धर्म नैतिक मूल्यों, सदाचार तथा कर्तव्यों का पर्याय, जो देश, काल और परिस्थितियों से अप्रभावित होकर सम और विषम परिस्थितियों में कर्तव्यों के प्रति आगाह करता

Religion is synonymous with moral values, good conduct and duties, which alerts us towards our duties in both good and bad circumstances, irrespective of place, time and circumstances.
 
Religion is synonymous with moral values, good conduct and duties, which alerts us towards our duties in both good and bad circumstances, irrespective of place, time and circumstances.
उत्तर प्रदेश डेस्क लखनऊ(आर एल पाण्डेय)। भारत के मुख्य न्यायाधीश मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0वाई0 चन्द्रचूड़, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी एवं न्यायाधीशगण आज यहां डॉ0 राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के तृतीय दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित हुए। इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0वाई0 चन्द्रचूड़ ने मुख्य अतिथि के तौर पर दीक्षान्त समारोह का शुभारम्भ किया। मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0वाई0 चन्द्रचूड़ तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने विश्वविद्यालय के मेधावी विद्यार्थियां को मेडल तथा प्रशस्ति पत्र प्रदान किये।  


मा0 मुख्य न्यायाधीश ने दीक्षान्त समारोह में सम्मिलित होने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि 09 वर्षों पश्चात डॉ0 राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में यह उनकी तीसरी विजिट है। विगत 02 विजिट में वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के तौर पर सम्मिलित हुए थे। उन्होंने कहा कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में लगभग 03 वर्षों के कार्यकाल में अनुभव किया कि यह प्रदेश, देश का हृदय व आत्मा है। 

हमारा देश भाषा और क्षेत्र के आधार पर विविधिताओं का देश है। उत्तर प्रदेश में भाषा व क्षेत्र के आधार पर अलग-अलग बोलियां हैं। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठता है कि न्याय और संविधान के मूल्यों को जन-जन तक कैसे पहुंचाया जाए। कई बार ऐसा होता है कि अपने मामले को लेकर आम नागरिक में यह समझ नहीं होती कि कोर्ट में क्या बहस हो रही है। भारत के मुख्य न्यायाधीश के रूप में उन्होंने ऐसे कई निर्देश दिए हैं, जिससे न्याय प्रक्रिया को आम लोगों के लिए आसान बनाया जा सके। उदाहरण के तौर पर उच्चतम न्यायालय द्वारा अंग्रेजी में दिए गए निर्णयों का भारत के संविधान में उल्लिखित विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है, जिससे आम जनता भी समझ सके कि निर्णय में क्या लिखा गया है। सन् 1950 से लेकर वर्ष 2024 तक सर्वोच्च न्यायालय के 3,7000 रिपोर्टिंग जजमेंट का हिंदी में अनुवाद किया जा चुका है। यह सेवा सभी नागरिकों के लिए डिजिटल एस0सी0आर0 के रूप में निःशुल्क है। सभी इस सेवा का उपयोग अवश्य करें। 


मा0 मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि वह अपने सहयोगियों एवं देश के तमाम शिक्षाविदों से विचार विमर्श करते हैं कि कैसे विधि शिक्षा को सरल भाषा में पढ़ाया जा सके। संविधान के अलग-अलग प्रावधानों में कुछ नियम और बुनियादी सिद्धांत हैं। हम इन सिद्धांतों को अंग्रेजी भाषा में अच्छा से अच्छा पढ़ाते हैं, लेकिन उन सिद्धांतों को क्षेत्रीय भाषाओं में समझाने में स्वयं को असहज पाते हैं। यदि हम कानून के सिद्धांतों को सरल भाषा में आम जनता को नहीं समझ पा रहे हैं, तो इसमें कानूनी पेशे और कानूनी शिक्षा की कमी नजर आ रही है। इस बात का असर आम नागरिकों विशेष कर समाज के कमजोर वर्गों पर पड़ता है।

हमारे देश में आम जनता की सुविधा के लिए कई कानूनी योजनाएं बनाई गई हैं। जैसे यदि कोई व्यक्ति न्यायालय में अपना मामला लेकर आना चाहता है, लेकिन कमजोर आर्थिक, सामाजिक स्थिति के कारण उसके पास वकील करने की सुविधा नहीं है। तब न्यायालय अपनी तरफ से उसके लिए वकील उपलब्ध करवाता है। इससे हम अंग्रेजी में राइट टू फ्री लीगल एड कहते हैं। इसी प्रकार यदि किसी व्यक्ति पर कोई कानूनी मुकदमा होता है और उसे जेल भेजा जाता है। यदि उसके पास स्वयं का वकील करने के पैसे नहीं होते हैं, तब भी उसे निःशुल्क कानूनी सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया हमारे संविधान के प्रावधानों में निहित है। 


