बिहार -झारखंड में अंगिका भाषा पर संकट के बादल

Clouds of crisis over Angika language in Bihar-Jharkhand
 
Clouds of crisis over Angika language in Bihar-Jharkhand

(प्रसून लतांत-विनायक फीचर्स) बिहार के भागलपुर, मुंगेर,खगड़िया, पूर्णिया, बेगूसराय और बांका सहित झारखंड की कई विधानसभाओं को जोड़ें तो करीब 60 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में एनसीआरटी की करतूत से अंगवासी उबल पड़े हैं। वे सड़कों पर उतरकर केंद्र सरकार से देश भर की भाषा सूची में अंगिका को शामिल करने और एनसीईआरटी से अपनी गलतियां सुधारने के साथ कई अन्य मांग भी करने लगे हैं। एनसीआरटी ने उन सभी जिलों को भी मैथिली भाषी क्षेत्र बताया है, 

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जहां आज भी अंगिका बोलने वालों की संख्या अधिक है। इन क्षेत्रों को बिहार और झारखंड सरकारें भी अंग क्षेत्र मानकर अंगिका सम्बन्धी विशेष कार्यक्रम आयोजित करती रहती हैं। इन क्षेत्रों में अंगिका के विकास के लिए बिहार सरकार ने बिहार अंगिका अकादमी का गठन किया है। साथ ही तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अंगिका भाषा में एम ए की पढ़ाई भी पिछले कई सालों से हो रही है। इस विश्वविद्यालय से अंगिका भाषा में दक्ष होकर निकले युवा रोजगार की तलाश में भटक रहे हैं।

उधर झारखंड सरकार ने साहेबगंज, गोड्डा , देवघा ,पाकुड ,दुमका और जामताड़ा को अंगिका भाषी जिला अधिसूचित कर दिया है । मंजूषा कला अंग की विरासत के रूप में देश विदेश में अपनी कामयाबी का डंका पीट रही है अगर ये क्षेत्र मैथिली के होते तो आज वहां मंजूषा कला की जगह मधुबनी कला की भरमार होती। इसके अलावा बिहार राष्ट्र भाषा परिषद से प्रकाशित दर्जनों ग्रंथों को प्रकाशित कर अंगिका के दायरे को सुनिश्चित किया है। अंग प्रदेश की लोक गाथाओं सहित लोक गीत, लोक कथा, लोक नाटकों और लोकोक्तियों में अंगिका की जोरदार उपस्थिति देखी जा सकती है।

 अंगवासी इन सब दावों के साथ यह सवाल भी उठा रहे हैं कि जब स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भागलपुर की एक जनसभा में अपने भाषण की शुरुआत बाकायदा अंगिका बोलकर की है। फिर कैसे एनसीईआरटी ने अंगिका क्षेत्र को मैथिली भाषी क्षेत्र घोषित कर दिया है? लोग हैरान हैं और उनको यह आशंका भी सताने लगी है कि कहीं उनकी अपनी मौलिक मातृभाषा सदा के लिए लुप्त न हो जाए। अंगिका भाषा में लिखने पढ़ने का दौर निरंतर चल रहा है। सैकड़ों लेखक, कवि और पत्रकार अंगिका को बचाने के लिए अपने वजूद को झोंक रहे हैं। इस कारण अंगिका के प्रति जागृति आम से आम लोगों में भी पहले से कई गुणा ज्यादा बढ़ गई है।
            बिहार और झारखंड सरकारों को चाहिए कि वे देश के केंद्रीय गृह मंत्रालय को अंगिका को कोड देने की मांग करें, नहीं तो आए दिन अंगिका पर नए नए संकटों के आने का सिलसिला थमेगा नहीं और ऐसे में कहीं अंगिका को बोलने वाले लोगों की संख्या करोड़ों में होते हुए भी उसे लुप्त प्रायः भाषा न घोषित कर दे। एनसीईआरटी को अंग क्षेत्र को मैथिली क्षेत्र बताने के पहले भारत सरकार को अपने ही जनगणना आयोग की सर्वे रिपोर्ट को ही देख लेना चाहिए था कि बिहार के किस जिले में कौन सी भाषा बोलने वालों की संख्या कितनी है। एनसीआरटी ने हाल ही में प्रकाशित अपनी प्रवेशिका पुस्तक में अंगिका बोलने वाले क्षेत्र को मैथिल क्षेत्र बताया है। भागलपुर, मुंगेर, कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज, बांका और कटिहार के साथ झारखंड के उन जिलों को भी मैथिली क्षेत्र बता दिया है, जिनकी पहचान ज्यादातर अंगिका बोलने वालों के रूप में है।
        दिल्ली में भारत मंडपम में विश्व पुस्तक मेले के दौरान भारत सरकार के जनगणना आयोग के स्टाल पर विभिन्न पुस्तकों के बीच प्रदर्शित जनगणना आयोग द्वारा प्रकाशित लैंग्वेज एटलस ऑफ इंडिया 2011 के मुताबिक मैथिली मधुबनी, दरभंगा, सहरसा और मधेपुरा आदि जिलों में अधिकतर लोग मैथिली बोलते हैं लेकिन पूर्णिया, किशनगंज,बेगूसराय मुजफ्फरपुर,कटिहार,लखीसराय, खगड़िया,भागलपुर,मुंगेर,जमुई और बांका में मुश्किल से एक फीसदी से भी कम लोग ही मैथिली बोलते हैं जब इतने कम मैथिली बोलने वाले लोग हैं तो एनसीईआरटी ने किस आधार पर और किस सर्वे के अनुसार जिन क्षेत्रों में ज्यादातर अंगिका बोलते हैं,उनको मैथिली भाषी क्षेत्र बताने की कोशिश की है। लैंग्वेज एटलस के मुताबिक पूर्णिया में 10.72 फीसद, किशनगंज में 02.63 फीसद, बेगूसराय में 02.43 फीसद, मुजफ्फरपुर में 01.33 फीसद, कटिहार 0.60 फीसद , लखीसराय में 0.52 फीसद, खगड़िया में 0.18 फीसद , भागलपुर में 0.04 फीसद, मुंगेर में 0.13 में फीसद, जमुई और बांका 0.07 फीसद ही लोग मैथिली बोलते हैं। अगर अंगिका को कोड मिल गया होता तो मैथिली को छोड़ कर बाकी बचे हुए आंकड़े अंगिका के नाम होते। लेकिन एटलस ने उपरोक्त क्षेत्रों में मैथिली बोलने वाले की संख्या न्यूनतम से न्यूनतम बताई है। फिर जब इन क्षेत्रों में इतने ही कम मैथिली बोलने वाले लोग हैं
तो एनसीआरटी ने किस आधार पर और किस सर्वे के आधार पर जिन क्षेत्रों में ज्यादातर लोग अंगिका बोलते हैं उनको मैथिली भाषा क्षेत्र बताने की कोशिश की है?इस मामले में एनसीईआरटी के निदेशक को अंग जन गण के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुधीर मंडल ने घोर आपत्ति जताते हुए एक पत्र लिखा है, लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं आया है और उनकी यह चुप्पी अंग वासियों के गुस्से को बढ़ाने में सहायक हो रही है।

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