डायबिटीज़ और थायरॉइड: एक-दूसरे से जुड़े दो अहम स्वास्थ्य मुद्दे

लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। – भारत में थायरॉइड और डायबिटीज़ दोनों ही तेजी से बढ़ती स्वास्थ्य समस्याएं हैं। अनुमान के मुताबिक, देश में हर 10 में से 1 व्यक्ति थायरॉइड से पीड़ित है, जबकि हर 11 में से 1 व्यक्ति डायबिटीज़ से जूझ रहा है। हालाँकि ये दोनों बीमारियाँ अलग-अलग मानी जाती हैं, लेकिन इनके बीच एक गहरा और महत्वपूर्ण संबंध है, जिसके बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं होती।
विशेषज्ञों के अनुसार, टाइप 2 डायबिटीज़ से ग्रस्त हर चौथे व्यक्ति में हाइपोथायरॉइडिज़्म भी पाया जाता है – एक ऐसी स्थिति जिसमें थायरॉइड ग्रंथि पर्याप्त हार्मोन नहीं बना पाती। इसका असर शरीर की ऊर्जा प्रक्रिया, वजन, मूड और ब्लड शुगर कंट्रोल पर पड़ सकता है।
थायरॉइड और ब्लड शुगर: क्या है कनेक्शन?
डॉ. रोहिता शेट्टी, मेडिकल अफेयर्स हेड, एबॉट इंडिया, बताती हैं:
“डायबिटीज़ के मरीज़ अक्सर अपने ब्लड शुगर को लेकर सजग रहते हैं, लेकिन थायरॉइड से जुड़े लक्षणों पर उतना ध्यान नहीं देते। जबकि दोनों ही बीमारियाँ शरीर की ऊर्जा व्यवस्था और मेटाबॉलिज्म को प्रभावित करती हैं।”
थायरॉइड और इंसुलिन दोनों हार्मोन एनर्जी मैनेजमेंट में अहम भूमिका निभाते हैं। जब इनमें से किसी एक में गड़बड़ी आती है, तो उसका सीधा असर दूसरे पर भी हो सकता है। इस वजह से ब्लड शुगर असंतुलित हो सकता है या डायबिटीज़ के लक्षण और जटिल हो सकते हैं।
थायरॉइड डिसफंक्शन के संभावित लक्षण:
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लगातार थकान
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स्मृति कमजोर होना
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नींद में परेशानी
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अनावश्यक वजन बढ़ना
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कब्ज की समस्या
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शुष्क त्वचा
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सर्दी न सह पाना
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मांसपेशियों में अकड़न या दर्द
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आंखों में सूजन
डॉ. साकिब अहमद खान, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट, चंदन हॉस्पिटल, लखनऊ, कहते हैं:
“कई बार थायरॉइड की समस्या बिना किसी स्पष्ट लक्षण के भी हो सकती है, जिससे इसका समय रहते पता लगना मुश्किल होता है। विशेष रूप से डायबिटीज़ के रोगियों को थायरॉइड की नियमित जांच करवाते रहना चाहिए।”
शरीर के लिए दो महत्वपूर्ण नियंत्रक: थायरॉइड और इंसुलिन
थायरॉइड, जो गर्दन के आधार पर स्थित एक तितली के आकार की ग्रंथि है, मेटाबॉलिज्म को नियंत्रित करती है, यानी यह तय करती है कि शरीर ऊर्जा को किस गति और तरीके से खर्च करता है। वहीं, इंसुलिन ब्लड शुगर को संतुलित रखने का कार्य करता है। ये दोनों एक साथ मिलकर हमारे शरीर के ऊर्जा संतुलन को बनाए रखने में मदद करते हैं।
जब इनमें से किसी का कार्य गड़बड़ा जाता है, तो दूसरी प्रक्रिया भी प्रभावित होती है – और यही कारण है कि डायबिटीज़ और थायरॉइड विकार अक्सर एक साथ देखे जाते हैं।
साथ होने पर बढ़ सकता है जोखिम
शोध यह भी बताते हैं कि इन दोनों बीमारियों के एक साथ होने पर स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं का खतरा कई गुना बढ़ सकता है, जैसे:
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किडनी फेल्योर का खतरा
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हृदय रोगों की संभावना
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डायबिटिक रेटिनोपैथी (आंखों की रक्त वाहिकाओं को नुकसान)
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न्यूरोपैथी (नसों को नुकसान)
क्या करें? – जरूरी सुझाव
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यदि आपको डायबिटीज़ है, तो हर 6-12 महीने में थायरॉइड फंक्शन टेस्ट जरूर कराएं
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थकान, नींद में गड़बड़ी, वजन बढ़ना जैसे लक्षणों को हल्के में न लें
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संतुलित आहार और व्यायाम को अपनी दिनचर्या में शामिल करें
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डॉक्टर की सलाह से नियमित रूप से ब्लड शुगर और थायरॉइड लेवल मॉनिटर करें