आजादी के बाद एक फिर होगी जातीय जनगणना

After independence caste census will now be done
 
आजादी के बाद अब होगी जातीय  जनगणना 

केंद्र सरकार ने अगली जनगणना में जातीय गणना कराने का भी फैसला किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को मंत्रिमंडल की राजनीतिक मामलों की समिति की बैठक में यह फैसला लिया गया।समिति की बैठक के बाद फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि मोदी सरकार का संकल्प है कि आगामी जनगणना प्रक्रिया में जातिगत गणना को पारदर्शी तरीके से शामिल किया जाएगा। इससे पहले 1931 में जातीय जनगणना हुई थी। आजाद भारत में यह पहली जातीय गणना होगी। इस साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा है।


 

कोरोना महामारी के चलते नहीं हो सकी


हर दशक में होने वाली जनगणना इस दशक की शुरुआत में कोरोना महामारी के चलते नहीं हो सकी थी। अब सरकार इसे कराने की तैयारी कर रही है। इस बीच, देश के विभिन्न हिस्सों से जातीय गणना की मांग उठती रही। कई राजनीतिक दल भी जातीय गणना की मांग करते रहे हैं, इनमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों दल शामिल थे।

राज्यों के सर्वे से भ्रांति फैली : केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि जनगणना केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आती है, लेकिन कुछ राज्यों ने सर्वेक्षण के नाम पर जातीय गणना की है। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में जाति आधारित सर्वेक्षण का कार्य सुचारू रूप से संपन्न हुआ तो कुछ अन्य राज्यों ने राजनीतिक दृष्टि और गैरपारदर्शी ढंग से सर्वे किया।

वैष्णव ने आरोप लगाया कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों ने राजनीतिक कारणों से जाति आधारित सर्वेक्षण कराया है। इस प्रकार के सर्वे से समाज में  भ्रांति फैली है। इन स्थितियों को देखते हुए और यह सुनिश्चित करते हुए कि हमारा सामाजिक ताना-बाना राजनीति के दबाव में न आए, जातियों की गणना एक सर्वे के स्थान पर मूल जनगणना में ही सम्मिलित होनी चाहिए। इससे समाज आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से मजबूत होगा और देश की निर्बाध प्रगति होती रहेगी।


 आजादी के बाद की सभी जनगणनाओं में जातियों की गणना नहीं की 


वैष्णव ने कहा कि कांग्रेस की सरकारों ने आज तक जातीय गणना का विरोध किया है। आजादी के बाद की सभी जनगणनाओं में जातियों की गणना नहीं की गई। वर्ष 2010 में तत्कालीन प्रधानमंत्री दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह ने लोकसभा में आश्वासन दिया था कि जाति जनगणना पर कैबिनेट में विचार किया जाएगा।

इसके बाद मंत्रिमंडल समूह का भी गठन किया गया था, जिसमें अधिकांश राजनीतिक दलों ने जातीय गणना की संस्तुति की थी इसके बावजूद कांग्रेस की सरकार ने जाति जनगणना के बजाए एक सर्वे कराना ही उचित समझा, जिसे एसईसीसी के नाम से जाना जाता है। वैष्णव ने कहा, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन के दलों ने जातीय गणना के विषय को केवल अपने राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया।

जल्द शुरू हो सकती है: सरकार जल्द जनगणना शुरू करा सकती है। केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारीब ताया कि सरकार का ध्यान इसे शुरू कराने पर है क्योंकि इसमें पहले ही पांच वर्ष का विलंब हो चुका है। हालांकि गृह मंत्रालय इस बात पर चुप्पी साधे हुए है कि यह वृहद गणना कब की जाएगी। बजट में जनगणना के लिए 574.80 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। हालांकि संपूर्ण जनगणना, एनपीआर प्रक्रिया पर सरकार को 13,000 करोड़ से अधिक का खर्च आने का अनुमान है

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