आसान

बलूचिस्तान ने मांगी आज़ादी, अब अंतरराष्ट्रीय समर्थन की दरकार


पाकिस्तान के प्रांत बलूचिस्तान ने अंततः खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया है और अब उसने भारत समेत संयुक्त राष्ट्र (यूएनओ) से मान्यता की मांग की है। दशकों से पाकिस्तान के अत्याचार और आर्थिक शोषण के खिलाफ संघर्ष कर रहे बलूच अब अपने देश के लिए अंतरराष्ट्रीय पहचान की उम्मीद लगाए बैठे हैं। हालांकि, वैश्विक राजनीति की जटिलता को देखते हुए बलूचिस्तान को स्वतंत्र देश के रूप में मान्यता दिलवाना बांग्लादेश की तरह आसान नहीं दिखता। बलूचिस्तान की उम्मीदें भारत पर टिकी हैं, लेकिन इस बार परिस्थितियां पूरी तरह अलग हैं।

बांग्लादेश से तुलना क्यों नहीं बैठती?


1971 में जब बांग्लादेश ने पाकिस्तान से आज़ादी पाई थी, तब केवल पाकिस्तान ने इसका विरोध किया था। जबकि बलूचिस्तान के मामले में अमेरिका, चीन और अन्य महाशक्तियों की सहमति पाना आसान नहीं है।

चीन: चीन बलूचिस्तान में चल रहे अपने "चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC)" प्रोजेक्ट को लेकर चिंतित है। यदि बलूचिस्तान आज़ाद होता है, तो यह परियोजना खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए चीन किसी भी हाल में बलूचिस्तान को मान्यता नहीं देगा।

अमेरिका: अमेरिका का रुख अस्पष्ट है। एक ओर वह ईरान में बलूचों का समर्थन करता है, तो दूसरी ओर पाकिस्तान से अपने रणनीतिक संबंधों के कारण वह इस मुद्दे पर खुलकर नहीं बोलता।

संयुक्त राष्ट्र की बाधाएं और संभावनाएं


संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मान्यता पाने के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है, और पांच स्थायी सदस्यों (P5) में से चीन निश्चित रूप से वीटो करेगा। अमेरिका और ब्रिटेन अभी असमंजस की स्थिति में हैं। केवल फ्रांस और रूस से समर्थन की उम्मीद की जा सकती है। हालांकि, कोसोवो मॉडल की तर्ज पर बलूचिस्तान को "स्वायत्तता की गारंटी" मिल सकती है, जिसमें वह एक स्वतंत्र राष्ट्र की तरह काम करता है, लेकिन पूरी अंतरराष्ट्रीय मान्यता के बिना। लेकिन पाकिस्तान, जो नियमों को ताक पर रखने में माहिर है, शायद इसे भी स्वीकार न करे।

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया और संभावित अत्याचार

बलूचिस्तान के स्वतंत्रता की घोषणा के बाद, पाकिस्तान का अगला कदम साफ दिखता है—आन्दोलन को कुचलना। इतिहास गवाह है कि 1970 के दशक में हजारों बलूच विद्रोहियों की हत्या की गई थी। इस बार सैन्य अभियान और भी ज़्यादा हिंसक हो सकता है। बलूचिस्तान, जो पाकिस्तान के खनिज संसाधनों और अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, अगर अलग होता है, तो पाकिस्तान को आर्थिक रूप से बहुत बड़ा झटका लगेगा। यही वजह है कि बलूचिस्तान को छोड़ना पाकिस्तान के लिए एक असहनीय विकल्प होगा।

भारत की भूमिका और सामरिक दृष्टिकोण


बलूचिस्तान भारत से सबसे पहले मान्यता चाहता है। भारत को अपनी अंतरराष्ट्रीय स्थिति और कूटनीतिक ताकत के कारण बलूचों की उम्मीद है कि वह उनका सबसे बड़ा समर्थक बन सकता है।

लेकिन भारत के लिए यह निर्णय आसान नहीं है:

पाकिस्तान के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की नीति पर सवाल उठ सकते हैं।

कश्मीर मुद्दे पर भारत की स्थिति कमजोर हो सकती है।

भारत का मौजूदा फोकस पीओके (पाक अधिकृत कश्मीर) पर है, बलूचिस्तान पर नहीं।

फिर भी सामरिक दृष्टिकोण से देखें तो बलूचिस्तान का आज़ाद होना भारत के लिए लाभकारी होगा, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए।


क्या भविष्य में बलूचिस्तान एक स्वतंत्र देश बनेगा?


संभावनाएं अभी सीमित हैं, लेकिन यह पूरी तरह खत्म नहीं हुई हैं। यदि संयुक्त राष्ट्र बलूचिस्तान को स्वायत्तता दिला दे, तो यह भी बलूचों की एक बड़ी जीत होगी। समय के साथ वैश्विक समर्थन बढ़ सकता है और बलूचिस्तान को पूर्ण राष्ट्र का दर्जा भी मिल सकता है। भारत को इस पर रणनीतिक और गंभीर विचार करना होगा। एक सशक्त और स्वतंत्र बलूचिस्तान न केवल भारत के लिए, बल्कि दक्षिण एशिया की स्थिरता और शांति के लिए भी महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।

निष्कर्ष:


बलूचिस्तान का स्वतंत्र राष्ट्र बनना एक जटिल, लेकिन दीर्घकालिक रूप से संभव प्रक्रिया है। इसके लिए मजबूत वैश्विक समर्थन, प्रभावशाली कूटनीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। भारत की भूमिका इस दिशा में निर्णायक हो सकती है—यदि वह समय रहते निर्णायक कदम उठाए।

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