पुस्तक समीक्षा: ‘शब्दिका’ शब्दों की शास्त्रीय यात्रा

(समीक्षक: विवेक रंजन श्रीवास्तव, विशेष प्रस्तुति – विनायक फीचर्स) ‘शब्दिका’ समकालीन हिंदी कविता का एक ऐसा संग्रह है, जो भाषा, भाव और बिंबों के स्तर पर नए प्रयोगों का सफल उदाहरण प्रस्तुत करता है। यह काव्य-संग्रह न केवल पारंपरिक काव्यशास्त्रीय तत्वों की उपस्थिति को दर्शाता है, बल्कि आधुनिक संवेदना और सामाजिक यथार्थ से भी जुड़ा हुआ है।
कविता और आलोचना का संतुलन
भारतीय काव्यशास्त्र जहाँ कविता को ध्वनि, रस, अलंकार, वक्रोक्ति और औचित्य जैसे तत्वों के आधार पर मूल्यांकित करता है, वहीं पश्चिमी आलोचना का फोकस भाव, संरचना, भाषा की सच्चाई और प्रतीकात्मकता पर होता है। डॉ. संजीव की कविताएं इन दोनों दृष्टिकोणों में अद्भुत संतुलन स्थापित करती हैं।
उनकी कविताएं न तो केवल भाव-प्रधान हैं और न ही बौद्धिक चमत्कारों से भरी हुई। वे अनुभव, संवेदना और सामाजिक चेतना का बहुपरतीय संगम हैं।
प्रमुख कविताओं की विवेचना
"हम शब्द हैं"
यह रचना शब्दों की अस्मिता की तलाश है। इसमें कवि शब्दों का मानवीकरण करते हुए उन्हें अर्थ-खोजी प्राणी के रूप में चित्रित करते हैं:“हम शब्द हैं / जो खोज रहे हैं / अपना भविष्य…”
यह कविता प्रतीकात्मक, आत्मचिंतनात्मक और आत्मकथात्मक शिल्प में रची गई है, जो साहित्यिक रचना-प्रक्रिया को एक नए दृष्टिकोण से देखने का अवसर देती है।
"खुशनुमा दुनिया"
यह रचना इंद्रिय-बोधात्मक सौंदर्य की प्रभावशाली अभिव्यक्ति है। यहाँ गंध और अनुभूति का सुंदर मेल है।“सोचने की / कोई सीमा नहीं होती…”
कविता में नवोन्मेष, ध्वनि-संयोजन, और रसात्मक गहराई का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
"घर की गली"
यह कविता एक स्थान विशेष के माध्यम से सामाजिक असमानताओं का यथार्थपरक चित्रण करती है। यह कविता प्रसंगबद्ध यथार्थवाद की मिसाल है।
कवि बच्चों, स्त्रियों, चोरों, और गलियों के माध्यम से नग्न यथार्थ को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करते हैं।
"अनुशासन"
यह कविता शिक्षा-दर्शन और मूल्य-परिवर्तन की गहराई से पड़ताल करती है:“बच्चों की ज़िंदगी / कितनी अच्छी होती है / उन्हें नहीं पता / कि अनुशासन क्या है…”
यहाँ विरोधाभास (Paradox) का सौंदर्य है — जहाँ अनुशासन जैसी संज्ञा को बच्चों की मासूम आज़ादी के संदर्भ में चुनौती दी गई है।
शिल्प और भाषा की विशेषताएँ
डॉ. संजीव की कविताएं छंदमुक्त होते हुए भी संतुलित और प्रभावशाली हैं। उनकी शैली में:
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छोटे, सारगर्भित वाक्य
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गहन अर्थबोध
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ध्वनि-सौंदर्य
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प्रभावी बिंब एवं प्रतीक
…इन सभी का संयोजन मिलता है। भाषा सरल, संवादात्मक और स्वाभाविक है, जिससे पाठक से सहज जुड़ाव बनता है।
अलंकार और रस की योजना
कविताओं में प्रमुख अलंकारों का प्रयोग संयमित और प्रभावशाली ढंग से किया गया है:
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“हम शब्द हैं” — शीर्षक में ही रूपक का प्रयोग
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“शब्द भविष्य खोज रहे हैं” — शब्दों का मानवीकरण
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“अनुशासन से आज़ादी” — विरोधाभास का सशक्त प्रयोग
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“घर की गली” — दृश्यात्मकता का प्रभावशाली चित्रण
रस योजना में:
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करुण रस – ‘घर की गली’ में स्त्री की पीड़ा
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शांत रस – ‘खुशनुमा दुनिया’ में जीवन की कोमलता
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श्रृंगार/वात्सल्य रस – ‘अनुशासन’ में बच्चों के प्रति स्नेह
…इस प्रकार, संग्रह की कविताएं भावनात्मक गहराई तक पहुंचती हैं।
‘शब्दिका’?
‘शब्दिका’ समकालीन हिंदी कविता का एक ऐसा संग्रह है जिसमें:
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विषयों की विविधता है
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प्रतीकों का गहन प्रयोग है
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भाषा शैली स्पष्ट और सहज है
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काव्य-संवेदना उच्चकोटि की है