बच्चों के नैतिक पतन का कारण: वेब सीरीज़ और यूट्यूब की गिरती गुणवत्ता

The reason for moral degradation of children: Falling quality of web series and YouTube
 
आज के डिजिटल युग में बच्चों के संस्कारों और चरित्र निर्माण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा

लेखक: पूरन चंद्र शर्मा | विनायक फीचर्स

आज के डिजिटल युग में बच्चों के संस्कारों और चरित्र निर्माण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जिन मूल्यों और आदर्शों को माता-पिता वर्षों तक बच्चों में रोपते हैं, वे कुछ घंटों की वेब सीरीज़, यूट्यूब चैनलों और टीवी शोज़ के प्रभाव में धूमिल हो रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर परोसा जा रहा अश्लील, भ्रामक और सनातन विरोधी कंटेंट बच्चों की सोच और व्यवहार को गहराई से प्रभावित कर रहा है।

मीडिया की भूमिका और पाखंडी प्रचारकों का जाल

कुछ स्वयंभू सामाजिक कार्यकर्ता और पाखंडी संत धर्मग्रंथों की मनमानी व्याख्या कर युवाओं को भ्रमित कर रहे हैं। उदाहरण स्वरूप, भगवान राम और माता सीता के प्रसंगों को संदर्भ से हटाकर तलाक को जायज़ ठहराने की कोशिश की जाती है। ये लोग यह नहीं समझते कि भगवान राम ने जनभावना का सम्मान करते हुए व्यक्तिगत बलिदान का मार्ग चुना था। यह प्रसंग न्याय, समानता और सार्वजनिक उत्तरदायित्व की गूढ़ शिक्षा देता है, न कि पारिवारिक विघटन का औचित्य।

रामायण: एक आदर्श जीवन की दिशा

रामायण केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि एक जीवन-पथदर्शक ग्रंथ है, जो हमें हर रिश्ते की मर्यादा, परिवार में सामंजस्य और सामाजिक उत्तरदायित्व की सीख देता है। यह ग्रंथ विश्व भर में नीतिशास्त्र और चरित्र निर्माण का आदर्श है।

पाठ्यक्रम और शिक्षा प्रणाली में खामियाँ

बच्चों में नैतिकता की कमी का एक मुख्य कारण शिक्षा प्रणाली में मौजूद असंतुलन भी है। देश में अब तक एकरूप शिक्षा नीति का अभाव रहा है। कई राज्य सरकारें राजनीतिक विचारधारा के अनुसार पाठ्यक्रम तय करती हैं, जिसमें देश के सच्चे नायकों जैसे छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप, झांसी की रानी, संत तुकाराम, संत तुलसीदास आदि को समुचित स्थान नहीं मिलता।

इसके बजाय मुगल शासकों को बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है, जिससे बच्चों में अपने गौरवशाली इतिहास और संस्कृति के प्रति गर्व की भावना विकसित नहीं हो पाती। यदि रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवत जैसे ग्रंथों को शैक्षिक पाठ्यक्रम में उचित स्थान दिया जाए, तो बच्चों को नैतिक मूल्यों की शिक्षा सहज रूप में दी जा सकती है।

समाधान की दिशा में कदम

  1. एक समान शिक्षा नीति: पूरे देश में एकरूप और मूल्य-आधारित शिक्षा नीति लागू की जानी चाहिए।

  2. चरित्र निर्माण पर बल: बच्चों को स्मार्टफोन देने से पहले चरित्र निर्माण से जुड़ी पुस्तकें दें। गीता प्रेस और अखिल भारतीय गायत्री परिवार द्वारा प्रकाशित साहित्य बच्चों के लिए अत्यंत उपयोगी है।

  3. सकारात्मक मीडिया सामग्री: गुणवत्तापूर्ण और सांस्कृतिक मूल्यों से युक्त टीवी शोज़, ऐप्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म को प्रोत्साहित करना होगा।

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