19 दिसम्बर फाँसी दिवस : काकोरी कांड के अमर नायक , शहीद अशफाक उल्ला खां

December 19th: Execution Day - The immortal hero of the Kakori incident, Martyr Ashfaqullah Khan.
 
19 दिसम्बर  फाँसी दिवस : काकोरी कांड के अमर नायक ,  शहीद अशफाक उल्ला खां

(प्रमोद दीक्षित मलय – विभूति फीचर्स)

“कुछ आरज़ू नहीं है, है आरज़ू तो यह है,
रख दे कोई ज़रा-सी ख़ाक-ए-वतन कफ़न में।”

ये अमर पंक्तियाँ हैं आज़ादी के दीवाने, माँ भारती के सच्चे साधक और महान क्रांतिकारी शहीद अशफाक उल्ला खां की, जिन्हें उन्होंने फाँसी से कुछ समय पूर्व लिखा था। जीवन की अंतिम घड़ियों में भी उनकी एकमात्र कामना यही थी कि वे भारत माता की पावन धूल को अपने कफ़न में समेट सकें। उनका संपूर्ण जीवन राष्ट्रसेवा और बलिदान की भावना से ओत-प्रोत रहा। कोई निजी इच्छा, कोई व्यक्तिगत स्वार्थ उनके जीवन में कभी स्थान नहीं पा सका।

अशफाक उल्ला खां केवल एक निर्भीक क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि हिंदू-मुस्लिम एकता के सशक्त सेतु और एक संवेदनशील शायर भी थे। उनकी शायरी में ओज, देशप्रेम, शौर्य, पराक्रम तथा राष्ट्रीय एकता और अखंडता की अनुगूंज स्पष्ट सुनाई देती है। मात्र 27 वर्ष की आयु में फाँसी का फंदा चूमने वाले इस वीर नर-नाहर को सभी क्रांतिकारी स्नेहपूर्वक ‘कुँवर जी’ कहकर संबोधित करते थे।

u888

जन्म और प्रारंभिक जीवन

अशफाक उल्ला खां का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर जनपद में एक ज़मींदार परिवार में हुआ। उनके पिता मोहम्मद शफीक उल्ला खां और माता मजहूरुन्निशा बेगम थे। वे अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे और घर में सभी उन्हें प्यार से ‘अच्छू’ कहा करते थे।बचपन से ही उन्हें तैराकी, घुड़सवारी, निशानेबाज़ी और शिकार का शौक था। ऊँची-मजबूत कद-काठी, बड़ी आँखें और गौरवर्णी व्यक्तित्व उन्हें अलग पहचान देता था। रामप्रसाद बिस्मिल की भाँति वे उर्दू के अच्छे शायर थे, साथ ही हिंदी और अंग्रेज़ी में भी लेखन करते थे।

क्रांति की राह पर कदम

वर्ष 1920 में अपने बड़े भाई के मित्र रामप्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आने के बाद उनके भीतर अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध विद्रोह की ज्वाला प्रज्वलित हुई। इसी दौरान बंगाल के क्रांतिकारियों से भी संपर्क बना और संगठित आंदोलन की आवश्यकता महसूस की गई।1924 में बंगाल से आए क्रांतिकारियों के सहयोग से ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA)’ की स्थापना हुई। 1 जनवरी 1925 को ‘दि रिवोल्यूशनरी’ नामक विचार-पत्र निकाला गया, जो संगठन का घोषणा-पत्र था। इसमें स्पष्ट लिखा था—“चाहे छोटा हो या बड़ा, गरीब हो या अमीर—प्रत्येक को समान अधिकार और न्याय मिलेगा।”

काकोरी कांड और ऐतिहासिक बलिदान

संगठन के विस्तार हेतु धन की आवश्यकता थी। कई प्रयासों के बाद अंततः सरकारी खजाना लूटने का निर्णय लिया गया। अशफाक ने प्रारंभ में इस योजना का विरोध किया, यह कहते हुए कि इससे संगठन पर संकट आ सकता है, लेकिन अंततः वे साथियों के साथ खड़े रहे।9 अगस्त 1925 को काकोरी के पास ट्रेन रोककर अंग्रेज़ी सरकार का खजाना लूटा गया। यह घटना ब्रिटिश हुकूमत के लिए बड़ी चुनौती बन गई। इसके बाद देश-भर में छापेमारी हुई और अनेक क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए। अशफाक पुलिस को चकमा देकर नेपाल और देश के विभिन्न हिस्सों में भटकते रहे, लेकिन अंततः विश्वासघात के कारण दिल्ली में गिरफ़्तार कर लिए गए।

फाँसी और अमर शब्द

काकोरी कांड के निर्णय में अशफाक उल्ला खां, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।19 दिसम्बर 1927, सोमवार को फैज़ाबाद जेल में अशफाक उल्ला खां को फाँसी दी गई। फाँसी से पूर्व उनके शब्द आज भी देशभक्तों के हृदय में गूँजते हैं—

“उरूज-ए-कामयाबी पर कभी हिंदोस्तां होगा,
रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमां होगा।”

अमर विरासत

शहीद अशफाक उल्ला खां का जीवन त्याग, साहस और राष्ट्रीय एकता का अनुपम उदाहरण है। वे न केवल इतिहास के पन्नों में, बल्कि हर देशभक्त के हृदय में सदैव जीवित रहेंगे।

वीर शिरोमणि अशफाक उल्ला खां को कोटि-कोटि नमन।
 

Tags