स्वर्णिम भारत का पर्याय है सांस्कृतिक विरासत

डॉ. शंकर सुवन सिंह ; भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक देश है। अतएव भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक दृष्टि से स्वावलम्बन, स्वाभिमानता और समानता परिलक्षित होती है। स्वावलम्बिता, स्वाभिमानिता और समानता के मूल में स्वाधीनता वास करती है।
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, विचारों की स्वतन्त्रता, विश्वास की स्वतन्त्रता, आस्था और पूजा की स्वतन्त्रता स्वतंत्र भारत की पहचान है। अतएव हम कह सकते हैं कि अक्षुण्ण विरासत और विकास की सेतु पर खड़ा सविधान ही भारतीय गणतंत्र व्यवस्था की पहचान है। आत्मविश्वास का होना ही आपको आत्मनिर्भर बनाता है। भगवद गीता में लिखा है नायं आत्मा बलहीनेन लभ्यः अर्थात यह आत्मा बलहीनो को नहीं प्राप्त होती है। आत्मबल ही आत्मविश्वास की जननी है। आत्मबल और आत्मनिर्भर शब्द एक दूसरे के पूरक हैं। आत्मनिर्भरता, स्वावलम्बी होने को दर्शाता है। स्वावलम्बन जीवन की सफलता की पहली सीढ़ी है। सफलता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को स्वावलम्बी अवश्य होना चाहिए। रामराज्य की परिकल्पना मोहनदास करमचंद गांधी की दी हुई थी।
गांधीजी ने भारत में अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति के पश्चात ग्राम स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी। आत्मनिर्भरता, रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित है। आत्मनिर्भर भारत की नींव गांधी के रामराज्य पर टिकी थी। गाँधी जी का स्वराज्य, रामराज्य की परिकल्पना का आधार था। स्वराज का अर्थ है जनप्रतिनिधियों द्वारा संचालित ऐसी व्यवस्था जो जन-आवश्यकताओं तथा जन-आकांक्षाओं के अनुरूप हो। यही स्वराज्य रामराज्य कहलाया। स्वराज का तात्पर्य स्वतंत्रता से है। बिना आत्मनिर्भर हुए स्वतंत्र नहीं हुआ जा सकता है। आत्मनिर्भरता या स्वावलम्बिता स्वतंत्र होने की एक कड़ी है। जब हम स्वतंत्र होंगे तभी हम स्वाभिमानी होंगे अर्थात स्वाभिमानिता के लिए स्वाधीनता जरुरी है। हिन्दुस्तान को गांधी का रामराज्य चाहिए। राम राज्य भगवान् राम के पुरुषार्थ और शासन का द्योतक है। भगवान् राम सहिष्णुता के प्रतीक थे।
राम सत्य के प्रतीक थे। तभी तो भगवान् राम ने रामराज्य स्थापित किया था। आज आत्मनिर्भर भारत बनाने की बात हो रही है और वहीँ दूसरी ओर विदेशी कम्पनियाँ और विदेशी सामान की हिन्दुस्तान में बाढ़ आ गई है। प्रत्येक संस्था का निजीकरण होता जा रहा है। बेरोजगारी बढ़ रही है। आत्महत्याओं का ग्राफ बढ़ा है। यदि स्वावलम्बन, समानता और स्वाभिमान की बात करनी हो तो गांधी के रामराज्य की कल्पना करनी होगी। अतएव हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता, गांधी के रामराज्य की परिकल्पना पर आधारित होनी चाहिए।
सभी राजनैतिक पार्टियों को राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के विचारों को आत्मसात करने की जरुरत है। वास्तव में भारत तभी स्वावलम्बी और स्वाभिमानी बन पाएगा। भारत को रामराज्य की परिकल्पना अपने पूर्वजों या पुरखों से विरासत में मिली हैं। रामराज्य की परिकल्पना रूपी विरासत को संजोकर रखने की जरुरत है। अयोध्या का राम मंदिर अपनी सांस्कृतिक विरासत का अद्वितीय उदाहरण है। भगवान् राम की प्राण प्रतिष्ठा के साथ राम मंदिर को पुनर्जीवित करना ही अपनी विरासत को सम्हालने का एक अच्छा उदहारण है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस पुण्य कार्य का श्रेय जाता है। किसी भी देश की विरासत उस देश के विकास की आधारशिला होती है। अतएव हम कह सकते हैं कि अक्षुण्ण विरासत, स्वर्णिम भारत का प्रतिबिम्ब है।