वर्तमान वैश्विक युद्ध परिदृश्य और शांति की पुनर्परिभाषा

Current Global War Scenario and the Redefinition of Peace

 
रूस-यूक्रेन का चार वर्ष से जारी संघर्ष, इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद की हिंसक जटिलता,

लेखक: विवेक रंजन श्रीवास्तव | स्रोत: विनायक फीचर्स

 शांति का सपना, युद्ध की सच्चाई

शीत युद्ध के अंत के साथ एक शांत और संतुलित विश्व व्यवस्था की उम्मीद जगी थी। लेकिन 21वीं सदी के तीसरे दशक में मानवता ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहाँ तकनीकी प्रगति और वैश्विक संपर्कों के बावजूद युद्ध और टकराव कहीं अधिक गहरे और व्यापक हो गए हैं।

रूस-यूक्रेन का चार वर्ष से जारी संघर्ष, इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद की हिंसक जटिलता,

रूस-यूक्रेन का चार वर्ष से जारी संघर्ष, इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद की हिंसक जटिलता, अफ्रीका के अनेक हिस्सों में गृहयुद्ध, एशिया में सीमा विवादों का तनाव, और सीरिया तथा यमन जैसे क्षेत्रों में जारी अशांति — इन सभी के बीच अमेरिका की ईरान-इज़राइल संघर्ष में भागीदारी ने वैश्विक शांति पर गहरा प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है।

चीन-ताइवान, उत्तर और दक्षिण कोरिया, भारत-पाक जैसे क्षेत्रीय विवाद इस बात का प्रमाण हैं कि स्थायी शांति अब भी एक दूरस्थ कल्पना बनी हुई है। ऐसे में, वैश्विक स्तर पर सामूहिक रूप से शांति की दिशा में प्रयास और उस पर चिंतन अत्यंत जरूरी हो गया है।

 युद्ध की बदली हुई परिभाषा

वर्तमान समय के युद्ध अब पारंपरिक सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। प्रॉक्सी वार, आतंकवाद, और साइबर युद्ध जैसे आधुनिक स्वरूपों ने युद्ध की भयावहता को कई गुना बढ़ा दिया है।

  • गैर-राज्य तत्वों द्वारा गुरिल्ला रणनीति का प्रयोग, जैसे यमन या सीरिया में देखा गया।

  • साइबर अटैक व डिजिटल प्रचार तंत्र से राष्ट्रों की सुरक्षा को खतरे में डालने वाली घटनाएं अब आम होती जा रही हैं।

  • सूचना युद्ध — जहां फर्जी खबरों और दुष्प्रचार के जरिए जनमत को प्रभावित और भटकाया जाता है — शांति के मार्ग में एक बड़ी बाधा बन चुका है।

 संघर्षों की जड़ें

वर्तमान संघर्षों के पीछे कई जटिल और आपस में गुंथे कारण हैं:

  • भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: अमेरिका-चीन के बीच वर्चस्व की होड़, रूस और पश्चिम के बीच बढ़ता टकराव।

  • संसाधनों पर नियंत्रण: तेल, गैस, जल और खनिजों की होड़ ने भीषण टकराव को जन्म दिया है।

  • पहचान आधारित राजनीति: जातीय, सांप्रदायिक और सांस्कृतिक टकरावों ने संघर्ष को और गहरा किया है।

  • राजनीतिक अस्थिरता और भ्रष्टाचार: संस्थागत विफलताएं और आर्थिक असमानता ने गृहयुद्धों को जन्म दिया।

  • जलवायु परिवर्तन: प्राकृतिक संसाधनों की कमी और पलायन की स्थितियों ने तनावों को और बढ़ाया है।

शांति: एक नई परिभाषा

आज शांति का अर्थ केवल युद्धविराम नहीं है। यह एक सकारात्मक, न्यायपूर्ण और सतत स्थिति है, जिसमें:

  • संघर्षों का शांतिपूर्ण समाधान हो,

  • मानवाधिकारों की रक्षा की जाए,

  • सामाजिक न्याय और समानता को बढ़ावा मिले,

  • और सतत विकास को प्राथमिकता दी जाए।

लेकिन मौजूदा वैश्विक संरचना, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र जैसी बहुपक्षीय संस्थाएं, महाशक्तियों के वर्चस्व और वीटो संस्कृति के कारण अक्सर निष्क्रिय हो जाती हैं।

 संभावनाओं के रास्ते

1. बहुपक्षवाद को पुनर्जीवित करें
संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक संस्थाओं को अधिक लोकतांत्रिक, उत्तरदायी और प्रभावशाली बनाया जाए। क्षेत्रीय संगठनों (जैसे अफ्रीकी संघ, यूरोपीय संघ, आसियान) को और अधिक सक्षम और स्वतंत्र भूमिका दी जानी चाहिए।

2. संघर्षों की रोकथाम पर ज़ोर
तनाव के शुरुआती संकेतों की पहचान कर राजनयिक संवाद, अर्थिक दवाब और सुधार की पहल से युद्ध से पहले ही समाधान निकालना चाहिए।

3. आर्थिक सहयोग से शांति
विकास परियोजनाओं, व्यापार, और निवेश से राष्ट्रों को आपसी निर्भरता की स्थिति में लाकर युद्ध की संभावनाओं को कम किया जा सकता है।

4. शांति स्थापना में दीर्घकालिक निवेश
युद्धविराम के बाद पुनर्निर्माण, न्याय, सुलह और लोकतांत्रिक संस्थानों को सशक्त बनाने की दिशा में प्रयास करना होगा।

5. जलवायु परिवर्तन से निपटना
जलवायु संकट अब केवल पर्यावरण का मुद्दा नहीं रहा, यह सुरक्षा और शांति का भी संकट बन गया है।

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