वन्य जीवों का संरक्षण
(पंकज शर्मा “तरुण” – विभूति फीचर्स) वन्य जीवों के प्रति मनुष्य का लगाव और आकर्षण आदिकाल से ही रहा है। महाभारत में राजा पांडु द्वारा हिरण के शिकार का प्रसंग हो, कंस द्वारा श्रीकृष्ण के मथुरा आगमन पर हाथी को मदिरापान करवा कर उनकी हत्या का असफल प्रयास, या फिर रामायण में माता जानकी का मायावी स्वर्ण मृग के प्रति आकर्षण—हर पौराणिक ग्रंथ में वन्य जीवों से जुड़ी कथाएँ मिलती हैं। यह इस बात का प्रमाण हैं कि मानव और वन्य जीवों के बीच एक गहरा, भावनात्मक संबंध रहा है।
वर्तमान समय में भी भारत सरकार एशिया से विलुप्त हो चुके चीते को दक्षिण अफ्रीकी देशों से करोड़ों रुपये खर्च कर कूनो राष्ट्रीय उद्यान और गांधीसागर अभयारण्य में पुनः बसाने का प्रयास कर रही है। यह बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र को पुनः संतुलित करने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। किंतु दूसरी ओर, शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या में लगातार हो रही वृद्धि से ईश्वर द्वारा निर्मित खाद्य श्रृंखला के असंतुलित होने का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।
इसका प्रत्यक्ष उदाहरण नीलगाय के रूप में देखा जा सकता है, जिसे अब विशेषज्ञ ‘रोज’, ‘रोजड़ा’ या ‘घोड़ा रोज’ जैसे नाम देने लगे हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन का परिणाम यह है कि किसान अपनी ही उन्नत खेती को नीलगाय द्वारा उजड़ते हुए विवश होकर देख रहा है। इसी तरह मध्य प्रदेश के शाजापुर, सीहोर और उज्जैन जिलों में कृष्ण मृग और जंगली सूअर खेतों में खड़ी फसलों को रौंदते और चरते देखे जा सकते हैं। इनके पीछे-पीछे तेंदुआ, बाघ, लकड़बग्घा, सियार और जंगली कुत्ते जैसे मांसाहारी वन्य जीव भी मानव बस्तियों की ओर बढ़ने लगे हैं, जो भविष्य में मानव समाज के लिए गंभीर संकट बन सकते हैं।

वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम के तहत इन जीवों के शिकार या उन्हें क्षति पहुँचाने पर कठोर दंड का प्रावधान है। वहीं, फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सरकार द्वारा मुआवजे की व्यवस्था भी की गई है, लेकिन इसकी जटिल प्रक्रिया के कारण किसान शायद ही इसका लाभ उठा पाते हैं।
हाल ही में असम में राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन से टकराने के कारण सात जंगली हाथियों की दर्दनाक मृत्यु हो गई। इस हादसे में ट्रेन का इंजन और पाँच बोगियाँ भी पटरी से उतर गईं। भले ही इस दुर्घटना में कोई जनहानि नहीं हुई, लेकिन हमने अपने अमूल्य वन्य जीवों को खो दिया। एक ओर सरकार वन्य जीव संरक्षण पर भारी धनराशि खर्च कर रही है, वहीं दूसरी ओर ऐसी घटनाएँ हमारी व्यवस्था की गंभीर चूक और लापरवाही को उजागर करती हैं।हाथियों के प्राकृतिक आवास की सुरक्षा की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारों की है। फिर ऐसी घटनाओं की जिम्मेदारी लेने से बचा क्यों जाता है? हाथी, जिन्हें हमारे शास्त्रों में प्रथम पूज्य भगवान गणेश के रूप में सम्मान प्राप्त है, पर्यावरण के संतुलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
सरकारों को चाहिए कि हाथियों के आवास क्षेत्रों में रेलवे लाइनों के आसपास सुरक्षात्मक बाड़ लगाई जाए, चेतावनी प्रणाली विकसित की जाए और लोको पायलटों को संवेदनशील क्षेत्रों में ट्रेन की गति सीमित रखने के सख्त निर्देश दिए जाएँ। पर्यावरण मंत्रालय को इस दिशा में ठोस और प्रभावी कदम उठाने होंगे, ताकि भविष्य में ऐसी अपूरणीय क्षति को रोका जा सके और हमारा पर्यावरण सुरक्षित रह सके।
