बिहार वोटर लिस्ट संशोधन विवाद: जानिए क्यों पहुंचा मामला सुप्रीम कोर्ट तक
आज हम बात करने जा रहे हैं बिहार में चल रहे वोटर लिस्ट संशोधन विवाद की, जो सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है। ये मामला इतना गर्म क्यों है? क्यों विपक्ष इसे अलोकतांत्रिक बता रहा है? और बिहार में मुस्लिम आबादी और आधार कार्ड से इसका क्या कनेक्शन है? अगर आप इन सभी सवालों के जवाब चाहते हैं, तो इस वीडियो को अंत तक जरूर देखें। चलिए शुरू करते हैं!
बिहार में इस साल अक्टूबर-नवंबर में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इससे पहले, भारत निर्वाचन आयोग ने वोटर लिस्ट को अपडेट करने के लिए एक Special Intensive Revision (SIR) अभियान शुरू किया है। इस अभियान का मकसद है वोटर लिस्ट से फर्जी, डुप्लिकेट, या मरे हुए व्यक्तियों के नाम हटाना और केवल योग्य भारतीय नागरिकों को मतदाता सूची में रखना
चुनाव आयोग ने 24 जून 2025 को इस प्रक्रिया की शुरुआत की थी। इसके तहत बिहार के 7.9 करोड़ पंजीकृत मतदाताओं की जांच हो रही है। बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) घर-घर जाकर मतदाताओं से गणना फॉर्म भरवा रहे हैं, जिसमें 11 तरह के दस्तावेजों में से एक जमा करना जरूरी है।
लेकिन, इस प्रक्रिया में एक ट्विस्ट है! आधार कार्ड, वोटर आईडी, राशन कार्ड, या मनरेगा जॉब कार्ड जैसे आम दस्तावेजों को स्वीकार नहीं किया जा रहा है। इसके बजाय जन्म प्रमाण पत्र, एनआरसी, या मैट्रिक प्रमाण पत्र जैसे दस्तावेज मांगे जा रहे हैं।
जन्म प्रमाण पत्र
मूल निवास प्रमाण पत्र
एनआरसी (जहां लागू हो)
शैक्षिक प्रमाण पत्र
एससी/एसटी/ओबीसी प्रमाण पत्र
और भी कई दस्तावेज शामिल हैं।
इस संशोधन प्रक्रिया को लेकर बिहार में जबरदस्त हंगामा मच गया है। विपक्षी दल जैसे कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी, और सामाजिक संगठन जैसे एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
विपक्ष का कहना है कि:
अलोकतांत्रिक प्रक्रिया: ये प्रक्रिया मनमानी और असंवैधानिक है। इतने कम समय में 8 करोड़ मतदाताओं की जांच करना असंभव है।
गरीबों और हाशिए पर रहने वालों पर असर: बिहार में गरीबी और पलायन बड़ा मुद्दा है। लाखों लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या अन्य मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। खासकर मुस्लिम, दलित, आदिवासी, और प्रवासी मजदूर प्रभावित हो सकते हैं।
आधार कार्ड को क्यों नहीं?: आधार और वोटर आईडी जैसे आम दस्तावेजों को न मानना संदेह पैदा करता है।
चुनाव से पहले टाइमिंग: विपक्ष का आरोप है कि ये प्रक्रिया बीजेपी की मदद के लिए शुरू की गई है, ताकि कुछ खास समुदायों के वोटरों को सूची से हटाया जा सके।
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और तेजस्वी यादव ने इसे "वोट छीनने की साजिश" बताया है। योगेंद्र यादव का अनुमान है कि इस प्रक्रिया से 4.76 करोड़ मतदाताओं के नाम हट सकते हैं।
दूसरी तरफ, चुनाव आयोग का कहना है कि ये अभियान जरूरी है। तेजी से शहरीकरण, पलायन, और संदिग्ध "अवैध प्रवासियों" के कारण वोटर लिस्ट में गड़बड़ियां हो सकती हैं।
आज, 10 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हो रही है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की बेंच 10 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।
विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं जैसे अरशद अजमल और रूपेश कुमार ने इस प्रक्रिया को रोकने की मांग की है। वहीं, एक याचिका में वकील अश्विनी उपाध्याय ने इसका समर्थन किया है, उनका कहना है कि ये अभियान अवैध विदेशी घुसपैठियों को वोटर लिस्ट से हटाने के लिए जरूरी है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा है कि पहले ये साबित करें कि चुनाव आयोग की प्रक्रिया गलत है। इस सुनवाई का फैसला न सिर्फ बिहार, बल्कि पूरे देश की वोटर लिस्ट प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है।
अब बात करते हैं बिहार की मुस्लिम आबादी और आधार कार्ड के आंकड़ों की।
2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, बिहार की कुल आबादी में मुस्लिम आबादी करीब 17% है। लेकिन सीमांचल क्षेत्र (किशनगंज, अररिया, कटिहार, पूर्णिया) में ये 47% तक है। ये क्षेत्र 243 विधानसभा सीटों में से 24 सीटों का योगदान देता है।
आधार कार्ड के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। बिहार में औसतन 92.47% लोगों के पास आधार कार्ड है। लेकिन सीमांचल के कुछ जिलों में ये आंकड़ा आबादी से ज्यादा है:
इन आंकड़ों से कुछ लोग ये दावा करते हैं कि सीमांचल में अवैध प्रवासी, जैसे रोहिंग्या या बांग्लादेशी, हो सकते हैं, जिन्होंने फर्जी आधार कार्ड बनवाए हैं। लेकिन विपक्ष का कहना है कि ये सिर्फ एक बहाना है, जिससे मुस्लिम और गरीब मतदाताओं को निशाना बनाया जा रहा है।
फर्जी और डुप्लिकेट नाम: कुछ विधानसभा क्षेत्रों में 8,000 से 10,000 फर्जी या मृत व्यक्तियों के नाम शामिल हैं।
अवैध प्रवासी: सीमांचल जैसे क्षेत्रों में आधार कार्ड धारकों की संख्या आबादी से ज्यादा होने से संदेह पैदा होता है।
पलायन और मृत्यु: बिहार में पलायन और मृत्यु की गैर-रिपोर्टिंग के कारण वोटर लिस्ट पुरानी हो चुकी है।
चुनाव आयोग का कहना है कि ये प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी चुनाव के लिए जरूरी है। 2003 में भी ऐसा अभियान हुआ था, जिसने वोटर लिस्ट को साफ करने में मदद की थी।
लेकिन ग्रामीणों का गुस्सा भी समझने लायक है। कई लोगों के पास सिर्फ आधार, वोटर आईडी, या मनरेगा कार्ड है। वो कहते हैं, "हम कहां से जन्म प्रमाण पत्र लाएं?"
सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई का फैसला इस मामले को नया मोड़ दे सकता है। अगर कोर्ट प्रक्रिया पर रोक लगाता है, तो विपक्ष की जीत होगी। लेकिन अगर कोर्ट इसे मंजूरी देता है, तो बिहार के बाद असम, बंगाल, और अन्य राज्यों में भी ऐसी प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
चुनाव आयोग ने दावा किया है कि 57% से ज्यादा मतदाताओं ने गणना फॉर्म जमा कर दिए हैं। ड्राफ्ट वोटर लिस्ट 1 अगस्त 2025 को आएगी, और अंतिम सूची 30 सितंबर को।
तो ये थी बिहार वोटर लिस्ट संशोधन की पूरी कहानी। क्या आपको लगता है कि ये प्रक्रिया जरूरी है, या ये वोटरों के अधिकारों का हनन है? कमेंट में अपनी राय जरूर बताएं।
