भगवान शिव के दिव्य ज्योतिर्लिंग: श्रावण मास में भक्ति और आध्यात्म का महापर्व
Divine Jyotirlinga of Lord Shiva: A great festival of devotion and spirituality in the month of Shravan
Thu, 10 Jul 2025
(लेखिका: अंजनी सक्सेना | स्रोत: विभूति फीचर्स)
श्रावण मास का आगमन होते ही देशभर में शिवभक्ति की लहर उमड़ पड़ती है। यह मास भगवान शिव की उपासना, आराधना और साधना का पवित्र काल माना जाता है। इस दौरान शिवालयों और घरों में भक्ति की रसधार बहने लगती है। शिव के अनगिनत रूपों में आराधना की परंपरा रही है, परंतु द्वादश ज्योतिर्लिंगों का विशेष महत्व है, जिन्हें शिव के प्रकाशमय और स्वयंभू स्वरूप माना जाता है।
-
क्या हैं ज्योतिर्लिंग?
मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में जब ब्रह्मा और विष्णु इस बात पर वाद-विवाद कर रहे थे कि कौन श्रेष्ठ है, तब अचानक एक अग्निस्तंभ के रूप में शिव प्रकट हुए। उस दिव्य ज्योति का न कोई आरंभ था, न कोई अंत। ब्रह्मा ऊपर की ओर और विष्णु नीचे की ओर उस स्तंभ का छोर खोजने निकले लेकिन असफल रहे। उसी दिव्य प्रकाश स्तंभ का प्रतीक हैं ज्योतिर्लिंग।
लिंगपुराण के अनुसार, प्रणव में "अ" कार ब्रह्मा, "उ" कार विष्णु और "म" कार शिव हैं – यही मकार लिंगरूप में परब्रह्म का कारण बनता है।
"शिवं च मोक्षे क्षये च महादेवे सुखे।"
अर्थात् शिव ही कल्याण, आनंद और मोक्ष का स्रोत हैं।
द्वादश ज्योतिर्लिंग: शिव के बारह स्वयंभू स्वरूप
1. सोमनाथ (गुजरात)
गुजरात के प्रभास क्षेत्र में समुद्र किनारे स्थित सोमनाथ मंदिर शिव का पहला ज्योतिर्लिंग माना जाता है। मान्यता है कि चंद्रदेव ने शिव की तपस्या कर यहां क्षयरोग से मुक्ति पाई थी। इसलिए यह स्थान मोक्षदायक माना जाता है।
2. मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
आंध्रप्रदेश के श्रीशैल पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग “दक्षिण का कैलाश” कहलाता है। शिव-पार्वती यहां अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने पहुंचे थे। मल्लिकार्जुन रूप में शिव ने यहां निवास किया।
3. महाकालेश्वर (उज्जैन, मध्यप्रदेश)
उज्जैन के क्षिप्रा तट पर स्थित यह मंदिर पृथ्वी के एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के लिए प्रसिद्ध है। पौराणिक कथा के अनुसार, शिव ने यहां ब्रह्मविद्वानों की रक्षा के लिए दूषण नामक राक्षस का वध किया था।
4. ओंकारेश्वर/ममलेश्वर (मध्यप्रदेश)
नर्मदा नदी के बीच टापू पर स्थित ओंकारेश्वर लिंग स्वयंभू माना जाता है। यह लिंग मान्धाता पर्वत पर स्थित है। मान्यता है कि नर्मदा तट पर तपस्या कर विंध्य पर्वत ने शिव को प्रसन्न किया, तब उन्होंने यहां प्रकट होकर निवास किया।
5. केदारनाथ (उत्तराखंड)
हिमालय की गोद में स्थित केदारनाथ धाम शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। नार-नारायण ने यहां शिव की घोर तपस्या कर उन्हें शिवलिंग रूप में प्रकट होने का आग्रह किया था।
6. विश्वनाथ (काशी, उत्तरप्रदेश)
काशी में स्थित यह ज्योतिर्लिंग “मोक्षदायक शिवलिंग” के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि जो प्राणी यहां प्राण त्यागता है, उसे शिव अपने त्रिशूल पर बैठाकर मुक्ति प्रदान करते हैं।
7. त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
नासिक जिले में स्थित यह ज्योतिर्लिंग गोदावरी नदी के उद्गम स्थल के निकट है। ऋषि गौतम की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव यहां त्र्यंबक रूप में प्रकट हुए। यह स्थान पुण्य और मोक्ष दोनों का संगम है।
8. वैद्यनाथ (झारखंड)
झारखंड के देवघर में स्थित यह ज्योतिर्लिंग रावण की तपस्या से जुड़ा है। रावण ने शिव को लंका ले जाने का संकल्प लिया था लेकिन शिव ने शर्त रखी कि यदि रास्ते में उन्हें रखा गया, तो वहीं स्थापित हो जाएंगे। देवघर में शिवलिंग गिरते ही वह स्थायी रूप से स्थापित हो गया।
9. नागेश्वर (गुजरात)
द्वारका के समीप स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग शिवभक्त सुप्रिय की कथा से जुड़ा है, जिसे राक्षस दारुक ने बंदी बना लिया था। शिव ने स्वयं प्रकट होकर उसे पाशुपतास्त्र दिया और नागेश्वर रूप में वहां विराजमान हो गए।
10. भीमशंकर (महाराष्ट्र)
पुणे जिले में सह्याद्रि पर्वत पर स्थित यह ज्योतिर्लिंग त्रिपुरासुर और भीमासुर के वध से संबंधित है। शिव ने यहां भीमा नदी के तट पर भीमासुर का संहार कर विश्राम किया था।
11. रामेश्वर (तमिलनाडु)
रामायणकालीन यह ज्योतिर्लिंग सेतुबंध पर स्थित है। श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई से पूर्व यहां बालुका लिंग बनाकर शिव की पूजा की थी। यह स्थान शिव और राम के अद्भुत समन्वय का प्रतीक है।
12. घुश्मेश्वर (महाराष्ट्र)
औरंगाबाद जिले के पास स्थित यह अंतिम ज्योतिर्लिंग घुष्मा नामक शिवभक्त महिला की कथा से जुड़ा है, जिसने अपने पुत्र की हत्या के बाद भी क्षमा का मार्ग अपनाया। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर शिव प्रकट हुए और घुश्मेश्वर के रूप में वहां प्रतिष्ठित हुए।
---
उपसंहार:
द्वादश ज्योतिर्लिंग न केवल शिव की शक्ति और करुणा के प्रतीक हैं, बल्कि आत्मशुद्धि, मोक्ष और धर्मपथ पर अग्रसर होने का आह्वान भी हैं। श्रावण मास में इन तीर्थों का स्मरण और दर्शन आत्मिक कल्याण और आध्यात्मिक उन्नति की ओर एक बड़ा कदम है।
> "द्वादश ज्योतिर्लिंगों का स्मरण करने मात्र से ही जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं और शिव कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है।"
