रमेश भइया के एकवर्षीय मौन साधना का पहला चरण हुआ पूर्ण

The first phase of Ramesh Bhaiya's one year silent meditation is completed
 
The first phase of Ramesh Bhaiya's one year silent meditation is completed
लखनऊ डेस्क (आर एल पाण्डेय)। पूज्य विनोबा जी के एकवर्षीय मौन (1974_75) का स्वर्ण जयंती वर्ष रमेश भइया ने एक वर्षीय मौन का 11।दिसंबर गीता जयंती पर लिया संकल्प मुख्य अतिथि के रूप में माननीय राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान का संबोधन गीता जयंती से बुद्ध जयंती तक मौन संकल्प यात्रा का प्रथम चरण विनोबा प्रतिमा के सानिध्य में हुआ 

पूर्ण (11 मई से 11 अक्टूबर तक जयप्रभा कुटीर छीतेपुर में होगी मौन साधना) पांच माह मौन साधना के सुंदर अनुभव परिवार में साझा किए। एक वर्ष का मौन निश्चित रूप से बहुत ही वृहत दिखता था।लेकिन ऋषि तुल्य विनोबा जी ने वैसे तो अनेक बार मौन घोषित अघोषित रखा। लेकिन एक बार एक वर्ष का मौन 1975_76 में जो लिया।उसका सर्वोदय के इतिहास में एक विशेष स्थान है।

जिसे इस वर्ष अर्धशताब्दी का स्पर्श मिलने वाला है।वेद में एक स्थान पर लिखा है कि अगर हमारे महापुरुष कोई रास्ता बना गए हैं।तो उसका अनुगमन उनके आशीर्वाद लेकर किया जा सकता है। इस वेद वाक्य ने मन में साहस पैदा किया और गीता जयंती के दिन यह संकल्प अनायास हो ही गया। साक्षी बने केरल के माननीय राज्यपाल श्री आरिफ मोहम्मद खान साहब।जिनका उस दिन गीता पर सुभाष्य हुआ था। गीता मां का बल भी इस संकल्प में जुड़ गया। ईसामसीह के पावन दिन 25 दिसंबर को शुरू हुई एक वर्ष मौन यात्रा। पहला दिन बीता तो आश्रम परिवार ने साथ में बैठकर इस संकल्प को खूब ठोका बजाया कि कहीं कच्चा तो नहीं। एक सप्ताह बीता तो विनोबा विचार प्रवाह परिवार आश्वस्त हो पाया

कि नहीं अब बात हर समय संभव नहीं होगी। अब तो मात्र दो घंटा ही इसके लिए अवकाश है। फिर भी साथियों के फोन आ ही जाते थे तो एक संदेश बना रखा था जो सभी को चला जाता था। प्रवाह परिवार बड़ा है सबकी इच्छा बात करने की होना तो स्वाभाविक है। धीरे धीरे यह प्यास बुझती गई। किसकी प्यास पहले बुझे इस प्रकार का मन बनाकर मित्रों ने फोन करना धीरे धीरे कम कर दिया। पहली बात तो यही कि यह निवेदन किसी से नहीं करना पड़ा कि आप फोन कम करें या बात कम करें।यह प्रेरणा स्वयं सबको मिलती गई। बाबा ने एक स्थान पर भूदान के दिनों में लिखा है कि जिस परमेश्वर ने यह संकल्प दिलाया कि इतनी भूमि दान में मिले उस परमेश्वर ने दान देने वाले को भी प्रेरणा दी। कि वह इस अवसर को न खोए ।

सबसे बड़ा भय तो खुद से था कि चलिए जागृत अवस्था में तो ध्यान रखा जा सकता है कि मेरा मौन संकल्प है लेकिन अनेक बार सुप्तावस्था से उठने पर शायद यह भूल हो सकती है।लेकिन पता नहीं कौन सी शक्ति ने हर अवस्था को यह बता दिया कि अडिग मौन संकल्प है। मेरा उस अदृश्य शक्ति को नमन। दूसरा भय आश्रम परिवार जिसके साथ हमने खूब बोल बोल कर समय बिताया।शायद उनके बोलने से मैं बोल जाऊं। एक मन हुआ भी था कि मौन संकल्प कुटिया पर एक सूचना टांग दी जाए कि इस समय से इस समय तक मौन है और 11 से 1 बजे तक दो घंटे खुला है।लेकिन कोई नोटिस नहीं लगाया गया और सभी ने इस प्रोटोकाल को स्वत: पालन किया।