इन योजनाओं के बावजूद यदि हम उस व्यक्ति को सरल भाषा में उसके अधिकारों के बारे में नहीं बता सकते, तो यह योजनाएं अधूरी साबित होंगी। प्रत्येक विधि विश्वविद्यालय को एक विधि सहायता केंद्र स्थापित करना अनिवार्य है। इन केन्द्रां में अध्यापकों, वकीलों और छात्रों द्वारा आम जनता के लिए कानूनी सेवाएं प्रदान करने की प्रक्रिया है। यह अपेक्षा है कि इन केन्द्रों में जरूरतमंद लोग आएंगे और उनको कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी। इसके अलावा कई बार विश्वविद्यालय के विधि सहायता केन्द्र अपने आसपास के गांवों में विधिक सहायता शिविर का भी आयोजन करते हैं। 


मा0 मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने उच्चतम न्यायालय के रिसर्च विभाग को यह आदेश दिया था कि इन सहायता केन्द्रां को बेहतर करने के उपायों पर विश्लेषण किया जाए। रिसर्च विभाग ने देश के 81 विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों का सर्वे किया, जिसके विश्लेषण में यह पाया गया कि आम जनता को अंग्रेजी भाषा न जानने की वजह से अपने अधिकारों से जुड़ी योजनाओं को समझने में कठिनाई महसूस होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि विधि विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई अंग्रेजी में होती है। कई बार छात्र विधिक सहायता केन्द्रों में कानूनी प्रक्रिया को आम जनता को क्षेत्रीय भाषाओं में ठीक से नहीं समझा पाते हैं। कानून को पढ़ाने की प्रक्रिया में हमें क्षेत्रीय भाषाओं को भी ध्यान में रखना चाहिए। डॉ0 राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय को हिंदी में स्नातक एवं परास्नातक कोर्स शुरू करने चाहिए।


मा0 मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि हमारे विश्वविद्यालयों में क्षेत्रीय मुद्दों से जुड़े कानून को भी बताया जाना चाहिए। पड़ोस के गांव से यदि कोई व्यक्ति आपके विश्वविद्यालय के विधिक सहायता केंद्र में आता है तथा अपनी जमीन से जुड़ी समस्या को बताता है, लेकिन यदि छात्र को खसरा और खतौनी का मतलब ही नहीं पता है तो छात्र उस व्यक्ति की सहायता कैसे कर पाएगा। लोगों के लिए उनकी जमीन महत्वपूर्ण है तथा उनकी आमदनी व जीवन जीने का स्रोत है। इसलिए जमीन से सम्बंधित क्षेत्रीय कानून के बारे में भी छात्र को अवगत कराना चाहिये। उत्तर प्रदेश आकर एहसास हुआ कि लोगों के लिए उनकी जमीन अत्यन्त महत्वपूर्ण है।
एक वकील को किसी भी सिद्धांत को सरल भाषा में समझाना आना चाहिए। इसके लिए हमें कानूनी शिक्षा के तरीकों पर पुनर्विचार करना होगा। इसमें हम तकनीक का भी सहारा ले सकते हैं तथा विश्वविद्यालयों में आपसी समन्वय की अपेक्षा भी कर सकते हैं। कई विश्वविद्यालय मिलकर कानून के विषय से संबंधित टीचिंग मॉड्यूल्स सरल एवं क्षेत्रीय भाषा में तैयार कर सकते हैं। कानूनी सिद्धांतों को ऑनलाइन वीडियो के माध्यम से विद्यार्थियों और आम जनता तक पहुंचाया जा सकता है। कानूनी शिक्षा में अंग्रेजी के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं को भी अपनाना चाहिए।


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0 वाई0 चंद्रचूड़ का स्वागत करते हुए कहा कि देश में विधि का शासन हो, विधि विषय में स्नातक, परास्नातक और शोध की उपाधि लेने के उपरांत अच्छे विधि विशेषज्ञ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में राष्ट्र निर्माण के वर्तमान अभियान का हिस्सा बन सकें, इसके प्रति उनके अंतःकरण की जिजीविषा ने यह संयोग दिया है कि इस तृतीय दीक्षांत समारोह के साथ-साथ पूर्व के दो दीक्षांत समारोहों में मुख्य अतिथि के रूप में भारत के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0 वाई0 चंद्रचूड़ का मार्गदर्शन यहां के विद्यार्थियों को प्राप्त होता रहा है। इस अवसर पर उनकी उपस्थिति हम सबको आह्लादित करती है।
उच्चतम न्यायालय में जाने के पूर्व इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति डी0 वाई0 चंद्रचूड़ का कार्यकाल प्रदेशवासियों तथा न्याय जगत के लिए अविस्मरणीय रहा है। न्याय जगत में विश्वास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसकी सराहना करता है। विधि का शासन, सुशासन की पहली शर्त है। आज भारत विधि के शासन के लिए जाना जाता है। आमजन तथा देश व दुनिया की धारणा को बदलने के लिए विधि का शासन बड़ी भूमिका का निर्वहन करता है। न्याय संगत व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति को प्रिय होती है। सभी को समय पर न्याय मिले इसके लिए विधि विशेषज्ञ भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। 


