बायोमेट्रिक तकनीक से संदिग्ध घुसपैठियों पर कसा शिकंजा: एक जटिल राष्ट्रीय चुनौती
संजय सक्सेना,लखनऊवरिष्ठ पत्रकार : भारत सरकार के समक्ष बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों के रूप में देश में अवैध रूप से प्रवेश करने वाले लोगों की समस्या एक जटिल और संवेदनशील चुनौती बन गई है। ये घुसपैठिए आधार कार्ड, वोटर कार्ड, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और यहां तक कि पासपोर्ट जैसे दस्तावेज़ भी प्राप्त कर चुके हैं, जिससे इनकी पहचान करना अत्यंत कठिन हो गया है। केंद्र और राज्य सरकारें, विशेषकर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, इस समस्या से निपटने के लिए बहुआयामी तकनीकी, कानूनी और प्रशासनिक प्रयास कर रही हैं।
पहचान और तकनीकी निगरानी
पहचान प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने बायोमेट्रिक तकनीक का उपयोग बढ़ाया है। आधार कार्ड को फिंगरप्रिंट और आईरिस स्कैन से लिंक किया गया है, जिसके जरिए संदिग्ध दस्तावेजों की जाँच की जाती है।
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यूपी में अनुमान: उत्तर प्रदेश में 2019 के संयुक्त सर्वे में लगभग 10 लाख घुसपैठियों की पहचान की संभावना जताई गई थी, जिनकी संख्या पिछले छह वर्षों में काफी बढ़ चुकी है।
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फर्जी दस्तावेज़: अधिकांश घुसपैठिए खुद को असम या त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों का निवासी बताते हैं और फर्जी आधार कार्ड दिखाते हैं, जो एजेंटों द्वारा पश्चिम बंगाल या असम में बनाए जाते हैं।
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निष्कासन अभियान: वोटर सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण अभियान के तहत संदिग्ध नाम हटाए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल में 15,000 बांग्लादेशी घुसपैठियों को सीमा पर वापस भेजा गया। पासपोर्ट और पैन कार्ड की प्रक्रिया में भी फर्जी दस्तावेजों को रोकने के लिए कड़ी निगरानी रखी जा रही है।
कानूनी प्रक्रिया और डिटेंशन सेंटर
अवैध नागरिकों के निष्कासन की प्रक्रिया विदेशी नागरिक अधिनियम और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर आधारित है।
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डिटेंशन सेंटर: संदिग्धों को डिटेंशन सेंटरों में रखा जाता है, जहाँ उनकी नागरिकता सत्यापित होती है। देशभर में दिल्ली समेत 18 डिटेंशन सेंटर कार्यरत हैं, जिनमें 1500 से अधिक विदेशी नागरिक (बांग्लादेशी और रोहिंग्या) रखे गए हैं।
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निष्कासन के आँकड़े (2025): 2025 में, मुंबई पुलिस ने 1001 बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजा, जबकि असम और अन्य राज्यों से 142 रोहिंग्याओं का निष्कासन हुआ।
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सीमा पर पकड़: BSF ने जनवरी 2024 से दिसंबर 2025 तक भारत-बांग्लादेश सीमा पर 2601 घुसपैठियों को पकड़ा। हालाँकि, कई घुसपैठिए पकड़े जाने के बाद वापस भेजे जाने पर भी कुछ ही दूरी से लौट आते हैं, और बांग्लादेश की सेना उन्हें अपना नागरिक मानने से इंकार कर देती है।
योगी सरकार का आक्रामक रुख
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार इस मुद्दे पर सबसे आक्रामक रुख अपना रही है:
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रोहिंग्या पहचान: उत्तर प्रदेश में रोहिंग्या बस्तियों में 700 से 800 लोगों की पहचान हो चुकी है, और 250 अन्य का सत्यापन चल रहा है। लखनऊ से 160 घुसपैठिए रातोंरात भाग गए थे।
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डिटेंशन सेंटर निर्माण: मेरठ में 500 क्षमता वाला डिटेंशन सेंटर बन रहा है, और हर मंडल में डिटेंशन सेंटर स्थापित किए जा रहे हैं।
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बायोमेट्रिक डेटाबेस: घुसपैठिए दोबारा न लौटें, इसके लिए बायोमेट्रिक डेटाबेस तैयार किया जा रहा है।
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ऑपरेशन टॉर्च: सहारनपुर में 'ऑपरेशन टॉर्च' चलाया जा रहा है, जिसमें झुग्गी-झोपड़ियों, रेलवे स्टेशनों और सीमावर्ती इलाकों में तलाशी ली जा रही है। मुख्यमंत्री ने जनता से सहयोग की अपील की है और वोटर सूची से नाम हटाने तथा कानूनी कार्रवाई का वादा किया है।
प्रमुख चुनौतियाँ
इन प्रयासों के बावजूद कई चुनौतियाँ प्रक्रिया को धीमा कर रही हैं:
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सत्यापन में देरी: 10 लाख से अधिक घुसपैठियों के छिपे होने के कारण सत्यापन में समय लगता है। फर्जी कागज़ातों पर कोलकाता जैसे शहरों में लाखों बांग्लादेशी सरकारी लाभ ले रहे हैं।
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एजेंट नेटवर्क: पूर्वोत्तर राज्यों से मूल निवास का सत्यापन कराना कठिन होता है क्योंकि एजेंटों का नेटवर्क मजबूत है।
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मानवाधिकार बाधाएं: मानवाधिकार संगठन और रेड क्रॉस निष्पक्षता की निगरानी करते हैं, जिससे निष्कासन की प्रक्रिया धीमी पड़ती है।
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संसाधनों की कमी: उत्तर प्रदेश जैसे घनी आबादी वाले राज्य में संसाधनों की कमी से अभियान प्रभावी ढंग से नहीं चल पाते हैं।
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सीमावर्ती घुसपैठ: डिजिटल निगरानी और संयुक्त टीमों के बावजूद, सीमावर्ती जंगलों, खेतों और नदियों के माध्यम से घुसपैठ जारी है।
केंद्र सरकार ने गृह मंत्रालय के गजट नोटिफिकेशन के माध्यम से सभी राज्यों को डिटेंशन सेंटर बनाने के निर्देश दिए हैं। योगी सरकार के कदमों से घुसपैठियों में खौफ फैला है। घुसपैठ को रोकने के लिए संसाधनों में वृद्धि, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सत्यापन प्रक्रिया को तेज करने की आवश्यकता है, ताकि देश की सुरक्षा, आर्थिक बोझ और सामाजिक शांति का संतुलन बना रहे।

