असम में सोलर प्रोजेक्ट पर ब्रेक: आदिवासियों के संघर्ष की ऐतिहासिक जीत

असम के कार्बी आंगलोंग की पहाड़ियों में वर्षों से चल रहा आदिवासियों का आंदोलन आखिरकार रंग लाया। एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) ने 500 मेगावाट के जिस सोलर पार्क प्रोजेक्ट को 434 मिलियन डॉलर की फंडिंग मंजूर की थी, उसे रद्द कर दिया गया है। यह फैसला केवल एक परियोजना की समाप्ति नहीं है, बल्कि हजारों आदिवासियों की एकजुटता और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए किए गए संघर्ष की ऐतिहासिक जीत है।
प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि: क्या था मामला?
असम पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी लिमिटेड (APDCL) के सहयोग से राज्य सरकार कार्बी आंगलोंग जिले में एक मेगा सोलर पार्क स्थापित करने जा रही थी। इसके लिए करीब 2,400 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जानी थी, जिसमें ज़्यादातर जंगल, खेती और पारंपरिक रूप से उपयोग की जाने वाली ज़मीनें शामिल थीं।
यह ज़मीनें सिर्फ़ भौगोलिक संपत्ति नहीं थीं, बल्कि कार्बी, नागा और अन्य आदिवासी समुदायों की संस्कृति, पहचान और जीवन का आधार थीं। संविधान के छठे अनुसूची के तहत ये इलाके संरक्षित हैं, बावजूद इसके बिना समुचित सहमति के प्रोजेक्ट को मंजूरी मिल गई थी।
"हमसे पूछा तक नहीं गया" – प्रक्रिया में भारी खामियां
ADB का दावा था कि परियोजना को स्थानीय समुदाय की सहमति प्राप्त है, लेकिन वास्तविकता अलग निकली।
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कुल 23 गांवों में से केवल 9 में ही परामर्श की प्रक्रिया पूरी हुई।
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दस्तावेज़ स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं कराए गए।
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हज़ारों लोगों को परामर्श प्रक्रिया से बाहर रखा गया।
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ज़मीन की मिल्कियत को केवल कानूनी कागज़ों के आधार पर आंक लिया गया, जबकि समुदायों का भावनात्मक और पारंपरिक संबंध नज़रअंदाज़ कर दिया गया।
प्रभाव: महिलाएं, वन्यजीव और पारिस्थितिकी पर खतरा
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महिलाएं, जो कृषि और घरेलू अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं, सबसे अधिक प्रभावित होतीं।
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बांस के जंगल, जो हाथियों के प्राकृतिक मार्गों में आते हैं, नष्ट हो जाते।
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देवपानी और नामबोर वाइल्डलाइफ़ सैंक्चुरीज़ को भी पर्यावरणीय नुकसान पहुंचने का खतरा था।
संघर्ष की कहानी: कैसे मिली यह जीत?
इस जीत के पीछे वर्षों की मेहनत और समर्पण है।
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Karbi Anglong Solar Power Project Affected People’s Rights Committee ने शांति पूर्ण आंदोलन, धरना, ज्ञापन और संवाद के माध्यम से आवाज़ उठाई।
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ADB की बोर्ड मीटिंग तक में प्रतिनिधित्व कर अपनी बात रखी गई।
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राज्यसभा सांसद अजीत कुमार भुइयां ने संसद में मामला उठाया और समर्थन जताया।
इन प्रयासों के परिणामस्वरूप ADB ने परियोजना से अपने कदम पीछे खींच लिए।
अब आगे क्या?
संघर्ष समिति की मांग है कि:
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राज्य सरकार और APDCL इस भूमि पर कोई भी कब्ज़ा या परियोजना हमेशा के लिए बंद करें।
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पारंपरिक ज़मीन अधिकारों को कानूनी मान्यता दी जाए।
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ADB स्थानीय समुदायों की सुरक्षा और पुनर्वास के लिए स्पष्ट और ठोस योजना बनाए।
NGO Forum on ADB के डायरेक्टर रैयान हसन ने कहा,"सस्टेनेबल डेवेलपमेंट का मतलब यह नहीं कि आप आदिवासी ज़मीन छीन लें। यह फैसला दिखाता है कि लोगों की आवाज़ सबसे ऊपर होनी चाहिए।"
Growthwatch की विद्या डिंकर ने चेतावनी दी कि,"सिर्फ प्रोजेक्ट रद्द करना काफी नहीं — समुदायों की सुरक्षा और भविष्य की योजनाओं के बारे में जवाबदेही भी जरूरी है।"
सबक और संदेश: सोलर चाहिए, लेकिन सबके साथ
भारत को सौर ऊर्जा की जरूरत है, लेकिन ऐसी योजनाओं की ज़रूरत है जो सभी को साथ लेकर चलें।
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रूफटॉप सोलर,
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लोकल ग्रिड,
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और ग्राम स्तरीय साझेदारी वाले मॉडल — यही सच्चे और न्यायसंगत ऊर्जा ट्रांजिशन का रास्ता है।
आज कार्बी आंगलोंग के लोग हमें यह सिखा रहे हैं कि विकास तब ही टिकाऊ होता है जब वह इंसानों, पर्यावरण और अधिकारों का सम्मान करे।