धनतेरस: आरोग्य, समृद्धि और यमराज के भय से मुक्ति का पावन पर्व

(सोमेश्वर सिंह सोलंकी द्वारा एक विश्लेषण) भारतीय संस्कृति में प्रत्येक त्यौहार अपने आप में समय के महत्व और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को समेटे हुए है। त्यौहारों को केवल प्राचीन लकीर पर चलना या अंधविश्वास मानना, उनके गहरे महत्व से अनभिज्ञता को दर्शाता है। ये पर्व समाज में समरसता, भाईचारा और सौहार्द बढ़ाने, तथा उदासीनता का परित्याग कर लौकिक जीवन को सुखमय बनाने की प्रेरणा प्रदान करते हैं।
पंचदिवसीय दीपावली पर्व का शुभारंभ
कार्तिक मास के शुभांकों में दीपावली का त्यौहार पाँच दिनों तक चलता है:
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धनतेरस (त्रयोदशी): पर्व का शुभारंभ।
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नरक चतुर्दशी (रूपचौदस): दूसरा दिन।
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दीपावली-अमावस्या (लक्ष्मी पूजन): तीसरा दिन।
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प्रतिपदा (गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट): द्वितीय पक्ष (शुक्ल पक्ष) का पहला दिन।
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यम द्वितीया (भैया दूज और लेखनी पूजन): अंतिम दिन।
धनतेरस: यमराज, धनवंतरि और लक्ष्मी
धनतेरस का दिन धार्मिक आस्थाओं से गहरा जुड़ा हुआ है। यह दिन मुख्यतः तीन कारणों से महत्वपूर्ण है:
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यमराज और दीपदान: यह पर्व यमराज से संबंध रखता है। त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिन सायंकाल ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवताओं का पूजन कर दीपदान करने की परंपरा है। धनतेरस की शाम को यमराज के निमित्त घर के मुख्य द्वार पर दीपदान किया जाता है, इस विश्वास के साथ कि इससे असामायिक मृत्यु का भय नहीं रहता।
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भगवान धनवंतरि जयंती: इस पवित्र दिन पर भगवान धनवंतरि की जयंती मनाई जाती है, जो आयुर्वेद और आरोग्य के देवता हैं।
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नवीन क्रय का महत्व: मुख्य रूप से सौभाग्यवर्धन हेतु घर के पुराने या टूटे-फूटे बर्तनों के स्थान पर नवीन बर्तन खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
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यमुना स्नान: पौराणिक कथाओं के अनुसार, धर्मराज यम की बहन यमुना ने यम से वरदान प्राप्त किया था कि जो इस दिन उनके जल में स्नान करेगा, उसे यम का भय प्राप्त न हो।
सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक महत्व
दीपावली पंच दिवसीय त्यौहार है, जिसका महत्व केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और वैज्ञानिक भी है:
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आर्थिक महत्व: यह वह समय है जब कृषि प्रधान देश में खरीफ की फसलें (नवान्न) खलिहानों से घरों तक आती हैं। मुख्य धन (लक्ष्मी) के आगमन पर प्रसन्नता स्वाभाविक है।
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सामाजिक समरसता: इस त्यौहार पर अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का निर्माण और परस्पर वितरण समानता और प्रेमभाव उत्पन्न करने वाला सामाजिक प्रदर्शन है।
श्रम और सद्गुणों का संदेश
धर्म शास्त्री सनत्सुजात ऋषि के अनुसार, प्रमादी और आसुरी संपत्ति वाले मनुष्य मृत्यु (यमराज) से पराजित हैं, जबकि अप्रमादी, दैवी संपदा वाले महात्मा ब्रह्म स्वरूप हो जाते हैं। त्योहार वाली त्रयोदशी शुभाचरण की वह देहरी है जो जीवन में आगे बढऩे का मार्ग प्रशस्त करती है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन से इसी दिन ऐश्वर्य रूपी देवी महालक्ष्मी का प्रादुर्भाव हुआ था। इस मंथन से चौदह रत्न निकाले गए थे। यह हमें शिक्षा देता है कि परिश्रम से धन, वैभव की तो बात ही क्या, मनुष्य अमरत्व भी प्राप्त कर सकता है।
