सड़कों पर बढ़ती ई-रिक्शा अराजकता: समाधान की जरूरत

Increasing e-rickshaw chaos on roads: Solutions needed
 
सड़कों पर बढ़ती ई-रिक्शा अराजकता: समाधान की जरूरत

(राकेश अचल – विनायक फीचर्स)

देश के ज्यादातर शहरों में ई-रिक्शा को पर्यावरण के अनुकूल "ग्रीन ट्रांसपोर्ट" के रूप में लाया गया था। शुरुआत में इनका उद्देश्य पारंपरिक तांगा, हाथ रिक्शा या धुआं उगलने वाले टेम्पो का विकल्प देना था। चूंकि ये ई-रिक्शा कम खर्चीले और शोर-रहित थे, इसलिए जनता और सरकार दोनों ने इन्हें उत्साह से अपनाया। लेकिन अब यही ई-रिक्शा शहरी यातायात के लिए बड़ी चुनौती बन चुके हैं।

यातायात व्यवस्था को कर रहे प्रभावित


ई-रिक्शा चालकों के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण, तय मार्ग या स्टॉपेज की व्यवस्था नहीं की गई। नतीजतन, जहां सवारी ने हाथ दिया, वहीं ई-रिक्शा रुक जाता है – इससे पीछे आ रहे वाहनों को बार-बार ब्रेक लगाना पड़ता है और दुर्घटनाओं की आशंका बनी रहती है। महानगरों से लेकर कस्बों तक सड़कों की हालत ऐसी हो गई है कि पैदल चलना भी मुश्किल हो गया है।

प्रशासन की कोशिशें नाकाम


कुछ शहरों में प्रशासन ने इन रिक्शों को तय रूट देने, रंगों से चिन्हित करने, और शिफ्ट में संचालन जैसी योजनाएं शुरू कीं, लेकिन रिक्शा यूनियनों के विरोध और प्रशासन की लापरवाही से यह सब विफल रहा। अब स्थिति यह है कि ट्रैफिक पुलिस और आरटीओ भी इन पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं।

बढ़ती संख्या, बिगड़ता ट्रैफिक


अनुमान के मुताबिक देशभर में पंजीकृत और अपंजीकृत ई-रिक्शों की संख्या लाखों में है। अकेले 2022-23 तक यह आंकड़ा तीन लाख पंजीकृत ई-रिक्शों को पार कर चुका था, जबकि अपंजीकृत वाहनों की संख्या कहीं अधिक है। हर प्रमुख रेलवे स्टेशन, बस अड्डे और बाजारों में इनका अनियंत्रित जमावड़ा देखा जा सकता है, जिससे लगातार ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ रही है।

वन-वे और नियमों की धज्जियां


ई-रिक्शा वाले बेधड़क वन-वे सड़कों पर भी चलते हैं, जबकि नियमों की अनदेखी आम बात हो गई है। न उन्हें ट्रैफिक का डर है, न पुलिस का। अस्थायी स्टैंड बनाकर यह पैदल यात्रियों की राह तक बंद कर देते हैं।

क्या है समाधान?


यह सवाल बेहद जरूरी है कि इस बढ़ती अराजकता से निपटने के लिए क्या कदम उठाए जाएं? अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से यह सीखा जा सकता है कि ई-रिक्शा को नियंत्रित किया जा सकता है—बशर्ते प्रशासनिक इच्छाशक्ति और योजनाबद्ध व्यवस्था हो। विदेशों में ई-रिक्शा संचालन नियमबद्ध होता है, चालक प्रशिक्षित होते हैं और उन्हें नागरिक जिम्मेदारियों का भान होता है।

भारत में भी अगर इन वाहनों को सही दिशा में चलाना है, तो

  • इनका पंजीकरण अनिवार्य किया जाए,

  • चालकों का प्रशिक्षण और पहचान सत्यापन हो,

  • निर्धारित रूट और स्टॉपेज बनाए जाएं,

  • और यातायात नियमों का सख्ती से पालन करवाया जाए।

ई-वाहनों का भविष्य और पर्यावरणीय असर


ई-रिक्शा भले ही प्रदूषण मुक्त दिखाई देते हों, लेकिन इनके बैटरियों का निस्तारण और रख-रखाव आने वाले समय में गंभीर "ई-कचरा" (E-Waste) समस्या बन सकता है। अगर अभी से ठोस और टिकाऊ समाधान नहीं निकाले गए, तो यह हरित परिवहन व्यवस्था समस्या का रूप ले सकती है। वक्त आ गया है कि हम पर्यावरण की आड़ में हो रही अराजकता को रोके और शहरों में संतुलित एवं सुरक्षित परिवहन व्यवस्था सुनिश्चित करें।

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