विकास के हाशिये पर खड़ी विमुक्त घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियाँ

Denotified nomadic and semi-nomadic tribes standing at the margins of development
 
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विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियाँ वे समुदाय हैं जो ऐतिहासिक रूप से स्थायी आवास के बिना खानाबदोश जीवन व्यतीत करते रहे हैं। इनमें नट, बंजारे, गाड़िया लोहार, भांतू, बावरिया, सपेरा, कनजार, हबसी, परदेशी, खरवार, डोम, बघेल, रायकवार, काछी, पत्थरकटा जैसी कई उप-जनजातियाँ शामिल हैं।

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उत्तर प्रदेश जिस गति से विकास की नई इबारतें लिख रहा है, उसी अनुपात में कुछ वर्ग आज भी सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक रूप से उपेक्षित पड़े हैं। इन वंचित वर्गों में घुमन्तू जनजातियाँ सबसे प्रमुख हैं, जिनका जीवन संघर्ष, विस्थापन और सामाजिक उपेक्षा की त्रासद कहानी है। 

यह सच है कि सरकारें योजनाएँ बनाती हैं, बजट पास होते हैं, घोषणाएँ होती हैं, परन्तु सत्यता यह है कि विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियाँ आज भी शहरों और गाँवों के किनारों पर अस्थायी टहनियों के झोंपड़े या खुले मैदानों में रहने को विवश हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, और सम्मानजनक जीवन जैसे मूल अधिकार इनके लिए अब भी दूर का सपना हैं।
विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियाँ पहचान की तलाश में वो समुदाय हैं, जो अपने परंपरागत कौशल जैसे लोहारगीरी, काष्ठशिल्प, मिट्टी के बर्तन, गीत-संगीत, बांस कला, जड़ी-बूटी का ज्ञान से वर्षों तक समाज को सेवाएँ देते रहे, किन्तु न तो इन्हें सामाजिक सम्मान मिला और न ही सरकारी योजनाओं में ठोस सहभागिता। आज भी यह समुदाय प्रशासनिक अभिलेखों में अस्पष्ट पहचान के साथ दर्ज है। न स्थायी निवास, न राशन कार्ड, न विद्यालय में प्रवेश और न ही चिकित्सा सुविधा।
यदि सरकार "सबका साथ, सबका विकास" के अपने संकल्प को वास्तव में जमीन पर उतारना चाहती है, तो उसे विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियों के लिए एक पृथक और समर्पित कार्य योजना बनानी होगी।
इसमें प्राथमिकता हो: - सर्वेक्षण और पहचान – जिले और तहसील स्तर पर इनकी संख्या, स्थान, परम्पराएं, बीमारियाँ और आजीविका का विस्तृत सर्वे हो।
शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र - विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू बच्चों और महिलाओं के लिए विशेष आवासीय विद्यालय, चिकित्सा शिविर और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र खोले जाएं।
आवास पुनर्वास योजना - प्रत्येक परिवार को न्यूनतम 60 वर्ग मीटर भूमि, एक कमरा, शौचालय, बिजली और पानी जैसी सुविधाएँ युक्त आवास मिलना चाहिए।
कौशल विकास और बाज़ार से जुड़ाव - इनके पारम्परिक उत्पादों को आधुनिक तकनीक से जोड़कर प्रशिक्षण दिया जाए और उत्पादों को सरकारी स्टोरों, प्रदर्शनियों और ऑनलाइन मंचों से जोड़ा जाए।
उत्तर प्रदेश सरकार यदि राजधानी लखनऊ से एक "घुमन्तू जनजाति पुनर्वास परियोजना" की शुरुआत करे, तो यह पूरे प्रदेश के लिए एक मॉडल बन सकता है। समाज कल्याण, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास जैसे विभागों को एकजुट कर इस योजना को "बहुविभागीय मिशन मोड" में संचालित किया जा सकता है।
नैतिक उत्तरदायित्व की माँग है कि केवल योजनाओं और घोषणाओं से नहीं, बल्कि जमीन पर उनके जीवन में परिवर्तन लाकर ही इनका उत्थान संभव है। यह केवल प्रशासनिक या राजनीतिक कर्तव्य नहीं, बल्कि सामाजिक और नैतिक उत्तरदायित्व है कि हम इन मेहनतकश, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और आत्मनिर्भर समुदायों को सम्मान और अवसर प्रदान करें। आज आवश्यकता है एक सुनियोजित हस्तक्षेप की, जो इनकी पहचान लौटाए, स्वाभिमान जगाए और जीवन में स्थिरता लाए। जब तक विकास की धारा विमुक्त, घुमन्तू और अर्द्ध-घुमन्तू जनजातियों तक नहीं पहुँचेगी, तब तक ‘विकास’ अधूरा ही कहलाएगा।

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