मैत्री में हक नहीं, कर्तव्य होता है: रमेश भइया

बाबा विनोबा कहते हैं कि रोम,एथेंस, जैसे बड़े बड़े शहर आए और चले गए,लेकिन मनुष्य की स्मृति में गोकुल अभी कायम है क्योंकि वह एक आदर्श गांव था।सब भाई - भाई के सामने रहते थे, सबको मक्खन खाने को मिलता था । परंतु भाई_ भाई के तौर पर रहना भी वेद को सहन नहीं होता। भाई में भी एक बड़ा और एक छोटा होता है। वेद कहता है कि हम ऐसे भाई होंगे जिसमें कोई छोटा बड़ा भी न हो।
वेद के एक मंत्र में एक बात और जोड़ दी है,अमध्यम: यानी जिसमें मध्यम भी कोई नहीं है। सबके सब भगवान के सेवक हैं।आदर्श समाज को हंसवर्ण कहा गया है अर्थात हंस के रंग के समान निष्पाप, निष्कलंक,निर्मल। आज बंधुत्व बंधन का सूचक बन गया है।बंधु और बंधन,दोनों शब्द एक ही धातु से निकले हैं,इसलिए बंधु कहलाने में कुछ न कुछ बंधन है,ऐसा वेद को लगता है। सुंद उपसुंद दो भाई थे। दोनों शक्तिशाली थे और जैसे जैसे उनकी शक्ति बढ़ती गई वैसे वैसे ईश्वर का भी भय बढ़ता गया। अंत में ईश्वर ने उन्हें पराभूत करने के लिए तिल में से तिलोत्तमा नाम की एक सुंदर स्त्री उत्पन्न की और उसे उन दोनों भाइयों के पास भेज दिया। दोनों भाइयों को लगा कि ऐसी सुंदर स्त्री के योग्य तो मैं ही हूं। दोनों झगड़ने लगे। पांडव जैसे भाई होते तो कोई उपाय निकाल लेते,लेकिन यहां सुंद की गदा उपसुंद के सिर पर पड़ी और देखये ही देखते धूल में मिल गए।
अंग्रेजी में एक कहावत है कि पानी से खून ज्यादा गाढ़ा होता है। लेकिन बाबा कहते थे कि पानी खून से ज्यादा विशुद्ध होता है।पानी की शुद्धि पानी से ही है। भाईचारा शब्द से वेद को खतरा लगा यद्यपि वह प्रेम की वस्तु है लेकिन कोई छोटा न हो कोई बड़ा भी न हो।यह खतरा मैत्री में नहीं है।ऋग्वेद के इस मंत्र में बाबा को अत्यंत प्रेम का दर्शन हुआ।
बाबा विनोबा को मैत्री शब्द बंधुभाव से ज्यादा बचपन से ही खींचता था। ईसा मसीह ने आखिर में अपने शिष्यों से कहा कि अब तुम मेरे मित्र बन गए ही,शिष्य और सेवक नहीं रहे। बुद्ध भगवान ने अपने शिष्यों से कहा कि तुम बिहार करो। उनको उन्होंने नाम दिया मैत्री बिहार। विश्व_मैत्री के लिए बिहार करो। मैत्री में हार्दिक एकता और पूर्ण प्रेम की बात है।मित्रों में कोई कम योग्य कोई अधिक योग्य का सवाल नहीं आता।प्रेम गुणों को बढ़ाता है और दोषों को क्षमा करता है।वेदों में भी कहा है कि आसपास की दुनिया मेरी ओर मित्र की निगाह से देखे,तो मैं भी सारी दुनिया की ओर मित्र की निगाह से देखूंगा। मैत्री में हक नहीं होता,कर्तव्य होता है।
न ऋते श्रांतस्य सख्याय देवा:।
श्रम करके मनुष्य जब शांत हो जाता है,थक जाता है,तब देव उसे मदद करते हैं।कोई आलसी हो,व्यसनी हो,ऐसे लोगों की परमेश्वर मदद नहीं करता। तुकाराम भी कहते हैं- तटस्थ ते ध्यान उभें विटेवरी ईंट पर खड़े होकर विठोबा कहते हैं कि नदी देखो,कमर भर ही है।वह हांथ पकड़कर आपको पार नहीं कराता।और कहते हैं_ भगवान के पास मोक्ष की गठरी धरी नहीं है कि वह उठाकर उसे आपके हाथ में थमा दे। उसके लिए आपको श्रम करके थकना होगा। जो अक्ल उसने आपको दी है, उसका पूरा_पूरा उपयोग किए बगैर वह आपकी मदद के लिए कभी नहीं आएगा। श्रम में हमारे सबके हाथ नहीं लगते हैं तो देव क्यों अपनी उंगली लगाएगा।भक्त श्रम करके थके बिना भगवान उसे मदद नहीं करता।यह उसकी रीति जाहिर हो है।इसलिए नम्रता से काम में लगें,दृढ़ निश्चय रखें,सातत्य टिकाएं, किसी का हृदय न दुखाएं और मुफ्त का यश प्राप्त करें।
यो जागार भारत में विद्या का अध्ययन प्राचीन काल से चल रहा है।विद्यार्थी उष;काल से अपने गुरु के पास विद्याध्ययन करते थे।वे बड़े तड़के उठते और कुछ चिंतन मनन भी करते थे।प्रात:काल के समय जो सोता रहता है, वह अपना अमूल्य समय खोता है। सुबह जागने से बुद्धि जागृत और तेज रहती है। इसीलिए कहा गया है। कि जो जागता है,उसे भगवान स्मरण करते हैं,ऋचाएं उससे स्फुरित होती हैं। सामवेद भी उसके पास जायेगा। जो जागृत रहता है,वेद उससे प्रेम करते हैं,उससे भेंट करने के वे आते हैं। अर्थात जो जागृत है, उसके पास वेदनारायण आते हैं।उसके पास ज्ञान आता है,भक्ति आती है।