सरकारी योजनाओं के नाम पर विवाद
(डॉ. सुधाकर आशावादी – विनायक फीचर्स) राष्ट्रीय कल्याणकारी योजनाओं का नाम किसी परिवार या व्यक्ति विशेष के नाम पर ही क्यों रखा जाना चाहिए—यह प्रश्न आज व्यापक बहस का विषय बन चुका है। विभिन्न योजनाओं के नाम बदले जाने को लेकर जो राजनीतिक विवाद खड़े किए जा रहे हैं, वे इसी मानसिकता का परिणाम हैं। सर्वविदित है कि किसी भी राष्ट्र के निरंतर विकास के लिए समय के साथ कदमताल करना आवश्यक होता है। व्यवस्था में सुधार के लिए किए गए भागीरथी प्रयासों से ही राष्ट्र प्रगति के पथ पर आगे बढ़ता है।
दुर्भाग्यवश, देश में वंशवादी राजनीति के कारण परिवर्तन और सुधार के हर प्रयास का विरोध करना सत्ता से बाहर बैठे राजनीतिक दलों की आदत बन चुका है। यदि ऐसा न होता, तो ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराने वाली मनरेगा योजना में सुधारात्मक बदलावों का विरोध नहीं किया जाता। न ही इस योजना का नाम परिवर्तित कर “विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एवं आजीविका मिशन (ग्रामीण)” किए जाने पर इतना हो-हल्ला मचाया जाता।

वास्तविकता यह है कि मनरेगा में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त करने और इसे अधिक पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से सुधार किए गए हैं। इसके बावजूद विरोध का स्वर सैद्धांतिक कम और राजनीतिक अधिक प्रतीत होता है। जिन दलों ने नरेगा को महात्मा गांधी के नाम से जोड़कर मनरेगा बनाया, वे नहीं चाहते कि इस योजना को किसी एक व्यक्ति के नाम से मुक्त किया जाए।
विडंबना यह है कि लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहे एक खास परिवार ने देश की अधिकांश कल्याणकारी योजनाओं और संस्थानों पर अपने परिवार तथा महात्मा गांधी के नाम अंकित किए। उस परिवार को राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित अन्य महापुरुषों के नाम कभी स्वीकार्य नहीं रहे। यदि देशभर में लागू योजनाओं और प्रमुख स्थलों के नामों का इतिहास खंगाला जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि उस खास परिवार ने अपने परिवार से इतर किसी महापुरुष को यथोचित सम्मान नहीं दिया। न नेताजी सुभाष चंद्र बोस को, न ही देश के अन्य क्रांतिकारी वीर सपूतों को।
इस परिवार की दृष्टि में देश के पुनरुत्थान और विकास में कुछ गिने-चुने पारिवारिक सदस्यों की भूमिका ही सर्वोपरि रही है, जबकि कोई भी लोकतांत्रिक राष्ट्र किसी एक परिवार की बपौती नहीं हो सकता।कल्याणकारी योजनाएँ देश के प्रत्येक नागरिक के हित में बनाई जाती हैं। ऐसी योजनाओं को किसी व्यक्ति विशेष के नाम से जोड़कर प्रचारित करने या लागू करने का कोई औचित्य नहीं है। योजनाएँ सर्वकल्याण के लिए होती हैं, न कि किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति विशेष के महिमामंडन के लिए। किसी भी राजनीतिक हस्ती के नाम पर योजना चलाना राजनीतिक शुचिता के सिद्धांतों के विपरीत है।
राष्ट्रहित में बनाई गई योजनाओं के नाम ऐसे होने चाहिए जो राष्ट्रीय चेतना और सामूहिक भावना को प्रतिबिंबित करें, न कि किसी परिवार या व्यक्ति विशेष के प्रचार का माध्यम बनें। आवश्यकता इस बात की है कि देश में किसी परिवार या व्यक्ति के नाम से चलाई जा रही सभी कल्याणकारी योजनाओं को राष्ट्रीय योजनाओं के रूप में पुनः परिभाषित किया जाए। देश किसी परिवार या व्यक्ति-विशेष के गुणगान तक सीमित नहीं रह सकता। परिवर्तन ही संसार का नियम है और इसे दलगत राजनीति या किसी राजनीतिक परिवार की स्तुति तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए।
