परिस्थितियों से नहीं, परिणामों से आँके जा रहे हैं डॉ. मोहन यादव
(पवन वर्मा – विनायक फीचर्स)
ग्वालियर में 25 दिसंबर को आयोजित अभ्युदय मध्यप्रदेश ग्रोथ समिट 2025 केवल निवेश प्रस्तावों, आंकड़ों और औपचारिक भाषणों तक सीमित आयोजन नहीं रहा। यह मंच वास्तव में भारतीय जनता पार्टी की सत्ता-राजनीति का एक अहम संकेतक बनकर उभरा। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के संबोधन ने स्पष्ट कर दिया कि यह कार्यक्रम सिर्फ आर्थिक विकास का एजेंडा नहीं था, बल्कि मध्यप्रदेश के नेतृत्व को नई पहचान देने का अवसर भी था।
अपने भाषण में अमित शाह ने जिस आत्मविश्वास और स्पष्टता के साथ मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के कार्यों का उल्लेख किया, उसने यह संदेश दे दिया कि अब उनके नेतृत्व को केवल राज्य तक सीमित नहीं रखा जा रहा। शाह ने साफ कहा कि रीजनल समिट का मॉडल, जैसा मध्यप्रदेश में अपनाया गया है, अब अन्य राज्यों में भी लागू किया जाएगा। राजनीति की भाषा में यह कोई साधारण प्रशंसा नहीं, बल्कि किसी मुख्यमंत्री की कार्यशैली को राष्ट्रीय मानक के रूप में स्थापित करने जैसा संकेत है।

यह बयान मध्यप्रदेश सरकार के कामकाज की तारीफ भर नहीं था, बल्कि डॉ. मोहन यादव की सोच, प्रशासनिक दृष्टि और निर्णय क्षमता को देश के लिए अनुकरणीय बताने का स्पष्ट संकेत था। जब किसी राज्य का मॉडल पूरे देश के लिए उदाहरण बनता है, तो स्वाभाविक रूप से उस राज्य के नेतृत्व पर अपेक्षाओं का भार भी कई गुना बढ़ जाता है।
इस एक वक्तव्य के साथ मोहन यादव अब केवल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री नहीं रह जाते, बल्कि वे उस शासन-मॉडल का प्रतिनिधित्व करने लगते हैं, जिसकी तुलना अब अन्य राज्यों से की जाएगी। आने वाले समय में राज्य में होने वाले हर निवेश सम्मेलन, हर औद्योगिक निर्णय और हर प्रशासनिक पहल को राष्ट्रीय दृष्टि से देखा जाएगा। यही वह सूक्ष्म राजनीतिक संदेश है, जिसे अमित शाह ने बेहद संतुलित भाषा में मंच से रखा।
शाह के संबोधन का दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से की गई तुलना रहा। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया शिवराज सिंह चौहान के कार्यकाल में शुरू हुई थी, लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव उसे और अधिक ऊर्जा के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। सतह पर यह वक्तव्य प्रशंसा प्रतीत होता है, लेकिन भाजपा की आंतरिक राजनीति में इसका महत्व कहीं गहरा है।
शिवराज सिंह चौहान केवल एक पूर्व मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि लंबे समय तक मध्यप्रदेश भाजपा का केंद्रीय चेहरा रहे हैं। ऐसे में उनके मुकाबले अधिक ऊर्जा और सक्रियता की बात करना, मोहन यादव को सीधे उनके समकक्ष खड़ा करने जैसा संकेत देता है। यह बयान नेतृत्व के हस्तांतरण को सहज और स्वाभाविक रूप से स्थापित करने की कोशिश भी माना जा सकता है।
ग्वालियर के मंच से आया तीसरा और सबसे अहम संदेश था—नेतृत्व को लेकर स्पष्टता। मध्यप्रदेश भाजपा पिछले कुछ समय से गुटबाजी और आंतरिक समीकरणों से गुजर रही है। सिंधिया समर्थक, तोमर समर्थक, शिवराज समर्थक और संगठन के अलग-अलग धड़े—यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है। ऐसे माहौल में अमित शाह का मंच से दिया गया यह संकेत कि केंद्रीय नेतृत्व पूरी तरह मोहन यादव के साथ है, बेहद निर्णायक माना जा रहा है।
इस सार्वजनिक समर्थन का अर्थ साफ है—अब मुख्यमंत्री के अधिकार और नेतृत्व को लेकर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए। भाजपा की राजनीति में जब केंद्रीय नेतृत्व किसी मुख्यमंत्री के साथ खुलकर खड़ा होता है, तो इसका मतलब सिर्फ समर्थन नहीं होता, बल्कि उससे जुड़े परिणामों की अपेक्षा भी उतनी ही स्पष्ट होती है।
अमित शाह की राजनीतिक शैली हमेशा यही रही है कि वे किसी नेता को हटाकर नहीं, बल्कि जिम्मेदारियों और अपेक्षाओं के भार से बांधकर नेतृत्व को नियंत्रित करते हैं। ग्वालियर में दिया गया बयान इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है। मोहन यादव को एक साथ वैधता, संरक्षण और प्रतिष्ठा प्रदान की गई, लेकिन उसी क्षण यह भी तय हो गया कि अब उनका मूल्यांकन परिस्थितियों के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस परिणामों के आधार पर किया जाएगा।इस अर्थ में ग्वालियर का मंच डॉ. मोहन यादव के लिए सिर्फ प्रशंसा का नहीं, बल्कि प्रतिबद्धता और जवाबदेही का मंच साबित हुआ।
