बिहार के जवान रामबाबू सिंह की मौत पर उठा विवाद, सरकार ने स्पष्ट किया- नहीं माने जाएंगे 'संघर्ष में शहीद

इससे पहले मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में रामबाबू सिंह को "बीएसएफ जवान" बताया गया था और उनके परिवार को ₹50 लाख की अनुग्रह राशि देने की घोषणा की गई थी। लेकिन बाद में प्राप्त हुई जानकारी ने तस्वीर बदल दी।
सेना से मिला स्पष्टीकरण
राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया कि, “हमें मंगलवार रात सेना से एक आधिकारिक पत्र प्राप्त हुआ, जिसमें बताया गया कि रामबाबू सिंह सेना के जवान थे और उनकी मृत्यु सड़क दुर्घटना में हुई थी। इसलिए इसे ‘संघर्ष में शहादत’ नहीं माना जा सकता।”
हवाई अड्डे पर नहीं मिला गार्ड ऑफ ऑनर
रामबाबू सिंह का पार्थिव शरीर बुधवार सुबह पटना एयरपोर्ट लाया गया, जहां उन्हें पुष्पांजलि तो दी गई, लेकिन उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया गया। आमतौर पर शहीदों को यह सम्मान दिया जाता है।
इस दौरान विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव एयरपोर्ट पर मौजूद थे। उन्होंने इस मामले पर सवाल उठाते हुए कहा, “मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में रामबाबू सिंह को बीएसएफ जवान बताया था, लेकिन अब जानकारी आई है कि वे सेना में थे। मुख्यमंत्री स्तर पर ऐसी जानकारी में भ्रम चिंता का विषय है।”
तेजस्वी यादव ने आगे कहा कि उन्हें रामबाबू सिंह के पार्थिव शरीर के आने की कोई औपचारिक सूचना नहीं दी गई। “मैं अपनी पहल पर आया, लेकिन यह दुखद है कि राज्य सरकार के किसी मंत्री या उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी नहीं थी,” उन्होंने कहा।
राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार
रामबाबू सिंह का अंतिम संस्कार बुधवार को उनके पैतृक गांव वसिलपुर (सीवान) में राजकीय सम्मान के साथ किया गया। तेजस्वी यादव ने रामबाबू के परिवार से फोन पर बात कर संवेदना भी व्यक्त की और सरकार से आग्रह किया कि वह ₹50 लाख की अनुग्रह राशि देने के अपने वादे को निभाए। रामबाबू सिंह हाल ही में विवाह के बंधन में बंधे थे, और उनकी आकस्मिक मृत्यु से पूरे गांव में शोक की लहर है।