बिहार में भाजपा की नई रणनीति: डॉ. मोहन यादव के जरिए ‘यादव समीकरण’ साधने की कोशिश

(पवन वर्मा – विभूति फीचर्स)
भारतीय राजनीति में चुनावी रणनीतियाँ अक्सर सामाजिक समीकरणों और जनभावनाओं के इर्द-गिर्द बुनी जाती हैं। बिहार, जहां की राजनीति पर जातीय संतुलन का गहरा प्रभाव है, वहां आगामी विधानसभा चुनावों से पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एक नया प्रयोग किया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भाजपा ने बिहार में अपने प्रचार अभियान का प्रमुख चेहरा बनाकर यह संकेत दे दिया है कि पार्टी अब यादव समाज की राजनीतिक नब्ज को साधने की पूरी कोशिश करेगी।
डॉ. मोहन यादव न सिर्फ एक मुख्यमंत्री हैं, बल्कि यादव समाज से आने वाले ऐसे नेता हैं जिन्होंने संगठन के स्तर से संघर्ष करते हुए सत्ता के शीर्ष तक का सफर तय किया है। बिहार के उस राजनीतिक परिदृश्य में, जहां यादव समाज का वोट बैंक लंबे समय से राजद (RJD) के पक्ष में रहा है, डॉ. यादव की सक्रियता भाजपा के लिए एक रणनीतिक प्रयोग मानी जा रही है।

बिहार में भाजपा का नया चेहरा
डॉ. यादव पिछले दो वर्षों से बिहार में लगातार सक्रिय हैं। वे श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच जैसे सामाजिक आयोजनों में भाग लेकर राज्य के सांस्कृतिक ताने-बाने से जुड़े रहे हैं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्होंने बिहार के कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति बनाए रखी, जिससे वे केवल ‘बाहरी प्रचारक’ नहीं, बल्कि एक ‘समाज से जुड़े प्रतिनिधि’ के रूप में पहचाने जा रहे हैं।
भाजपा की यह रणनीति यादव समुदाय की 60 से अधिक विधानसभा सीटों को ध्यान में रखकर बनाई गई है, जहां यह समुदाय निर्णायक स्थिति में है। इन सीटों में सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, दरभंगा, पूर्णिया, बक्सर और सिवान जैसे जिले शामिल हैं। डॉ. यादव इन इलाकों में अपने संघर्ष और सामान्य परिवार से मुख्यमंत्री बनने की कहानी साझा करते हुए भाजपा के लिए यादव मतदाताओं में आत्मीयता और विश्वास का संदेश दे रहे हैं।
सांस्कृतिक जुड़ाव और वैचारिक संदेश
डॉ. यादव का जुड़ाव केवल राजनीति तक सीमित नहीं है। वे श्रीकृष्ण चेतना विचार मंच और अखिल भारतीय यादव महासभा से जुड़े रहे हैं। बिहार के यादव समाज के लिए भगवान श्रीकृष्ण आस्था और परंपरा के केंद्र हैं, और इसी भावभूमि पर डॉ. यादव “श्रीकृष्ण के आदर्शों पर आधारित समाज निर्माण” का संदेश दे रहे हैं। हाल के ‘जन समरस सांस्कृतिक सम्मेलन’ में उनकी भागीदारी से भाजपा की यह रणनीति स्पष्ट होती है कि पार्टी सांस्कृतिक व वैचारिक स्तर पर भी अपने विस्तार का प्रयास कर रही है।

सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
भाजपा के लिए डॉ. मोहन यादव एक बहु-आयामी प्रतीक हैं — वे पिछड़े वर्ग से हैं, शिक्षित हैं, वैचारिक रूप से परिपक्व हैं और परिवारवाद से मुक्त हैं। यही कारण है कि उन्हें जनता के बीच एक ‘स्वाभाविक जननेता’ के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा यह संदेश दे रही है कि उसकी राजनीति वंशवाद नहीं, कर्मवाद पर आधारित है। यही संदेश वे तेजस्वी यादव के वंशवादी नेतृत्व के समानांतर रखकर प्रस्तुत कर रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भाजपा की यह रणनीति दोहरे लाभ वाली साबित हो सकती है —
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यादव समुदाय में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ेगी।
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परंपरागत रूप से राजद समर्थक यादव मतदाता का एक वर्ग भाजपा की ओर आकर्षित हो सकता है।
डॉ. मोहन यादव की सभाओं में भीड़ और उत्साह यह संकेत दे रहे हैं कि भाजपा की यह नई रणनीति असर दिखा रही है। वे बिहार की जनता से भावनात्मक और वैचारिक दोनों स्तरों पर संवाद स्थापित कर रहे हैं। भाजपा उनके माध्यम से यह संदेश देना चाहती है कि वह सामाजिक न्याय, प्रतिनिधित्व और विकास — तीनों ही मोर्चों पर समान रूप से सक्रिय है।

