इटावा की घटना: कथा मंच से उठते सवाल धर्म, जाति और समाज की संवेदनशीलता पर बहस

Etawah incident: Questions arising from Katha Manch - Debate on the sensitivity of religion, caste and society
 
इटावा की घटना: कथा मंच से उठते सवाल  धर्म, जाति और समाज की संवेदनशीलता पर बहस
अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार  ,   इटावा  : उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के बकेवर थाना अंतर्गत ग्राम दादरपुर में हाल ही में घटी एक घटना ने धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक हलकों में जबरदस्त हलचल पैदा कर दी है। श्रीमद्भागवत कथा वाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहयोगी संत सिंह यादव के साथ कथित रूप से हुई मारपीट, अपमान और जातिगत उत्पीड़न की खबरें सामने आने के बाद देशभर में प्रतिक्रिया की लहर दौड़ गई।

अजय कुमार,वरिष्ठ पत्रकार

क्या है पूरा मामला?

मुकुट मणि यादव का आरोप है कि वे श्रीमद्भागवत कथा कहने गांव पहुंचे थे, लेकिन जैसे ही आयोजकों को उनकी जाति का पता चला, उन्हें मंच से उतार दिया गया, अभद्र व्यवहार किया गया, यहां तक कि सिर मुंडवा दिया गया और महिला के सामने नाक रगड़ने को मजबूर किया गया। आरोपों के मुताबिक, उनके चेहरे पर अपमानजनक हरकत तक की गई और उनका हारमोनियम भी तोड़ डाला गया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो वायरल होते ही राज्यभर में इस पर तीखी प्रतिक्रिया हुई।

 राजनीतिक और सामाजिक बवाल

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसे जातिवादी मानसिकता का चरम बताते हुए सरकार पर हमला बोला। उन्होंने पीड़ितों को सम्मानित कर आर्थिक सहायता दी और कहा कि यदि कथा कहने के लिए जाति प्रमाणपत्र की ज़रूरत है, तो सरकार को इस पर कानून बना देना चाहिए।

वहीं, महिला रेनू तिवारी और उनके पति जयप्रकाश तिवारी ने विपरीत आरोप लगाते हुए कथावाचक पर अनुचित व्यवहार का आरोप लगाया। उनका दावा है कि कथावाचक ने कथा के दौरान महिला से छेड़छाड़ की, और जब यह बात सामने आई तो गुस्से में गांव वालों ने जवाबी कदम उठाया। कथावाचकों पर फर्जी आधार कार्ड बनाकर ब्राह्मण जाति का झूठा दावा करने का आरोप भी लगाया गया है।

 पुलिस और जांच का मौजूदा रुख

इटावा के एसपी बृजेश कुमार श्रीवास्तव ने दोनों पक्षों की शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए निष्पक्ष जांच का आश्वासन दिया है। अब तक चार आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, वहीं कथावाचकों के दस्तावेज़ों की वैधता भी जांच के घेरे में है।

 सनातन परंपरा और जाति विमर्श

इस घटना ने यह अहम सवाल खड़ा कर दिया है — क्या कथा कहने का अधिकार जाति आधारित होना चाहिए? इतिहास गवाह है कि महर्षि वेदव्यास, सूत जी, शबरी, प्रह्लाद और व्याध गीता जैसे उदाहरण जाति के दायरे से परे जाकर भक्ति और ज्ञान की श्रेष्ठता को स्थापित करते हैं। धर्मग्रंथ यह बताते हैं कि धर्म में भाव, श्रद्धा और ज्ञान की प्रधानता है, न कि जन्म आधारित पहचान की।

 राजनीतिक विभाजन और सामाजिक असर

यह विवाद अब राजनीति में जातीय ध्रुवीकरण का आधार बनता जा रहा है। जहां समाजवादी पार्टी इसे पिछड़े वर्ग पर अत्याचार मान रही है, वहीं कुछ संगठन इसे ब्राह्मण विरोधी रुख का रूप दे रहे हैं। इस संघर्ष में असल मुद्दा — समता, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता  कहीं खोता जा रहा है।

 आगे का रास्ता: संवैधानिक दृष्टिकोण और सामाजिक चेतना

अगर कथावाचकों के साथ हुआ अपमान सिर्फ जाति के आधार पर था, तो यह संपूर्ण सनातन मूल्यों और मानव गरिमा का अपमान है। लेकिन अगर महिला के लगाए अनुचित व्यवहार के आरोप सही साबित होते हैं, तो वह भी उतना ही निंदनीय और दंडनीय कृत्य होगा। न्याय की मांग तभी पूरी होगी जब जांच निष्पक्ष और पारदर्शी हो।

 धर्म और समाज की असली परीक्षा

इटावा की घटना केवल एक गांव की कहानी नहीं, यह समाज के मानसिक ढांचे और धार्मिक समझदारी की गंभीर परीक्षा है। यह तय करने का वक्त है कि धर्म को जातियों में बांटेंगे या सबको समान अधिकार देंगे। यदि किसी व्यक्ति की आस्था और भक्ति सत्य है, तो उसे कथा कहने का अधिकार भी उतना ही है, चाहे वह यादव हो, ब्राह्मण हो या कोई और।क्या धर्म जाति से बड़ा है? क्या हम वाकई 21वीं सदी के आधुनिक समाज हैं या वर्ण व्यवस्था की छाया में जी रहे हैं?
इसका उत्तर हमें अपने विवेक, न्यायप्रियता और मानवता के मूल्यों से देना होगा।

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