6 दिसंबर : भारतीय आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उदय का ऐतिहासिक दिन

(डॉ. राघवेंद्र शर्मा — विनायक फीचर्स)
6 दिसंबर भारतीय इतिहास में केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक ऐसे अध्याय का प्रतीक है जिसने सदियों पुराने संघर्ष, करोड़ों लोगों की आस्था, और भारतीय सभ्यता के आत्मसम्मान को निर्णायक रूप से प्रभावित किया। यह घटना केवल एक विवादित ढांचे का हटाया जाना नहीं थी, बल्कि भारतीय अस्मिता के पुनर्जागरण, हिंदू चेतना की मुखर अभिव्यक्ति और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के उत्कर्ष का संकेत भी थी।
सदियों का संघर्ष और आस्था का प्रतीक स्थल
अयोध्या हमेशा से हिंदू धर्म की आस्था का केंद्र रहा है। किंतु लंबे समय तक इस पवित्र स्थल पर एक ऐसा ढांचा मौजूद रहा जिसे बहुसंख्यक समाज ने अपनी ऐतिहासिक व धार्मिक पहचान पर एक गहरे घाव के रूप में महसूस किया। यह संघर्ष केवल भूमि विवाद का नहीं था, बल्कि न्याय, इतिहास और आस्था के सम्मान की माँग का संघर्ष था।
दशकों तक कानूनी लड़ाई, शांतिपूर्ण आंदोलनों, और अनगिनत कारसेवकों के त्याग के बावजूद यह मुद्दा समाधान तक नहीं पहुँच पाया। कई सरकारों की उपेक्षा और वोट बैंक आधारित राजनीति के कारण इस आंदोलन की पीड़ा और लंबी होती गई। इसके बावजूद सनातन समाज ने अद्भुत धैर्य और संविधान के प्रति आस्था बनाए रखी—जो किसी भी राष्ट्र के इतिहास में अपूर्व उदाहरण है।
6 दिसंबर 1992 : धैर्य का बाँध टूटने का क्षण
जब वर्षों तक संवैधानिक उपाय निष्क्रिय दिखाई दिए और समाज की भावनाओं की उपेक्षा लगातार जारी रही, तब 6 दिसंबर 1992 को यह धैर्य टूट गया। कारसेवकों द्वारा ढांचा ढहाया जाना इस बात का प्रतीक बना कि अपमान और ऐतिहासिक अन्याय को हमेशा के लिए स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह क्षण केवल धार्मिक भावनाओं का विस्फोट नहीं था, बल्कि उन लोगों के आत्मसम्मान की आवाज भी था जिन्होंने सदियों की उपेक्षा झेली।
इस घटना के बाद अयोध्या में भव्य श्रीराम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ—एक ऐसा मंदिर, जो भारतीय आत्मबोध, राष्ट्रीय गौरव और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक बन चुका है।
राष्ट्रीय गौरव की पुनर्स्थापना
भगवान श्रीराम भारतीय संस्कृति के सर्वोच्च आदर्शों—धर्म, मर्यादा और न्याय—के प्रतीक हैं। राम मंदिर का निर्माण केवल धार्मिक आस्था का विषय नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक मूलाधार की पुनर्स्थापना है जिसे विदेशी आक्रमणों और औपनिवेशिक शक्तियों ने कमजोर करने का प्रयास किया था। यह निर्माण भारत की प्राचीन सभ्यता पर अटूट विश्वास का साक्षी है।
हिंदू चेतना का सकारात्मक एकीकरण
राम मंदिर आंदोलन ने भारत के विशाल हिंदू समाज को जाति, क्षेत्र और भाषा की सीमाओं से ऊपर उठकर एक साझा उद्देश्य से जोड़ा। इसने एक ऐसी सकारात्मक चेतना को जन्म दिया जो केवल पूजा-पद्धति तक सीमित नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण, सामाजिक एकता और विश्व कल्याण की भावना से ओत-प्रोत है।
यह चेतना न तो आक्रामक है और न ही किसी के विरोध में खड़ी—यह आत्मसम्मान, जागरूकता और सांस्कृतिक बोध की चेतना है।
न्याय और सत्य की विजय
लंबे और गहन न्यायिक विचार-विमर्श के बाद आया सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला केवल कानूनी विजय नहीं था, बल्कि सत्य और आस्था के सम्मान की भी जीत थी। विवादित भूमि का रामलला को मिलना यह दर्शाता है कि भारतीय न्याय व्यवस्था जनता की भावनाओं और इतिहास के प्रमाणों के प्रति संवेदनशील है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की मजबूत नींव
6 दिसंबर की घटना और उसके बाद हुए परिवर्तनों ने भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की नींव को और मजबूत किया। इस आंदोलन ने यह स्पष्ट किया कि भारत की राष्ट्रीय पहचान उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं से अलग नहीं हो सकती।
यह उस सोच को चुनौती देता है जो केवल भौतिक विकास को राष्ट्र प्रगति का आधार मानती है। सांस्कृतिक और आध्यात्मिक उन्नयन भी उतना ही आवश्यक है।
नए भारत का सांस्कृतिक पुनर्जागरण
आज, जब अयोध्या में भव्य राम मंदिर राष्ट्र की नई पहचान बन चुका है, तब 6 दिसंबर का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह घटना भारत की सांस्कृतिक चेतना, साहस और आत्मसम्मान के पुनर्प्रतिष्ठापन की कहानी कहती है।
राम मंदिर निर्माण यह संदेश देता है कि—
सहनशीलता कमजोरी नहीं है, लेकिन आत्मसम्मान की रक्षा के लिए खड़ा होना हर राष्ट्र का कर्तव्य है।
यह मंदिर भारतीय सभ्यता की अनश्वरता, सनातन धर्म की महानता और राष्ट्र की समेकित चेतना का भव्य प्रतीक है।
(लेखक : मध्य प्रदेश बाल कल्याण आयोग के पूर्व अध्यक्ष, भाजपा के पूर्व प्रदेश कार्यालय मंत्री तथा वर्तमान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम के प्रदेश संयोजक हैं।)
(विनायक फीचर्स)
