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समर्पण एवं निष्ठा से की गई तप साधना से होती है भगवद्- प्राप्ति : आचार्य कौशल

कथा पीठाधीश्वर आचार्य कौशल ने कहा कि महाराज मनु के पौत्र व राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव का विमाता सुरुचि ने पिता के गोद में बैठने पर अपमान किया तो माता सुनीति ने भगवान विष्णु की साधना करने का मार्ग दिखाया। पांच वर्ष के बालक ध्रुव ने राजमहल छोड़कर वन में देवर्षि नारद के ॐ नमो भगवते वासुदेवाय के मंत्र से वर्षों तक कठिन साधना की। भगवान विष्णु ने बालक के तप से प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन दिया और सप्तर्षि तारा-मंडल का प्रधान बनाया। इसी प्रकार हरिद्रोही हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद ने पिता के अत्याचार को सहनकर भगवान विष्णु की भक्ति नही छोड़ी तो भगवान ने नरसिंह रूप में अवतार लेकर हिरण्यकशिपु का संहार कर प्रह्लाद को अपनी गोद में बिठाया। आचार्य प्रवर ने कहा कि भागवत धर्म से हमें यह शिक्षा मिलती है कि समर्पण भाव व निष्ठा से की गई तप साधना से न केवल भगवद् प्राप्ति होती है बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रतिष्ठा सफलता मिलती है।