मुख्यमंत्री जी ने उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए कहा कि विगत 08 वर्षों के उपरांत दीक्षांत समारोह यहां पर आयोजित हो रहा है। विश्वविद्यालय ने इन सभी विद्यार्थियों के हितों को ध्यान में रखकर इस तृतीय दीक्षांत समारोह का आयोजन किया है। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जब मा0 डॉ0 न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ उपाधि प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों से परिचय पूछने के साथ-साथ उनके वर्तमान कार्यों के बारे में पूछ रहे थे, तो इनमें से बहुत सारे उपाधि धारकों ने बताया कि वह न्यायिक क्षेत्र में अलग-अलग जगह पर अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। यह इंगित करता है कि विश्वविद्यालय की राह सही व सकारात्मक है। इस पहल के साथ हम सभी को जुड़ना होगा। 


मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आम जनमानस आपके पास विश्वास के साथ आता है। पारिवारिक विवाद जैसे अनेक मामलों में लोग परिवार से ज्यादा अधिवक्ता पर विश्वास करते हैं। यह विश्वास आपकी सबसे बड़ी पूंजी है। सामान्य नागरिक का यह विश्वास बार और बेंच पर हमेशा बना रहना चाहिए। इस पर खरा उतरना सबसे बड़ी चुनौती रही है। बदलते हुए परिवेश और परिस्थितियों में लोगों के तौर तरीके, आवश्यकताएं तथा तकनीक जैसी चीजें व्यक्ति, समाज और व्यवस्था को बदलती हैं। बदलाव की कौन सी राह होनी चाहिए यह हम सब पर निर्भर करता है।
सकारात्मक राह अपनाने से आपका भविष्य न्यायिक क्षेत्र के साथ-साथ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उज्ज्वल होगा। नकारात्मक राह न आपके, न ही समाज व देश के हित में होगी। यह निर्णय हमें स्वयं लेना पड़ेगा। एक पुरानी कहावत है कि परिवार के हित में व्यक्ति, गांव के हित में परिवार, समाज हित में गांव तथा राष्ट्रहित में यदि इन सभी का परित्याग करना पड़े, तो हमें पीछे नहीं हटना चाहिए। राष्ट्र हित हमारे जीवन का सर्वोच्च लक्ष्य होना चाहिए। जब हम इस ध्येय के साथ कार्य करते हैं, तो छोटी-मोटी बातें आपको प्रभावित नहीं कर सकेंगी।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि जब विश्वविद्यालय के कुलपति दीक्षांत उपदेश पढ़ रहे थे, तो वह तैत्तिरीय उपनिषद की उन पंक्तियों का उल्लेख कर रहे थे, जिसमें भारत के स्नातकों के जीवन और भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया गया है। ‘सत्यम वद धर्मं चर’ अर्थात सत्य बोलना चाहिए तथा धर्म का आचरण करना चाहिए। धर्म केवल उपासना विधि नहीं है। धर्म नैतिक मूल्यों, सदाचार तथा कर्तव्यों का पर्याय है, जो देश, काल और परिस्थितियों से अप्रभावित होकर हम सभी को सम और विषम परिस्थितियों में कर्तव्यों के प्रति आगाह करता है। अपने कर्तव्यों के प्रति सजग होकर कार्य करना ही हमारा धर्म है। यदि हम राष्ट्र को साक्षी मानकर कार्य करते हैं, तो भारत की समृद्ध ऋषि परम्परा का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वयं को उसका उत्तराधिकारी कह सकते हैं, जिसने तत्कालीन युवाओं के लिए यह उपदेश उस समय रचे थे।


मुख्यमंत्री जी ने कहा कि आज भी तैत्तिरीय उपनिषद को साक्षी मानकर दीक्षांत समारोह को आगे बढ़ाया जाता है। प्राचीन गुरू परम्परा में दीक्षांत समारोह एक समावर्तन समारोह के रूप में होता था। यह परीक्षा से पूर्व होता था। उस समय मान्यता थी कि उपाधि ग्रहण करने वाला स्नातक इतना परिपक्व होगा, कि वह जीवन की सभी परीक्षाएं सहजता से उत्तीर्ण कर सकेगा। आज का अवसर इस विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत प्रेरक है। यह आपके जीवन का एक अविस्मरणीय क्षण बनने जा रहा है। इसके माध्यम से आपके भावी जीवन का पाथेय निकलेगा।कार्यक्रम को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री अरुण भंसाली ने भी सम्बोधित किया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर अमरपाल सिंह ने विद्यार्थियों को दीक्षांत उपदेश दिया।  इस अवसर पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्तिगण, उच्च शिक्षा मंत्री श्री योगेन्द्र उपाध्याय, मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार सिंह, विश्वविद्यालय के विधि विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर आदित्य प्रताप सिंह, फैकल्टी मेम्बर्स, छात्र-छात्राएं एवं उनके अभिभावक उपस्थित थे।

Tags