डोनाल्ड ट्रम्प की नाक

बाल कविता , स्तंभ लेखन के साथ ही उनके कविता संग्रह भी चर्चित रहे हैं। वे उन गिने चुने व्यंग्यकारों में हैं जो अपनी किताबों से रायल्टी अर्जित करते दिखते हैं। तिवारी जी नये व्यंग्यकारों की हौसला अफजाई करते,तटस्थ व्यंग्य कर्म में निरत दिखते हैं।
पाठकों से उनकी यह किताब पढ़ने की अनुशंसा करते हुये मैं किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हूं।जब आप स्वयं 40 व्यंग्यों का यह संग्रह पढ़ेंगे तो आप स्वयं उनकी लेखनी के पैनेपन के मजे ले सकेंगें। प्रमाणपत्रों वाला देश,अपने खेमे के पिद्दी , राजनीति का रिस्क,साहित्य के ब्लूव्हेल,व्यंग्य के मारे नारद बेचारे , दिल्ली की धुंध और नेताओं का मोतियाबिन्द , पुस्तक मेले का लेखक मंच,उठो लाल अब डाटा खोलो,पूरे वर्ष अप्रैल फूल,अपना अतुल्य भारत,जुगाड़ टेक्नालाजी , देशभक्ति का मौसम , टीवी चैनलों की बहस और शीर्षक व्यंग्य डोनाल्ड ट्रम्प की नाक सहित हर व्यंग्य बहुत सामयिक,मारक और संदेश लिये हुये है। इन व्यंग्य लेखों की विशेषता है कि सीमित शब्द सीमा में सहज घटनाओं से उपजी मानसिक वेदना को वे प्रवाहमान संप्रेषण देते हैं , पाठक जुड़ता जाता है,कटाक्षों का मजा लेता है,जिसे समझना हो वह व्यंग्य में छिपा अंतर्निहित संदेश पकड़ लेता है,व्यंग्य पूरा हो जाता है। मैं चाहता हूं कि इस पैसा वसूल व्यंग्य संग्रह को पाठक अवश्य पढ़ें। ट्रंप की पुनः ताजपोशी के परिप्रेक्ष्य में पुस्तक प्रासंगिक बन गई है।