आश्रम के सबसे छोटे सदस्य अभिनंदन जी जो मात्र नौवें माह में थे।सबसे ज्यादा मौन के पालन में मदद उनकी रही।मेरी कुटिया के समक्ष बाबा की प्रतिमा जो भूदान यात्रा में एक दिन पहाड़ पर चढ़ते समय डंडा का सहारा लिए थे। मूर्ति कार को वही चित्र भाया। उनकी वह रक्षणशक्ति भी काफी हद तक मेरी मददगार है। जहां तक अनुभव का सवाल है। कुछ समय ही नहीं बचता है।सबेरे चार बजे बिना अलार्म के स्वत: आंख खुलती है यह प्रेरणा पवनार स्थली की है।साढ़े चार बजे वहां की प्रार्थना में अंतर्मन से शामिल हो जाता हूं। पांच बजे जयप्रभा कुटीर छीतेपुर की प्रार्थना में शामिल हो जाता हूं।

साढ़े पांच बजे से पहले मैत्री आश्रम आसाम की चम्पा बहन अपराजिता, मीनाक्षी और जयंती एवं रानू वाईदेव के दर्शन और रामहरि शब्द सुनाई पड़ने लगते है। उषा बहन , अम्मी दीदी, तारानंद भाई आजकल नहीं जुड़ते तो दिल्ली के रवीश माहेश्वरी और पवनार से पहले सबके हालचाल जानने के लिए कंचन दीदी फिर वेदांत सुधा का प्रस्फुटन गौतम भाई के मुख से सुनने के लिए हम और विमला बहन जुड़ जाते हैं।इस मोती के समान वर्षा के बाद छह बजे आश्रम परिवार संकल्प कुटिया पर बैठकर प्रार्थना करता है। साढ़े छह बजे आश्रम के वृद्ध जन इकट्ठा होकर दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना कहना शुरू करते है जिसका समापन राष्ट्र गीत से होता है।

सात बजे से विनोबा विचार प्रवाह की धारा प्रवाहित होने लगती है। विनोबा साहित्य के कम से कम दो से पांच पृष्ठ पढ़कर उससे सार रूप सबके लिए लिखना और आठ बजे तक कई हजार प्रवाह परिवार मित्रों की सेवा में भेजना। साढ़े आठ पर स्नान आदि कर 9 बजे भरत मिलाप मंदिर में दो घंटे एक वृहत महामृत्युंजय पाठ के लिए देना। 11 बजे मौन खुलते ही फोन आना प्रारंभ होना या हमारी ओर से अनेक लोगों से आज बात करने के लिए आश्वासन दिया गया उस सूची के आधार पर बात करना। यह चलता था लेकिन अभी 27 मार्च को सुघड़ आश्रम जयेश भाई के बड़े परिवार से मिलने जाना हुआ।वहां बाबा का अंदर से संदेश आया कि अब 22 घंटे तो आपके हैं

ही नहीं।उसमें त्याग की अब कोई गुंजाइश भी नहीं।अब अगर आपको कुछ करना ही है तो यह जो दो घंटे आपके खाते में हैं उसमें कम से कम बोलने में प्रयोग हों तब आपकी सफलता है।और शुरू हो गया उसमें मितव्ययिता अपनाने की होड। हिसाब लगाने लगा कि आज कितना बचाया। कई बार तो शत प्रतिशत बचना शुरू हो गया।फोन भी नहीं कोई आया।ऐसा भी दिन बीता है। भोजन के बाद विश्राम की परंपरा निर्वाह हो लेकिन यहां किसी की आदत में वह है नहीं। फिर भी 2 बजे से विनोबा साहित्य का स्वाध्याय और उसका लेखन प्रारंभ होता है जो शाम की प्रार्थना तक चलता है।

शाम का भोजन नाममात्र का कर फिर चिंतन की बेला आती है। सोचने में हमारी प्राथमिकता यह रहती है कि पहला तो यह सोचना कि जो आज लिखकर प्रवाह में गया।उसे किन मित्रों ने पढ़ा।और पढ़कर क्या लिखा।नहीं भी लिखा फिर भी हम समझ जाते हैं कि किसके मन में आज का प्रवाह उतरा। दूसरा जितना प्रवाह में लिखा है उसे संग्रह करना।उसे पुस्तक रूप में तैयार करना जिसकी पहली फलश्रुति गीता स्वाध्याय पुस्तक को पवनार आश्रम का 25 मार्च को आशीर्वाद मिल जाना था।

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