भीड़, भगदड़ और मौतें: आखिर जिम्मेदार कौन?

Crowd, stampede and deaths: Who is responsible?
 
भीड़, भगदड़ और मौतें: आखिर जिम्मेदार कौन?

(लेखक: मनोज कुमार अग्रवाल | स्रोत: विनायक फीचर्स)

आईपीएल 2025 में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) की ऐतिहासिक जीत का उत्सव एक भयानक त्रासदी में बदल गया, जब बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम के पास मची भगदड़ में 11 लोगों की जान चली गई और दर्जनों घायल हो गए। यह हादसा इसलिए और भी पीड़ादायक है क्योंकि यह एक ऐसे मौके पर हुआ जो खुशी का प्रतीक होना चाहिए था।

Crowd, stampede and deaths: Who is responsible?

हाईकोर्ट का हस्तक्षेप और सरकार की लापरवाही

कर्नाटक हाईकोर्ट ने इस घटना पर स्वतः संज्ञान लेते हुए RCB, इवेंट मैनेजमेंट कंपनी DNA नेटवर्क्स, और कर्नाटक राज्य क्रिकेट संघ (KSCA) के खिलाफ गैर-इरादतन हत्या का केस दर्ज करने का आदेश दिया। साथ ही, कोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट भी मांगी है।

राज्य सरकार की ओर से पहले दावा किया गया कि 5,000 पुलिसकर्मी तैनात थे, लेकिन कोर्ट में माना गया कि सिर्फ 1,000 पुलिसकर्मी ही मौके पर मौजूद थे। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घटना की गंभीरता को देखते हुए आयोजन से जुड़े अधिकारियों की गिरफ्तारी के आदेश दिए और कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया।

कैसे हुआ हादसा?

जैसे ही आरसीबी की 'विक्ट्री परेड' का ऐलान हुआ, लाखों प्रशंसक स्टेडियम के आसपास उमड़ पड़े। अनुमान है कि करीब 3 लाख लोग इस आयोजन का हिस्सा बनने आए, जबकि स्टेडियम की क्षमता महज 40,000 है। कई फैंस तो स्टेडियम में जबरन घुसने की कोशिश करने लगे।

भीड़ को नियंत्रित करने में नाकाम पुलिस बल ने हल्का लाठीचार्ज किया, जिससे भगदड़ मच गई। ज़्यादातर मृतक बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे थे – जो ऐसे हालातों में सबसे ज़्यादा असहाय होते हैं।

क्रिकेट की दीवानगी या कुप्रबंधन?

भारत में क्रिकेट को लेकर दीवानगी किसी धर्म से कम नहीं। ऐसे में जब विराट कोहली और आरसीबी जैसे सितारों की झलक पाने का मौका हो, तो लाखों लोगों का जमा होना स्वाभाविक है। लेकिन सवाल ये है कि क्या प्रशासन इस भीड़ के लिए तैयार था?

ऐसे आयोजनों में crowd management की पूर्व योजना, प्रवेश नियंत्रित करने की व्यवस्था और प्राथमिक चिकित्सा सेवाओं की मौजूदगी अनिवार्य होती है। इस हादसे ने दिखा दिया कि आयोजकों और प्रशासन – दोनों की तैयारियां नाकाफी थीं।

हर बार मुआवज़ा, लेकिन कोई स्थायी समाधान नहीं

जैसा अक्सर होता है, इस बार भी सरकार ने मृतकों के परिजनों को ₹10 लाख मुआवज़े की घोषणा कर दी और घायलों के इलाज की जिम्मेदारी ली। लेकिन क्या मुआवज़ा उस परिवार के दर्द को कम कर सकता है, जिसने अपनों को एक ‘उत्सव’ में खो दिया?

हर बड़ी भगदड़ के बाद एक जांच समिति बनती है, रिपोर्ट तैयार होती है, लेकिन भीड़ प्रबंधन को लेकर कोई स्थायी नीति अमल में नहीं आती। हर बार हादसे के लिए 'अचानक बढ़ी भीड़' को जिम्मेदार ठहराया जाता है, मगर कुप्रबंधन और लापरवाही पर पर्दा डाल दिया जाता है।

सबक और सुझाव

  • सरकारों को भीड़ नियंत्रण नीति को प्राथमिकता देनी चाहिए, खासकर बड़े आयोजनों के लिए।

  • आयोजकों और अधिकारियों की सीधी जवाबदेही तय होनी चाहिए।

  • पब्लिक एडवाइजरी और पास सिस्टम को सख्ती से लागू किया जाना चाहिए।

  • लोगों को भी चाहिए कि वे बुजुर्गों और बच्चों को ऐसे आयोजनों में न लाएं, जहां भीड़ का अनुमान पहले से हो।

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